संपादकीय... झूठ की रफ्तार ... सोशल मीडिया बना हथियार...


सोशल मीडिया पर फेक न्यूज जिस रफ्तार से फैलती है, उसके चलते सच्चाई विक्टिम बन गई है। एक झूठी बात बीज की तरह जमीन में बोई जाती है और यह बड़ी थ्योरी में बदल जाती है, जिसे तर्क के आधार पर तौला नहीं जा सकता है। इसलिए कानून को भरोसे की ग्लोबल करेंसी कहते हैं। यह कोई और नहीं, देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है। वो कहते हैं- हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां लोगों में सब्र और सहिष्णुता कम है। सोशल मीडिया के दौर में अगर कोई आपकी सोच से सहमत नहीं है तो वह आपको ट्रोल करना शुरू कर देता है।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ अमेरिकन बार एसोसिएशन इंडिया कॉन्फ्रेंस 2023 के लॉ इन द ऐज ऑफ ग्लोकलाइजेशन, कंवर्जेंस ऑफ इंडिया एंड द वेस्ट सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। वो कहते हैं कि संविधान जब बनाया गया तो यह ऐसा बड़े परिवर्तन लाने वाला डॉक्यूमेंट था, जिसमें दुनियाभर की सबसे बेहतर प्रैक्टिसिस को शामिल किया गया था। भारतीय संविधान के चीफ आर्किटेक्ट डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि संविधान में सिर्फ दुनिया से प्रेरणा नहीं ली गई है, बल्कि यह देश के लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। यह एक बेहद अनोखा भारतीय प्रोडक्ट है जो ग्लोबल भी है। लेकिन, अब हमारी रोजाना की जिंदगी दुनिया में होने वाली चीजों से प्रभावित होती है।
कई मायनों में भारतीय संविधान ग्लोबलाइजेशन का सबसे बड़ा उदाहरण है, वह भी उस समय का जब हम ग्लोबलाइजेशन के दौर में आए नहीं थे। जब संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया गया था, तो इसे बनाने वालों को ये अंदाजा नहीं था कि दुनिया में किस तरह से बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि उस वक्त हमारे पास इंटरनेट नहीं था। हम ऐसे दौर में थे जो एल्गोरिदम से नहीं चलता था। सोशल मीडिया तो बिल्कुल नहीं था। आज हर छोटी चीज के लिए आपको यह डर रहता है कि सोशल मीडिया पर लोग आपको ट्रोल करेंगे। और यकीन मानिए जज होकर हम इस ट्रोलिंग से बच नहीं पाते हैं।
उन्होंने कहा कि ट्रैवल और टेक्नोलॉजी के विस्तार के साथ मानवता का विस्तार हुआ है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर कोई क्या सोचता है, उसे लेकर लोगों में सहमति की भावना खत्म होने के साथ मानवता का पतन भी हुआ है। यही हमारे समय का चैलेंज है। इसमें से ज्यातादर तो टेक्नोलॉजी का प्रभाव है। अब लोग ग्लोबलाइजेशन से नाखुश होने लगे हैं। दुनियाभर के लोग जिस भावनात्मक उथलपुथल से गुजर रहे हैं, उसके चलते एंटी-ग्लोबलाइजेशन सेंटीमेंट में बढ़ोतरी हुई है। 2001 का आंतकी हमला इसका उदाहरण है। कोविड-19 के दौरान भी दुनिया ग्लोबल मेल्टडाउन से गुजरी, लेकिन यह एक मौके के तौर पर उभरा।
प्रधान न्यायाधीश आजकल कई फैसलों को लेकर चर्चाओं में हैं और इनमें से कुछ फैसले तो ऐतिहासिक ही कहे जाएंगे। 
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया को लेकर जो कहा है, वो बारह आने यानि सौ फीसदी सच है। सोशल मीडिया ने जहां कई ऐसे लोगों को मंच दिया है, जिन्हें अपनी प्रतिभा को दिखाने का अवसर मिला है। मूक को वाचाल बना दिया। परंतु दूसरी तरफ यह झूठ के प्रसार का भी बहुत बड़ा माध्यम बन गया है। इतिहास को तोड़ मरोडक़र पेश करने से लेकर ऐसे मुद्दों को फैलाया जा रहा है, जो समाज को तोडऩे का काम कर रहे हैं। समाज में वैमनस्यता फैलाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा खूब लिया जा रहा है। उन्होंने सही ही तो कहा, सोशल मीडिया फेक न्यूज का बड़ा प्लेटफार्म बन गया है। कोई बार तेजी से फैलानी होती है, इसका सहारा लिया जाता है। हमारे देश में ही कई झूठ सोशल मीडिया के माध्यम से परोसे गए और कुछ लोगों के प्रति घृणा का भाव तक पैदा किया गया, आज भी किया जा रहा है। सोशल मीडिया के झूठ के सहारे सरकारें बनाई गई हैं। 
आज भी चुनावी दंगल में सोशल मीडिया सबसे बड़ा हथियार बन जाता है। तमाम महत्वपूर्ण मुद्दे चुनाव के दौरान गौण कर दिए जाते हैं और जनता को भ्रमित कर काल्पनिक मुद्दों में उलझा कर वोट हासिल किए जा रहे हैं। सच को झूठ साबित करने के लिए सोशल मीडिया से बड़ा हथियार नहीं है। सीजेआई ने इस ओर भी इशारा किया कि कुछ लोगों को जो पसंद नहीं आता, उसे ट्रोल करने लगते हैं। यहां तो साहब, सच कहने वाले ज्यादा ट्रोल होते हैं। इसके साथ ही उन्होंने जो ग्लोबलाइजेशन के खिलाफ पैदा होने वाली मानसिकता का जिक्र किया, वह सही भी है, लेकिन विश्व समुदाय के लिए खतरा है। जातिवाद और संप्रदायवाद को भडक़ा कर लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगे हैं, इसमें सोशल मीडिया का भरपूर दुरुपयोग किया जा रहा है। हमारी विडम्बना यह है कि हम सच जानते हैं, समझते भी हैं, लेकिन खड़े झूठ के साथ हो जाते हैं। कई लोग इसे मजबूरी कहते हैं। हमारे देश के लिए आज सोशल मीडया का झूठ सबसे बड़ा खतरा बन गया है। फिलहाल तो लगता नहीं कि इसका कुछ निदान हो, लोग झूठ की धारा में बह ही नहीं रहे, डूबते जा रहे हैं। 
- संजय सक्सेना 

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