नई दिल्ली। सरकार जब किसी चहेते कॉर्पोरेट को फायदा पहुँचाना चाहती हो तो कैसे खेल खेलती है। अडाणी का घर भरने को पागल हुई मोदी सरकार ने 1800 किमी. का रास्ता 5800 किमी. का बना दिया। पंजाब के थर्मल प्लांट के लिए झारखंड की पचवारा खदान का कोयला अब 4 हजार किमी. का फालतू सफर तय करके ले जाना पड़ेगा।
यह कोयला झारखंड की कोयला खदान से पहले श्रीलंका जाएगा, उसके बाद वहां से गुजरात में अडाणी ग्रुप के दाहेज और मुंद्रा पोर्ट पर पहुंचेगा। वहां से इस कोयले को रेल के जरिये पंजाब लाया जाएगा।
इस समय पंजाब सरकार को महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (MCL) से रेल के जरिये कोयला मंगवाने पर प्रतिटन 4950 रुपये देने पड़ते हैं। इस रूट से कोयला रेलवे के जरिये 1800 किमी. का सफर तय कर 5 से 6 दिन में पंजाब पहुंच जाता है।
अब मोदी सरकार के नये आदेश के मुताबिक यह सफर बढ़कर 5800 किमी. हो जाएगा। जिससे कोयले की लागत भी प्रतिटन 6750 रुपए हो जाएगी और समय भी 5-6 दिन से बढ़कर 20-25 दिन का हो जाएगा। इस नए रूट के कारण पंजाब सरकार को कोयले के लिए प्रति टन लगभग 1800 रुपए अतिरिक्त चुकाने पड़ेंगे।
मोदी सरकार के इस धूर्ततापूर्ण निर्णय से उपभोक्ताओं को बिजली प्रति यूनिट 1.40 रुपए महंगी मिलेगी।
मोदी सरकार ने कोयला आपूर्ति के इस पूरे रूट को 'रेल शिप रेल' (RSR) नाम दिया है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी की ओर से इस सम्बंध में पंजाब सरकार को चिट्ठी भेजी गई है।
इस पत्र में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने पंजाब सरकार को निर्देश दिया है कि यदि वह पूर्वी भारत से अपने राज्य के थर्मल प्लांट के लिए कोयला लाना चाहती है तो उसे पहले झारखंड से समुद्र के रास्ते श्रीलंका के पास एक बंदरगाह तक ले जाए और फिर वहां से उसे गुजरात के मुंद्रा पोर्ट तक लाए। मुंद्रा पोर्ट से यह कोयला रेल के जरिये पंजाब लाया जाए।
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