छतरपुर। बागेश्वर धाम के महाराज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री मंच से घोषणा करते हैं कि वे किसी से एक रुपया भी दक्षिणा नहीं लेते। इसके बावजूद ये ऐलान करते हैं कि वे करोड़ों रुपए की लागत वाला कैंसर अस्पताल बनाएंगे… संस्कृत महाविद्यालय बनावाएंगे… 121 गरीब कन्याओं का नि:शुल्क विवाह करवाएंगे। लोगों के लिए भंडारा भी कराते हैं। बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि बिना पैसे के ये कैसे संभव है। बागेश्वर महाराज के पास कौन सा अर्थतंत्र है, जिससे ये सारे काम बिना दक्षिणा लिए संभव है।
सामुदायिक भवन में दरबार जारी
मंदिर के सामने बने 12 लाख रुपए की लागत से बने सामुदायिक भवन में ही अभी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का दरबार लग रहा है। इसके ऊपर बने दो मंजिला भवन को लग्जीरियस लुक दिया जा रहा है। इसी भवन में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके खास सेवादार रहते हैं।हालांकि, इस भवन के पीछे उनकी निजी स्वामित्व की जमीन पर उनका नया ‘दरबार भवन’ बनकर लगभग तैयार हो चुका है। जल्द ही वहां दरबार लगेगा। सामुदायिक भवन के पीछे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके चचेरे भाइयों की पैतृक जमीन है। खेती वाली जमीन अब दुकान और होटल में तब्दील हो चुकी है। यानी जो भी कमाई होगी वो धीरेंद्र के परिवार को ही मिलेगी।
5100 रुपए का श्रीयंत्र, यज्ञ में शामिल होने 51 हजार की राशि
बागेश्वर मंदिर जाने वाले रास्ते के एंट्री करते ही एक काउंटर लगा है। काउंटर पर पहुंचते ही आपको यहां अर्थतंत्र कैसे काम करता है, यह समझ आने लगेगा। यहां 5100 रुपए में श्रीयंत्र मिलता है। दावा किया जाता है कि इस यंत्र से गरीबी नहीं आती। 200 रुपए की लागत वाला यह यंत्र 5100 रुपए में बेचा जा रहा है। इसके लिए भी पहले से रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है। आसपास ढेर सारी दान पेटियां रखी हुई हैं, जहां लोग नकद दान पेटी में डालते हैं।
दान के लिए नकदी न हो तो ऑनलाइन पेमेंट के लिए स्कैन कोड भी लगे हैं। एचडीएफसी बैंक का अकाउंट नंबर और आईएफएससी कोड भी लिख रखा है। यहां कई भक्तगण अपने मोबाइल से इस बैंक खाते में राशि ट्रांसफर करते नजर आए। मंदिर समिति का कोई सेवादार नहीं बता पाया कि कितनी राशि खाते में जमा हो रही है। वो तो बस इतना बताते हैं कि एचडीएफसी के बमीठा ब्रांच में मंदिर के चढ़ावे और अन्य राशि जमा होती है।
इसके अलावा काउंटर पर ही कन्या विवाह के लिए मदद की अपील भी की गई है। उसका दान भी एंट्री काउंटर पर लिया जाता है। वहीं यज्ञ में यजमान बनने के लिए भी आपको इसी काउंटर पर अपना नाम लिखाना होता है, जिसकी राशि 21 से 51 हजार रुपए है। ऊपर के उदाहरणों से समझ सकते हैं कि एक काउंटर किस तरह से सिंगल विंडो का काम करता है जहां सारे काम होते हैं।
पार्किंग - 33 लाख में चचेरे भाई ने ठेका लिया, रोज की वसूली 50 हजार से ज्यादा
ऑटो और ई रिक्शा की संख्या इतनी है कि सड़क पर पैदल चलने के लिए जगह कम पड़ जाती है। ऑटो वाले बताते हैं कि रोजाना 500 से ज्यादा ऑटो और ई रिक्शा यहां यात्रियों को हाईवे से गढ़ा गांव के बागेश्वर धाम तक लाने के काम में लगे हैं। किराया 20 रुपए प्रति सवारी तय है। हर फेरे पर इन ऑटो वालों को पार्किंग चार्ज के नाम पर 20 रुपए देने पड़ते हैं। एक ऑटो वाला दिनभर में कम से कम 10 चक्कर तो लगा ही लेता है। इस तरह उसे 200 रुपए पार्किंग के देने पड़ते हैं। ऑटो वाले इससे नाराज हैं। वे चाहते हैं दिनभर में एक बार ही पार्किंग चार्ज लिए जाने चाहिए।इसके अलावा हजार से ज्यादा कारें और बसें भी यहां पहुंचती हैं। शुरुआती अनुमान के मुताबिक पार्किंग से ही रोजाना 50 हजार से एक लाख रुपए की वसूली होती है। मंगलवार-शनिवार को सबसे अधिक कमाई होती है। ग्राम पंचायत ने पार्किंग के ठेके लिए टेंडर निकाला था, जिसका बेस प्राइज 10 लाख था, लेकिन धीरेंद्र शास्त्री के चचेरे भाई लोकेश गर्ग ने इसे 33.18 लाख रुपए में ले लिया।
25 लाख भक्त चढ़ाते हैं 7 करोड़ के नारियल
बागेश्वर धाम में आम दिनों में 20 हजार लोग रोज पहुंचते हैं। मंगलवार और शनिवार को इनकी संख्या 2 से 2.50 लाख होती है। औसतन 25 लाख लोग महीने में यहां पहुंचते हैं। अर्जी का एक नारियल 30 रुपए में मिलता है। हनुमान जी को चढ़ने वाला पेड़े की कीमत 400 रुपए किलो तक है। अनुमान के मुताबिक 7 करोड़ रुपए के तो सिर्फ महीने में नारियल चढ़ते हैं। नारियल यहां आने वाला कमोबेश हर व्यक्ति लेता है, क्योंकि अर्जी अलग-अलग रंग के कपड़ों में लिपटे नारियल से ही लगती है। इसके अलावा लोग अपनी अपनी श्रद्धा से पेड़े और फूल-मालाएं भी लेते हैं।
पानी - पैक वाटर भी चुनिंदा ब्रांड का मिलता है
हमारी टीम ने बागेश्वर धाम के आसपास लगी दुकानों पर एक ब्रांड विशेष की पानी की बोतलें देखीं। धाम में आने वाले भक्तों को सबसे ज्यादा जरूरत पीने के पानी की होती है।
ऐसे ही ऑटो वाले से पूछा कि क्या दूसरे ब्रांड की पानी की बोतल मिलेगी तो उसने बताया कि यहां हर ब्रांड का पानी नहीं बिकता। सिर्फ उसी ब्रांड का पानी बिकता है, जिसकी बाबा के सेवादारों से पटरी बैठती है।
दुकान - 100 से ज्यादा दुकानें, किराया लाख रुपए महीना तक
बागेश्वर धाम पहुंचने के रास्ते में 100 से ज्यादा दुकानें हैं। दुकानों के नाम पर खेत किनारे सिर्फ टेंट लगे हैं। इन्हीं टेंट में दुकानदारों ने अपने-अपने रैक बना लिए हैं। मंदिर के करीब वाली दुकानों का किराया एक लाख रुपए महीने है। जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, किराया 80 हजार से घटता हुआ 50 हजार रुपए महीने तक हो जाता है। बताया जाता है कि ज्यादातर जमीन यहां धीरेंद्र और उनके परिवार के सदस्यों की है। किराया भी उन्हीं को जाता है।
प्रसाद की दुकान चलाने वाले राहुल बताते हैं कि उनकी दुकान का किराया 60 हजार रुपए है। दुकान के नाम पर उन्हें केवल खाली जमीन मिली थी। शास्त्री जी के परिवार की जमीन है। दिल्ली से आईं लक्ष्मी 14 पेशी पूरी कर चुकी हैं। कहती हैं कि बार-बार आना संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने 30 हजार रुपए महीने में परिक्रमा मार्ग के पीछे की तरफ जमीन किराए पर ले ली है। वे खुद भी ठहरते हैं और जो जरूरतमंद आ जाते हैं, उन्हें भी मदद हो जाती है।
धीरेंद्र शास्त्री के वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर ज्यादा देखे जा रहे हैं। उनका सोशल मीडिया मैनेजमेंट देखने वाले केशव मेहता बताते हैं कि यूट्यूब पर 7 करोड़, फेसबुक पर 6 करोड़ व्यूज हैं। संस्कार चैनल के साथ उनका टाइअप है, लेकिन महाराज उनसे कोई पैसा नहीं लेते। मेहता कहते हैं कि महाराज तो किराए की गाड़ी में घूमते हैं। लोग भले ही कहें कि हमें लाखों रुपए का रेवेन्यू मिल रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं। संस्कार चैनल महाराज के कार्यक्रमों की व्यवस्था करता है, वही पैसा लेता है। महाराज उनसे कोई पैसा नहीं लेते।
घोष परिवार ने सवा करोड़ की जमीन 30 लाख में धीरेंद्र शास्त्री को बेच दी
बागेश्वर धाम में सबसे ज्यादा कमाई दुकानों से हो रही है। इस कारण से वहां की जमीनें भी ली जा रही हैं। यहां बागेश्वर धाम के पास घोष परिवार की जमीन है। इसमें 1.5 एकड़ जमीन 30 लाख रुपए में पिछले दिनों धीरेंद्र शास्त्री को बेची गई है। इसकी बाजार भाव से कीमत सवा करोड़ रुपए है। ये वही जमीन है, जिस पर कब्जे का आरोप लगाकर घोष परिवार नवंबर महीने में 5 दिन तक छतरपुर कलेक्ट्रेट में धरने पर बैठा था।
यहां ये बात उल्लेखनीय है कि बागेश्वर धाम में बढ़ रही भीड़ के बाद यहां जमीन के दाम 80 लाख रुपए एकड़ तक हो गए हैं। घोष परिवार की डेढ़ एकड़ पैतृक जमीन बागेश्वर मंदिर से लगी हुई है। इसका खसरा नंबर 229 और रकबा 1.185 हेक्टेयर है। बागेश्वर धाम सरकार का तालाब, मरघट और पहाड़ सहित सामुदायिक भवन पर अभी भी कब्जा बरकरार है। ताजा अपडेट ये है कि बागेश्वर सरकार कहे जाने वाले धीरेंद्र शास्त्री ने गांव के 15 लोगों के खेत से बायपास निकलवा दिया है।
पूर्व विधायक प्रजापति बोले- एसपी-कलेक्टर को पक्षकार बनाएंगे
सरकारी रिकॉर्ड में मंदिर से सटे खसरा नंबर 4852, 482, 483 और 428 (जो क्रमश: 0.421 हेक्टेयर, 0.388 हेक्टेयर, 0.401 हेक्टेयर और 1.121 हेक्टेयर है) की जमीन राजनगर तहसील के सरकारी रिकॉर्ड में श्मशान, तालाब और पहाड़ के रूप में दर्ज है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके सेवादार तालाब काे पाटकर निर्माण कार्य करा रहे हैं। श्मशान में शव जलाने पर रोक लगा दी गई है। खसरा नंबर 428 की 1.121 हेक्टेयर श्मशान में दर्ज है, लेकिन यहां 12 दुकानें बनाकर किराए से दे दी गई हैं। प्रशासन इसे अब तक खाली नहीं करा पाया है।
पूर्व विधायक आरडी प्रजापति कहते हैं कि मैं इस मामले में एसपी-कलेक्टर को पक्षकार बनाते हुए कोर्ट में खड़ा करूंगा। प्रजापति कहते हैं कि मरघट की जमीन पर कब्जा हो गया और एसपी कलेक्टर चुप बैठे रहे। ये कैसा संविधान है कि लोग मरघट में लाशें नहीं जला पा रहे हैं।
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