बाइडन की यूक्रेन यात्रा के मायने ...


अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन युद्ध के एक साल पूरे होने के कुछ दिनों पहले अचानक कीव पहुंच कर पूरी दुनिया को चौंका दिया। उनकी यात्रा ने जहां कई अहम संदेश दिए हैं, वहीं कुछ सवाल भी उठे हैं। हालांकि इस यात्रा की पहले से घोषणा नहीं की गई, लेकिन यह पूरी तरह सुनियोजित और सुविचारित यात्रा थी। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति का इस तरह युद्ध क्षेत्र में पहुंचना, किसी भी सूरत में सामान्य नहीं माना जा सकता। निश्चित रूप से यह यूक्रेन को अमेरिकी समर्थन और सहायता जारी रखने का एक सशक्त संकेत है।
वैस तो यह यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका के अंदर ही इस बात पर राजनीतिक मतभेद बढ़ रहे हैं कि भविष्य में यूक्रेन को दी जाने वाली मदद कितनी और कैसी होनी चाहिए। इसके साथ ही यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि यदि अमेरिका यूके्रन के साथ है तो नाटो देश क्यों कदम पीछे हटाते दिख रहे हैं। बाइडन की यात्रा पूरी होते ही अमेरिकी विदेश मंत्री ने यूक्रेन को 45 करोड़ डॉलर की और सैन्य सहायता देने का एलान कर दिया। अमेरिका अब तक उसे 24.9 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देने की घोषणा कर चुका है। दोनों तरफ की तैयारियों को देखते हुए यह बात तय होती जा रही है कि एक साल पूरा होने के मौके पर युद्ध और तेज हो जाएगा।
रूसी हमलों में संभावित बढ़ोतरी के मद्देनजर यूक्रेन तो हथियार इक_ा करने में लगा ही हुआ था, यह भी कहा जा रहा था कि चीन इस युद्ध में रूस से अपनी दूरी कम करने का मन बना चुका है। अमेरिका का आरोप है कि चीन, रूस को हथियारों की सप्लाई करने जा रहा है। उसने इसे लेकर चीन को आगाह भी किया है, जिसके जवाब में चीन ने भी आक्रामक तेवर दिखाए हैं। वैसे, युद्ध के शुरू होने से पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन की यात्रा पर गए थे। तब दोनों देशों ने कहा था कि उनकी दोस्ती की कोई सीमा नहीं (नो लिमिट फ्रेंडशिप) है। अब जब युद्ध दूसरे साल की ओर बढ़ रहा है तो कहा जा रहा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग रूस जा सकते हैं। उन्हें रूस से इसका न्योता मिला है। अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका के साथ चीन-रूस की तल्खी और बढऩा तय है।
इस बीच, पुतिन ने मंगलवार को एक संबोधन में कहा कि वह अमेरिका के साथ परमाणु अस्त्र नियंत्रण संधि को निलंबित करने जा रहे हैं, जो 2011 में लागू हुई थी। वैसे, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि रूस इस संधि का उल्लंघन कर रहा है, इसलिए इस संधि के कोई मायने नहीं रह गए हैं। पुतिन ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि पश्चिमी देशों के उकसावे की वजह से युद्ध हुआ और वह यूक्रेन में सैन्य अभियान जारी रखेंगे।  इधर, बाइडन के ये तेवर अमेरिका में चुनावों को देखते हुए भी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। वहां बाइडन के मुकाबले ट्रंप फिर से जोर मारने लगे हैं और बाइडन के खाते में खास उपलब्धियां नहीं हैं। इसीलिए माना जा रहा है कि बाइडन अब रूस-यूके्रन युद्ध को परिणाम तक पहुंचाने में जुट गए हैं। वो इस युद्ध की जीत को अपने खाते में शामिल करना चाहते हैं। 
इस बीच, यूके्रन युद्ध की कीमत खासतौर पर गरीब और विकासशील देश चुका रहे हैं, जिन्हें खाद्य संकट, फर्टिलाइजर की कमी और पेट्रोल-डीजल की महंगाई से जूझना पड़ रहा है। कई देश तो इसी वजह से जबरदस्त आर्थिक संकट में फंस गए हैं। बाइडन की यात्रा के बाद ही ये खबरें भी आने लगीं कि भारत सहित कई देश इस युद्ध का समाप्त करने के प्रयास कर सकते हैं। जी 20 समूह की बैठकें इस बार भारत में ही हो रही हैं। इन बैठकों में भी युद्ध रोकने और दुनिया में शांति कायम करने की बात की जा रही है। रूस को भी अमेरिका से हुई परमाणु संधि को कायम रखना चाहिए और बाइडन को युद्ध में तेजी लाने के बजाय उसे समझौते के करीब लाने के प्रयास करने चाहिए, शांति के पक्षधर यही चाहते हंै। वैसे भी दुनिया में महंगाई और बढ़ती आर्थिक असमानता के मुद्दे ज्वलंत हैं, जिस कारण कई देश आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। विश्व समुदाय को इस पर अधिक फोकस करना चाहिए। 
-संजय सक्सेना 

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