संपादकीय: बदलता मौसम, सिमटती सर्दी
देश की राजधानी दिल्ली हो या मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल, अधिकांश इलाकों में सिमटती सर्दी से मौसम का खतरनाक बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। यहां के ठंड से जुड़े ताजा आंकड़े विशेषज्ञों का ध्यान खींच रहे हैं। इस क्षेत्र में ठंड का मौसम आम तौर पर मध्य नवंबर से फरवरी के आखिर तक माना जाता रहा है। लेकिन पिछले करीब एक दशक का ट्रेंड बताता है कि दिसंबर में ठंड कम होती जा रही है और जनवरी में ज्यादा।
मौसम विभाग की शब्दावली की बात करें तो ठंड की तीव्रता दर्शाने वाली दो श्रेणियां हैं- शीत दिवस या कोल्ड डे और शीत लहर या कोल्ड वेव। कोल्ड डे उस दिन माना जाता है जिस दिन न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे हो और उच्चतम तापमान सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस नीचे। शीत लहर तब मानी जाती है, जब किसी इलाके में तापमान या तो 4 डिग्री सेल्सियस गिर जाए या न्यूनतम तापमान सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस नीचे हो। इस पैमाने पर देखा गया है कि पिछले कुछ वर्षों से दिसंबर में कोल्ड डेज और कोल्ड वेव दोनों की संख्या अपेक्षाकृत कम हो रही है। उदाहरण के लिए, पिछले दिसंबर में पूरे महीने कोई कोल्ड वेव नहीं रही। कोल्ड डे भी 2 ही रहे।
उदाहरण के तौर पर दिल्ली के आंकड़ों पर ही नजर डालते हैं। दिल्ली में 2021 में एक और 2020 में दो कोल्ड डेज रेकॉर्ड किए गए थे, जबकि 1990 से 2010 के बीच दिसंबर महीने के दौरान हर साल औसतन 8-9 कोल्ड वेव और 12-15 कोल्ड डेज दर्ज किए गए थे। जनवरी की बात की जाए तो इस बार दिल्ली में 8 कोल्ड डेज दर्ज हुए जो पिछले 15 साल में सबसे ज्यादा हैं। यही नहीं, इस बार पिछले एक दशक की सबसे लंबी कोल्ड वेव (5 से 9 जनवरी) भी इसी महीने पड़ी। हालांकि जनवरी शुरू से साल का सबसे ठंडा महीना रही है, लेकिन वैज्ञानिकों में आम राय है कि करीब एक दशक पहले तक इस इलाके में ठंड नवंबर के आखिर से जनवरी के बीच अपेक्षाकृत ज्यादा उदारता से फैली रहती थी।
सवाल यह है कि अब अगर यह जनवरी में सिमटती जा रही है तो इसे किस रूप में देखा जाना चाहिए? मौसम विभाग और इससे जुड़े विशेषज्ञों की राय है कि इतनी कम अवधि और इतने सीमित क्षेत्र के आंकड़ों के आधार पर ज्यादा बड़े नतीजे नहीं निकाले जाने चाहिए। उनके मुताबिक तापमान में देखे जा रहे इन बदलावों के पीछे बहुत सारे लोकल और ग्लोबल फैक्टर हो सकते हैं। इन्हें क्लाइमेट चेंज की प्रक्रिया से जोडक़र नहीं देखा जा सकता। लेकिन केवल दिल्ली का ही मामला नहीं है। भोपाल और मध्यप्रदेश के कई अन्य शहरों में भी सिमटती सर्दी ने ध्यान खींचा है। भोपाल में इस साल बहुत कम दिन ऐसे रहे, जब अलाव जलाने की आवश्यकता पड़ी हो। सुबह और रात के समय सर्दी कुछ ठीक ठाक रही, बाकी दिन में सर्दी का असर कम ही देखा गया। मावठा भी अनियमित होता जा रहा है। यहां खास बात यह है कि मावठा केवल फसलों के लिए ही अच्छा नहीं होता, अपितु मौसम को संतुलित करने के लिए भी होता है। मावठा के बाद एकदम सर्दी तेज हो जाती है, जिससे फसलों को खास तौर पर फायदा होता है।
मौसम विशेषज्ञ ध्यान दिलाते हैं कि मामला सिर्फ दिसंबर और जनवरी का नहीं, फरवरी में भी गर्मी सामान्य से ज्यादा देखी जा रही है। उनके मुताबिक इन बदलावों का संबंध क्लाइमेट चेंज अर्थात जलवायु परिवर्तन से होने की संभावना पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। पहले भी ऐसी रिपोर्टें आई हैं जिनमें मौसम में बदलावों के पैटर्न को समझते हुए फसलों में परिवर्तन की जरूरत पर जोर दिया गया है। ये ऐसे पहलू हैं जिन्हें टालना किसी के हक में नहीं होगा। गर्मी, सर्दी और बरसात, सभी मौसम आगे-पीछे खिसकते देखे जा रहे हैं। पहले जिस तरह मौसम हुआ करते थे, वो अब नहीं होते। कटकटाती सर्दी मैदानी इलाकों में कम होती जा रही है। हालांकि पहाड़ी इलाकों में भी यही हाल हो गया है। हिमालय और उसकी तराई वाले इलाकों में भी मौसम में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ग्लेशियर पिघलने की घटनाओं का संबंध भी जलवायु परिवर्तन से माना जाता है।
इस बदलते मौसम और सर्दी, गर्मी, बारिश के बिगड़ते संतुलन को गंभीरता से लेना होगा, क्योंकि इससे मनुष्य, जानवरों से लेकर वनस्पतियों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। बीमारियों का प्रसार अधिक होता है, जो अभी भी देखने को मिल रहा है। इसके लिए पर्यावरण विशेषज्ञों और मौसम के जानकारों की चेतावनियों व शोधों को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक कदम उठाने होंगे।
-संजय सक्सेना
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