सडक़ दुर्घटनाओं का देश....!


देश में साल 2021 में हर घंटे 18 लोगों ने सडक़ हादसों में अपनी जान गंवाई। हर रोज़ औसतन 1130 हादसों में 422 लोगों की मौत हुई। 2021 में 4 लाख 12 हज़ार 432 रोड एक्सीडेंट हुए, जिनमें 1 लाख 53 हज़ार 972 लोगों की जान चली गई और 3 लाख 84 हज़ार 448 लोगों को चोटें आईं। 2021 के दौरान सीट बेल्ट न लगाने पर सडक़ हादसे में 16 हज़ार 397 लोग मारे गए। इनमें ड्राइवर की संख्या 8,438 रही। वहीं 7,959 अन्य यात्रियों की मौत हुई। हेलमेट न पहनने पर हादसे में घायल होने वाले लोगों की गिनती 93,763 बताई गई है. और इसके अलावा सीट बेल्ट न लगाने पर हादसे में घायल लोगों की कुल संख्या 39,231 बताई गई।
रिपोर्ट का दावा है कि 2019 की तुलना में 2021 में सडक़ हादसों की संख्या में 8 फीसदी कम हुई है। वहीं घायलों की संख्या में भी 14 फीदसी की कमी आई है, लेकिन यह कमी राहत वाली तो नहीं है। और हां, 2019 की तुलना में 2021 में सडक़ हादसों में मरने वालों की संख्या में 1.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि हादसे कम होने के साथ-साथ मौतों का आंकड़ा भी कम होना चाहिए। राज्यों की बात करें तो पता चलता है कि साल 2021 में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सडक़ हादसे हुए। उत्तर प्रदेश के बाद तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान का नंबर आता है।
मंत्रालय की रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है की इन सडक़ हादसों के पीछे शराब पीकर गाड़ी चलाना, गलत दिशा में गाड़ी चलाना, लाल बत्ती पार करना और गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कुल हादसों  में से 8.2 प्रतिशत मौतें हुई हैं। इसमें उल्लेख करने वाली बात यह है कि 67.5 प्रतिशत हादसे सीधी सडक़ों पर हुए, जबकि घुमावदार और खराब सडक़ों पर 13.9 फीसदी हादसे हुए। मध्यप्रदेश में भी हादसे भले ही कुछ राज्यों से कम हुए, लेकिन अभी भी ज्यादा हो रहे हैं। 
खड़े ट्रक या बस में टकराने से होने वाली घटनाओं की संख्या में कमी होते नहीं दिख रही है। ऐसी रिपोर्ट ये जरूर दिखाती है कि हेलमेट न पहनने या सीट बैल्ट न बांधने के कारण इतनी दुर्घटनाएं या मौतें हुई हैं, लेकिन यह नहीं बताया जाता कि सडक़ निर्माण में तकनीकी गलतियों के साथ ही हाइवे पुलिसिंग की कमी, समय पर इलाज न उपलब्ध हो पाने के कारण भी बड़ी संख्या में मौतें होती हैं। शहरों के अंदर होने वाली दुर्घटनाओं में तो यातायात और ऐसी स्थानीय खामियां भी बड़ा कारण हैं, लेकिन इन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यातायात विभाग और सरकार ले दे कर हेलमेट और सीट बैल्ट पर आ जाती है। 
हाइवे पर दुर्घटनाओं की सबसे ज्यादा संख्या देर रात से तडक़े सुबह तक होती देखी जाती हैं। इसे रोकने के लिए उन दो-तीन घंटों में या तो वाहन चलाना ही बंद कर देना चाहिए, या फिर कुछ देर ब्रेक लेने के बाद फिर गाड़ी चलाना चाहिए। अचानक आने वाली झपकी सबसे ज्यादा खतरनाक होती है। और शहरों में तो सीधे तौर पर सडक़ और यातायात की खामियां सबसे ज्यादा दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती हैं। इनसे बचने के लिए भी सरकार से लेकर तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं को भी गंभीरता से उपाय करने होंगे। 
-संजय सक्सेना 

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