बहस लोकतंत्र के लिए जरूरी
हालांकि संसद के बजट सत्र की शुरुआत हंगामे के साथ ही हुई, लेकिन कम से कम राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर तो चर्चा हुई और लोकसभा में परंपरा के मुताबिक सर्वसम्मति से पारित भी हो गया। इस दौरान तीखे भाषण हुए। विपक्ष ने सत्ता पक्ष पर आरोप लगाए और सरकार की ओर से उसका जवाब भी दिया गया। राहुल गांधी ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए और प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तीखे हमले किए।
लेकिन यह तो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसदीय चर्चा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। विशेष तौर पर मौजूदा सत्र की बात की जाए तो विपक्ष की ओर से सबसे बड़ा मुद्दा अडाणी मामले में संयुक्त संसदीय समिति यानि जेपीसी जांच की मांग है। अमेरिकी संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से जुड़े पहलुओं पर बैंकिंग और शेयर बाजार नियामकों की ओर से भी पहल तो हुई, लेकिन जांच की दिशा में कोई ठोस कदम उठाए गए हों, यह नहीं लगता। ऐसे में संयुक्त संसदीय समिति की जांच की मांग कहीं न कहीं उचित भी नजर आ रही है।
सबसे आवश्यक मुद्दा यह है कि नियामक संस्थाओं की ओर से इस मामले पर तस्वीर जल्द से जल्द साफ होना चाहिए। उसका कारण यह है कि शेयर बाजार किसी भी तरह की अनिश्चितता को ठीक नहीं मानता। इसलिए जितनी जल्दी तस्वीर साफ होगी, उतनी ही जल्दी इस मामले का साया स्टॉक मार्केट से हटेगा। विपक्ष ने पहले इसी मुद्दे पर सदन ठप कर रखा था। फिर उसने धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में शामिल होने का फैसला किया। यह ठीक भी रहा, क्योंकि चर्चा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के क्रम में सरकार पर कई आरोप लगाए। वहीं इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए सत्ता पक्ष ने कहा कि कांग्रेस नेता ने सदन के मंच का दुरुपयोग किया है।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का समापन विपक्ष पर चुटकी लेते हुए किया। उन्होंने कहा कि जैसे सच सुनने के लिए साहस की जरूरत होती है, वैसे ही झूठे और गंदे आरोप सुनने के लिए भी हिम्मत और धैर्य की जरूरत होती है। ऐसा साहस और धैर्य दिखाने के लिए उन्होंने साथी सदस्यों का हंसते हुए धन्यवाद किया। जहां तक विपक्ष के आरोपों का जवाब देने की बात है तो इशारों में प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के अच्छे कामकाज और इस दौरान हासिल हुई उपलब्धियों का जिक्र करके उनका जवाब भी दे दिया। उन्होंने बताया कि उनके शासनकाल में पूरे देश और देशवासियों की उन्नति हुई है। पीएम मोदी का कहना था कि देशवासियों का जो विश्वास उनके काम की वजह से बना है, वह झूठे आरोपों से नहीं हिलने वाला।
सरकार ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया कि एजेंसियां स्वतंत्र ढंग से अपना काम कर रही हैं और जो भी जरूरी कदम हैं, वे उठाए जा रहे हैं। लेकिन इसके साथ उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ये कदम जल्द उठाए जाने चाहिए। सेबी जैसी संस्था की ओर से केवल खबरें ही आ रही हैं कि जांच हो रही है, लेकिन अधिकृत तौर पर कोई घोषणा अभी तक हुई नहीं है। हां, सरकार के साथ दिखने के चलते शेयर बाजार में अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में कुछ उछाल फिर से देखने को मिलने लगा है। वैसे भी हमारे देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं या संगठनों द्वारा उठाए गए मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि उनकी जांच की प्रक्रिया कम से कम हमारे देश के मुकाबले तो अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष दिखाई देती है। हमारे यहां जरूर जांच के मामलों में पक्षपात के उदाहरण एक नहीं हजारों मिल जाते हैं। फिर भी हम, अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रिपोर्ट को सिरे से नकार देते हैं, यह कहते हुए कि यह देश के खिलाफ साजिश का हिस्सा है। अब साजिश कौन कर रहा है, यह जनता समझ जाती है।
खैर, यह माना जाना चाहिए कि संसद में बजट सत्र के दौरान बहस होगी। मुद्दों पर चर्चा होगी। वैसे यदि सरकार अडाणी मामले की जांच जेपीसी को दे दे, तो कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि सरकार का ही दावा है कि विपक्ष के आरोप गलत हैं। तो फिर जांच करा ही ली जाए। मामला साफ हो जाएगा। हां, सीबीआई या ईडी जैसी कोई संस्था यदि जांच करती है, तो निश्चित तौर पर संदेह होगा। क्योंकि सरकारी जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को लेकर लगातार आरोप प्रत्यारोप के दौर चल रहे हैं। कई बार आरोपों में दम भी दिखाई देती है। सो संसद में बहस हो, और जनहित के मुद्दों पर हो। साथ ही अडाणी मामले की जांच भी थोड़ी बहुत ही सही, निष्पक्षता के साथ हो, ताकि विपक्ष के आरोपों से सरकार को निजात मिले।
-संजय सक्सेना
----
Post a Comment