संपादकीय ... ये घटना सामान्य नहीं?
पंजाब के अमृतसर में गुरुवार को अजनाला पुलिस स्टेशन में जो भी हुआ, वो एक बड़े खतरे का संकेत कहा जा सकता है। उसे किसी भी तरह से सामान्य नहीं बताया जा सकता। मीडिया रिपोर्टों से सामने आए इसके ब्योरे डराने वाले हैं। कहीं पंजाब में फिर से उग्रवाद की चिंगारी तो नहीं सुलग रही है? नशे की लत में उड़ते पंजाब के अब फिर से एक नए खतरे में जाने की आशंका बलवती होती जा रही है?
हालिया वाकये में अपहरण और मारपीट के एक मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार करती है। गिरफ्तार हुए लोग एक स्थानीय संगठन से जुड़े बताए जाते हैं, जिसका कहना है कि ये लोग बेकसूर हैं और इन्हें तत्काल छोड़ा जाना चाहिए। पुलिस इस दलील को स्वीकार नहीं करती है। इसके बाद पुलिस पर दबाव बनाने के लिए संगठन की अपील पर समर्थक थाने का घेराव करते हैं। बड़ी संख्या में तलवार, बंदूक और लाठियों से लैस भीड़ बैरिकेड्स तोड़ते हुए थाने में घुस जाती है। इस दौरान कई पुलिस वाले घायल होते हैं। इसके बाद पुलिस मान जाती है कि समर्थकों का दावा सही है। उसका कहना है कि समर्थकों द्वारा दिए गए सबूतों से साफ हो गया कि संबंधित व्यक्ति बेकसूर है और इसीलिए पुलिस ने उसे रिहा करना स्वीकार कर लिया। यह पूरा मामला न केवल संदेहों से भरा है अपितु राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति और पुलिस के मनोबल पर बेहद खराब टिप्पणी है।
देखा जाए तो हाल के महीनों में पंजाब में ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिनसे वहां कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं, लेकिन गुरुवार की घटना ने इन सबको पीछे छोड़ दिया। अगर पुलिस से गलती भी हुई हो तो उसके खिलाफ धरने-प्रदर्शन करने का शांतिपूर्ण विकल्प लोगों के पास मौजूद है, जिसका इस्तेमाल देश भर में लोग करते रहे हैं। यहां जिस तरह से तलवारें लिए लोग पुलिस स्टेशन में घुसे, उसे धरना-प्रदर्शन तो कतई नहीं कहा जा सकता। ये तो अराजकता ही कही जाएगी।
जहां तक पुलिस का सवाल है तो एफआईआर दर्ज करने और उसमें गिरफ्तारी करने से पहले क्या घटना से जुड़े तथ्यों को खंगाल लेना उसकी जिम्मेदारी का हिस्सा नहीं होता? अगर फिर भी, उससे गलती हो गई थी तो जब संगठन से जुड़े लोग अपीलें करते हुए इस गलती को सुधारने की मांग कर रहे थे, तब उसने फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की? जब लोग तलवारें लिए थाने में घुसे, तभी क्यों उसे यह इल्म हुआ कि उससे गलती हुई है?
कहीं न कहीं यह मामला गलती होने और उसे सही करने का उतना नहीं लगता, जितना पुलिस के दबाव में झुकने का। पुलिस की किसी कार्रवाई का सही या गलत होना अदालती प्रक्रिया में तय होता है। अगर इस तरह हथियारबंद भीड़ के कहे मुताबिक चीजें तय होने लगें तो कानून के राज का भला क्या मतलब रह जाएगा? कुछ हलकों से ऐसे आरोप भी सामने आए हैं कि उस संगठन से जुड़े लोग खालिस्तान समर्थक हैं। उस पहलू से भी मामले की जांच होना ही चाहिए। यहां मसला कानून-व्यवस्था का भी है। किसी संगठन को कानून हाथ में लेने और पुलिस-प्रशासन को इस तरह बंधक बना लेने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? और सरकार की तरफ से इस मामले में क्या कार्यवाही की गई? किसी उच्च स्तरीय जांच के आदेश क्यों नहीं किए गए?
इस घटना के परिप्रेक्ष्य में जो बातें सामने आ रही हैं, वो इससे कहीं ज्यादा खतरनाक लगती हैं। जिस संगठन ने ये सब किया, उसका प्रमुख है अमृतपाल सिं। सोशल मीडिया एक्टिविटी से पता चलता है कि अमृतपाल पिछले 5 सालों से सिखों से संबंधित मुद्दों पर मुखर होकर बोल रहा है। वह 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का भी हिस्सा बना, खासकर दीप सिद्धू से जुड़े आंदोलन का। अमृतपाल सिंह का कहना है कि कृषि कानून हों, पंजाब में पानी का संकट हो, नशीली दवाओं का संकट हो, यूपी और बिहार से लोगों का पंजाब में पलायन हो, राजनीतिक असंतुष्टों की गिरफ्तारी हो, पंजाबी भाषा को कमजोर करना हो, ये सभी सिखों के मूक नरसंहार का हिस्सा हैं।
खालिस्तान समर्थक माना जाने वाला अमृतपाल सिंह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी धमकी दे चुका है। अमृतपाल ने रविवार को पंजाब के मोगा जिले के बुधसिंह वाला गांव में कहा था कि इंदिरा ने भी दबाने की कोशिश की थी, क्या हश्र हुआ? अब अमित शाह अपनी इच्छा पूरी कर के देख लें। अमृतपाल पंजाबी सिंगर दीप सिद्धू की बरसी में आया था। दीप सिद्धू भी खालिस्तान समर्थक माना जाता था। इसलिए अब न केवल अजनाला पुलिस स्टेशन में हुई घटना की तत्काल उच्चस्तरीय जांच होना चाहिए, अपितु इस संगठन की गतिविधियों पर भी गहरी नजर रखनी होगी। केंद्र सरकार भी इस मामले में हस्तक्षेप कर सकती है, क्योंकि संगठन का मुखिया एक थाने में अराजकता फैलाने का ही नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री को धमकी देने का आरोपी भी बताया जा रहा है। पंजाब को आने वाले खतरे से बचाने के उच्च स्तर पर प्रयास होना चाहिए, क्योंकि वहां बड़ी मुश्किल से शांति व्यवस्था कायम हुई है।
-संजय सक्सेना
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