बीबीसी यानि ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन। दुनिया भर में निष्पक्ष समाचारों के लिए प्रसिद्ध एक नाम। पिछले दिनों ही जब उसने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक डाक्यूमेंट्री बनाई। उसके बाद हमारे यहां तूफान खड़ा हो गया। और कुछ ही दिन बाद बीबीसी के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों पर आयकर विभाग की छापेमारी हो गई। सवाल तो उठेगा ही, क्या आयकर का सर्वे बनाम छापा, सामान्य तौर पर की गई कार्रवाई है? या डाक्यूमेंटी बनाने के बाद सरकार के संकेत पर की गई बदले की कार्रवाई?
यहां विचारणीय दो मुद्दे हैं। पहला मुद्दा तो आयकर, सीबीआई और ईडी जैसी संस्थाओं की बनती इमेज। दूसरा मुद्दा बीबीसी वाला है। जहां तक इन संस्थाओं की इमेज यानि प्रतिष्ठा की बात है, तो पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरी ही है। इन्हें सरकार की जेबी संस्थाओं के रूप में अधिक जाना जाता है। विपक्ष हमलावर है और सरकार की तरफ से शायद ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा, जिससे विपक्ष के आरोप नकारे जा सकें। आयकर, सीबीआई और ईडी को सीधे-सीधे सरकार के हथियार के रूप में ही देखा जाने लगा है। इसके पीछे प्रमुख कारण, इनकी छापामारी या कार्रवाई की हद है, जो केवल विपक्षी नेताओं या उन संस्थाओं, कारोबारियों तक ही सीमित रही है, जो सरकार के खिलाफ माने जाते हैं।
इसीलिए आज बीबीसी पर मारे गए छापों की चर्चा हो रही है। यदि इस समाचार एजेंसी की बात करें तो बीबीसी उस देश से संबंधित समाचार माध्यम है, जहां प्रधानमंत्री अपनी गलती होने पर अर्थदंड भुगतने को तैयार रहता है। कुछ ही दिन पहले ब्रिटेन की संसद में बीबीसी का ब्यौरा रखा गया था। वो हिसाब-किताब का ब्यौरा था। इसमें उसकी पूरी जानकारी दी गई थी। इतनी पारदर्शिता भारतीय संस्थाओं में कभी नहीं देखी गई। शायद, हमारे आयकर विभाग के पास इसकी जानकारी नहीं होगी, ऐसा कहा जा रहा है, क्योंकि आर्थिक ब्यौरा यदि किसी सदन के पटल पर रखा जाता है, तो फिर उसके बाद उसके सर्वे की आवश्यकता ही समाप्त हो जाना चाहिए, ऐसा माना जाता है।
बीबीसी के छापों का मुद्दा केवल भारत तक ही सिमट कर रह जाएगा, ऐसा भी नहीं है। बात निकली है तो दूर तक तो जाएगी। इसके बाद भी बीबीसी का रवैया पूरी तरह से संतुलित देखा गया। जिस तरह से बीबीसी दूसरों के बारे में समाचार लोगों तक पहुंचाती रही है, वैसे ही खुद के बारे में भी सूचना दे रही है। जिस डॉक्यूमेंट्री को आयकर छापों की वजह माना जा रहा है, उसकी जानकारी भी बीबीसी की वेबसाइट पर है कि बीबीसी ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया था, जिसके कुछ हफ्ते बाद नई दिल्ली और मुंबई स्थित दफ़्तरों की तलाशी ली गई हालाँकि ये डॉक्यूमेंट्री भारत में प्रसारण के लिए नहीं थी। यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी। उस समय भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस डॉक्यूमेंट्री में कई लोगों ने गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए थे। केंद्र सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को प्रौपेगैंडा और औपनिवेशिक मानसिकता के साथ भारत-विरोधी बताते हुए भारत में इसे ऑनलाइन शेयर करने से ब्लॉक करने की कोशिश की।
बीबीसी का कहना था कि भारत सरकार को इस डॉक्यूमेंट्री पर अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया था, लेकिन सरकार की ओर से इस पेशकश पर कोई जवाब नहीं मिला। बीबीसी का कहना है कि इस डॉक्यूमेंट्री पर पूरी गंभीरता के साथ रिसर्च किया गया, कई आवाजों और गवाहों को शामिल किया गया और विशेषज्ञों की राय ली गई और हमने बीजेपी के लोगों समेत कई तरह के विचारों को भी शामिल किया। बीते महीने, दिल्ली में पुलिस ने इस डॉक्यूमेंट्री को देखने के लिए इक_ा हुए कुछ छात्रों को हिरासत में भी लिया था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय समेत देश की कई यूनिवर्सिटी में इस डॉक्यूमेंट्री की प्रदर्शित किया गया था।
अब ये छापे वास्तव में डाक्यूमेंट्री को प्रसारित करने की प्रतिक्रिया है, तो इसे ठीक नहीं कहा जा सकता। आयकर विभाग को छापे के बाद आज नहीं, कुछ दिन बाद ही सही, ये सार्वजनिक करना चाहिए कि छापों के दौरान क्या गड़बडिय़ां मिलीं? इन छापों का देश में ही विरोध शुरू हो गया है। कारण, मुद्दा बीबीसी का नहीं, मीडिया का है। उस मीडिया का, जो अपने आप को निष्पक्ष मानता है। जो सरकार के दबाव में नहीं आने का दावा करता है। जो मानता है कि सरकार मीडिया पर दबाव बनाती है। और भी...। कल से ही तमाम मीडिया पर यह मुद्दा खबरों और टिप्पणियों के रूप में चल रहा है। साथ ही चल रही हैं सत्तापक्ष और विपक्ष के लोगों की बयानबाजी। भाजपा के एक प्रवक्ता ने तो जैसे अपनी भड़ास ही निकाल कर रख दी है। उन्हें भी शायद बीबीसी की तरह संयत ही रहना था, लेकिन सत्तापक्ष के प्रवक्ताओं में स्वयं का और भाषा का संयम कम ही देखा जाता है। बीबीसी पर पड़े छापे सामान्य सर्वे के रूप में तो नहीं देखे जा रहे, इससे भारत सरकार की छवि दुनिया में और खराब हो रही है।
-संजय सक्सेना
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