क्या टिकटों को लेकर सिंधिया और बीजेपी के बीच बन सकती है टकराव की स्थिति...?


उसूलों पर जहां आंच आए टकराना जरूरी है,
अगर जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है ।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ये पंक्तियां पूर्व में कहीं थीं, वो इसे साबित भी कर चुके हैं। और अब जो परिस्थितियां बन रही हैं, लगता है एक बार फिर ऐसा हो सकता है कि उन्हें टकराना पड़े। अभी तो उनके सहयोगी मंत्रियों को अधिकारों की दरकार है, भविष्य में टिकट के लिए भी ऐसी नौबत आ सकती है। 

असल में राजनीति में सिंधिया परिवार के लिए यह बात खुलकर कही जाती है कि उन्होंने कभी अपने समर्थकों के हक के लिए किसी से भी समझौता नहीं किया. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनवा कर भाजपा पार्टी का दिल तो जीत लिया है, मगर अभी उनके लिए परीक्षा की घड़ी बाकी है. विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही 6 विधानसभा सीटों पर टिकट को लेकर सिंधिया और बीजेपी के बीच टकराव की स्थिति भी बन सकती है।

समर्थकों को सत्ता में पावर नहीं देने पर शुरू हुई थी अदावत

जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे, उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ उनकी अदावत भी समर्थक मंत्रियों को सत्ता का पावर नहीं दिए जाने पर शुरू हुई थी. कांग्रेस सरकार में भी मंत्री रहे तुलसीराम सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी सहित अन्य सिंधिया समर्थक मंत्री व विधायक लगातार इस बात की शिकायत कर रहे थे कि उन्हें अलग-थलग रखा जा रहा है. इसी बात को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए स्पष्ट रूप से कह दिया था कि उन्हें सड़क पर भी उतरना पड़ सकता है.  इसके बाद वसीम बरेलवी का एक शेर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मीडिया के सामने बयां कर दिया. उन्होंने कहा कि - 

उसूलों पर जहां आंच आए टकराना जरूरी है,
अगर जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है ।

इसके बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच खुलकर वाक युद्ध शुरू हो गया. इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ का समर्थन करना शुरू कर दिया, जिसके चलते मनभेद बड़े मतभेद में तब्दील हो गए. इसी मतभेद में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की कुर्सी छीन ली और कांग्रेस की सरकार चली गई. कहने का तात्पर्य है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थकों की शिकायत पर सरकार की रवानगी करवा दी. अब जब ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में हैं तो यहां भी अपने समर्थकों के लिए वे किसी प्रकार का समझौता करते हैं या नहीं ? इस सवाल का जवाब वक्त बताएगा। 

6 टिकटों को लेकर सिंधिया असमंजस में

विधानसभा चुनाव को भले ही अभी कुछ महीने का वक्त बचा हो लेकिन विधानसभा की 6 सीटों पर मध्य प्रदेश के बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं की निगाह जमी हुई है. इनमें डबरा, दिखनी, ग्वालियर पूर्व, गोहद, करेरा, मुरैना की सीट शामिल है. इन सभी विधानसभा सीटों पर सिंधिया समर्थक उपचुनाव में हार का सामना कर चुके हैं. इन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार उतारने की कोशिश में है जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रयास रहेंगे कि उनके समर्थकों को ही एक बार और मौका दिया जाए. इसे लेकर असमंजस की स्थिति अभी से पैदा हो गई है।

अभी तक नेताओं का दर्द नहीं हुआ कम

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक इशारे पर विधायक जैसा महत्वपूर्ण पद कुर्बान करने वाले 19 में से 13 विधायक और मंत्री विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल कर गए थे लेकिन डबरा से इमरती देवी को सुरेश राजे, दिमनी से गिरिराज दंडोतिया को रविंद्र सिंह तोमर, ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल को सतीश भावसार, गोहद से रणवीर जाटव को मेवालाल जाटव, करेरा से जसवंत सिंह जाटव को प्रागी लाल जाटव और मुरैना से रघुराज कंसाना को राकेश मावई ने हरा दिया था. अब इन सभी सीटों पर बीजेपी के नए उम्मीदवार भी दावा कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस एक बार फिर जीते हुए विधायकों को ही मौका देने जा रही है।

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