इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तरह की व्याख्या अजीब स्थिति समझ में आती है। उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि कोई अधिकारी अपना काम सही से नहीं कर रहा है। लेकिन उसकी नियुक्ति, ट्रांसफर, पोस्टिंग आदि का अधिकार केंद्र सरकार के पास ही है तो क्या फिर दिल्ली सरकार कैसे उस अधिकारी पर ऐक्शन लेगी? क्या वह उस अधिकारी को शिफ्ट नहीं कर सकती? क्या वह किसी दूसरे अधिकारी को नहीं ला सकती? इस पर केंद्र सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि ऐसे मामलों में ऐक्शन लेने की एक प्रकिया है।
केंद्र सरकार ने कहा कि ऐसा होने पर दिल्ली सरकार या उसका संबंधित मंत्रालय उपराज्यपाल को लिखता है। उस पत्र को एलजी की ओर से केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के समक्ष भेजा जाता है, जो ऐक्शन लेता है। तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली में एलजी भी प्रशासक की भूमिका ही होते हैं। उन्हों", कहा कि दिल्ली में केंद्र सरकार के पास प्रशासनिक नियंत्रण होना जरूरी है। इसकी वजह यह है कि राजधानी आतंकवाद समेत कई अहम मसलों को लेकर संवेदनशील जगह है। दिल्ली में प्रशासन राष्ट्रीय चिंताओं को ध्यान में रखकर ही चलाया जाना चाहिए। इसके अलावा पड़ोसी राज्यों से बेहतर तालमेल के लिए भी केंद्र का नियंत्रण जरूरी है।
तुषार मेहता बोले- केंद्र सरकार का विस्तार ही हैं UT
इस दौरान तुषार मेहता ने केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्र सरकार काही विस्तार बताया। उन्होंने कहा कि किसी खास क्षेत्र केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने का मकसद ही यही है कि सरकार वहां अपने अधिकारियों के जरिए प्रशासन चलाना चाहती है। इस पर चीफ जस्टिस ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि केंद्र सरकार को ही प्रशासन चलाना है तो फिर चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है? फिलहाल इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं आया है। इस मसले पर आने वाले दिनों में कुछ और रोचक टिप्पणियां सुनने तो मिल सकती हैं।
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