तो क्या होमी जहांगीर भाभा साजिश का शिकार हुए थे?
1965 की बात है। ऑल इंडिया रेडियो पर डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने एक इंटरव्यू दिया। भाभा ने कहा, ‘अगर मुझे छूट मिले, तो मैं 18 महीने में भारत के लिए एटम बम बनाकर दिखा सकता हूं।’ इस इंटरव्यू में उन्होंने एक ऐसी घोषणा की, जिसने दुनिया के बड़े-बड़े मुल्कों को चौंका दिया। लेकिन इसे विडम्बना कहें या साजिश, इस इंटरव्यू के 3 महीने बाद ही उनकी मौत हो गई। और मौत भी ऐसी-वैसी नहीं, 24 जनवरी 1966 को एअर इंडिया के बोइंग 707 विमान ने मुंबई से लंदन के लिए उड़ान भरी, लेकिन वो यूरोप के आल्प्स माउंटेन रेंज में कै्रश हो गया। हादसे में 117 लोगों की जान गई। इनमें भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा भी थे।
आज उनकी 56वीं बरसी पर यह जानना जरूरी है कि 24 जनवरी 1966, दुर्घटना वाले दिन क्या हुआ? एअर इंडिया की कंचनजंघा नाम की फ्लाइट मुंबई से 11 क्रू और 106 पैसेंजर्स को लेकर सुबह 8.02 बजे लंदन के लिए उड़ी। ये फ्लाइट अपने तीसरे स्टॉपेज जेनेवा में उतरने वाली थी। मुंबई से दिल्ली, दिल्ली से बेरूत और बेरूत से जेनेवा होते हुए लंदन जाने वाली ये फ्लाइट उतरने से ठीक पहले इटली और फ्रांस के सीमा पर स्थित मोंट ब्लांक की बर्फीली पहाडिय़ों से टकरा गई।
रेस्क्यू टीम पहुंची तो विमान का नामों निशान मिट चुका था। पता चला कि प्लेन का मलबा ग्लेशियर में धंस चुका है। वहां सिर्फ कुछ डेली यूज के सामान और चि_ियां वगैरह मिलीं। न ब्लैक बॉक्स मिला न ही पूरी तरह से मलबे का पता लग सका। मौसम खराब था तो फ्रांस के अधिकारियों ने रेस्क्यू ऑपरेशन रोक दिया। घटना के बयालीस साल बाद 2008 में सीआईए के एजेंट रॉबर्ट क्रॉली और अमेरिकी पत्रकार ग्रेगरी डगलस के बीच कथित बातचीत पर एक किताब प्रकाशित हुई। कन्वर्सेशन विद द क्रो नाम की इस किताब के मुताबिक भारत जैसे देश के परमाणु हथियार बनाने का ऐलान करने के बाद अमेरिका परेशान था। इससे कहीं न कहीं ये संकेत अवश्य मिलते हैं और सवाल भी उठता है कि कहीं इसमें सीआईए का हाथ तो नहीं था?
होमी भाभा 1909 में एक अमीर पारसी परिवार में पैदा हुए। 1927 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद एटॉमिक फिजिक्स में काम शुरू कर दिया। 1939 में वो इंग्लैंड छोडक़र भारत लौट आए।
उनका भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से करीबी रिश्ता था। नेहरू को बस दो लोग भाई कहते थे। एक थे जयप्रकाश नारायण और दूसरे होमी भाभा। होमी भाभा ने अपने सभी पत्रों में नेहरू को माई डियर भाई कहकर संबोधित किया है। इंदिरा गांधी ने संसद में दिए अपने एक भाषण में इस बात का जिक्र किया है कि नेहरू को भाभा अक्सर देर रात में फोन करते थे और नेहरू हमेशा उनसे बात करने के लिए समय निकालते थे। 1961 में चीन-भारत युद्ध हुआ और भारत की हार के बाद परमाणु हथियारों को लेकर होमी भाभा ने सार्वजनिक रूप से काम तेज कर दिया। सरकार ने भी सपोर्ट किया और परमाणु रिएक्टरों से उत्पन्न बिजली को तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966) में शामिल कर लिया। होमी भाभा जल्द ही भारत को अमेरिका, सोवियत यूनियन, चीन की लीग में खड़ा कर देते, लेकिन 24 जनवरी की मनहूस तारीख को प्लेन क्रैश में भाभा का निधन हो गया।
दुनिया भर में तमाम पुरानी घटनाओं की जांचें हुईं। मामले भी उठाए गए। परंतु देश के परमाणु शक्ति के जनक होमी जहांगीर भाभा वाले विमान के क्रैश होने की घटना की जांच की बात तक नहीं उठी। इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं, लेकिन एक बात तो तय है कि विमान क्रैश के पीछे साजिश तो थी। फ्रांस अमेरिका का मित्र देश रहा है, हो सकता है कि इसी कारण बाद में जांच बंद कर दी गई। आखिर ब्लैक बाक्स की खोज तो की ही जाती है। लेकिन वो भी नहीं हुई। और उस समय भारत और सोवियत संघ की मित्रता जगजाहिर थी। अमेरिका को ये दोस्ती पसंद नहीं थी। फिर, जैसे ही भाभा ने परमाणु बम बनाने की बात की, कुछ ही दिन बाद उनका अध्याय भी समाप्त कर दिया गया। भाभा की मौत का रहस्य भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तरह काल के गाल में लुप्त हो गया।
खैर, आज हम पुण्य तिथि पर होमी जहांगीर भाभा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनसे प्रेरणा लेकर और वैज्ञानिक अनुसंधान, शोध करेंगे।
-संजय सक्सेना
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