ठीक ही तो कह रहीं है उमा... क्या बीजेपी नेता और कार्यकर्ता सोचेंगे...?
भाजपा की वरिष्ठ नेत्री और स्टार प्रचारक उमा भारती वैसे तो आजकल अपने शराब विरोधी अभियान के लिए चर्चाओं में हैं, लेकिन उनके और भी बयान चौंकाने वाले आ रहे हैं। राजनीति में भगवान राम और भगवा रंग को लेकर मैदान में जमने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए उनका बयान वाकई ध्यान देने योग्य है। उन्होंने हाल ही में कहा है कि भगवान राम और हनुमान की भक्ति पर भाजपा का कॉपीराइट नहीं है। भगवान राम और हनुमान भाजपा के कार्यकर्ता नहीं हैं। जब भाजपा का अस्तित्व नहीं था, जब मुगल शासन था, अंग्रेजों का शासन था, तब भी भगवान राम और हनुमान थे।
बचपन से प्रवचनकर्ता रहीं उमा यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने कहा- अगर हम भाजपा वालों ने ये भ्रम पाल लिया है कि नहीं हमने आंखें खोली, तब सूरज-चांद निकल आए, तो फिर ये हमारे लिए विनाशकारी साबित होगा। शायद आज यही हो रहा है और समाज में कहीं न कहीं इससे गलत संदेश भी जा रहा है। असल में वे छिंदवाड़ा के सिमरिया में कमलनाथ द्वारा बनवाए गए हनुमान मंदिर गई थीं, जहां उन्होंने दर्शन किए। साथ ही साफ कहा कि भगवान राम का भक्त कोई भी हो सकता है। जहां डेमोक्रेसी है, वहां कोई व्यक्ति, कोई जाति पॉलिटिकल सिस्टम का बंधक नहीं हो सकता। हम ये भ्रम न पालें कि सारा हिंदू समाज हमारा वोटर होगा। चाहे हमने राम मंदिर का निर्माण किया हो। हिमाचल में हम नहीं जीत पाए। क्या वे अहिंदू थे जिन्होंने हमें वोट नहीं दिया? पार्टी का कार्यकर्ता और नेता मर्यादा में बंधा है, मतदाता स्वतंत्र है। तो क्या उमा भारती अपनी ही पार्टी के नेताओं को कड़ा संदेश देना चाह रही हैं? क्या वो मान रही हैं कि भाजपा जिस रणनीति को अपना रही है, वो बहुत दिन चलने वाली नहीं है?
स्वयं को अब पूर्ण संन्यासी का दर्जा देने वाली उमा भारती कहती हैं- देश की तीन लॉबी बहुत खतरनाक हैं- शराब लॉबी, खनन लॉबी और पावर लॉबी। ये देश को खा जाना चाहती हैं। कहा जा रहा है कि बिहार में जहरीली शराब से मौतें हुईं। क्या मुरैना में नहीं हुई थी जहरीली शराब से मौतें। यहां तो शराबबंदी नहीं है। मैं शराब से बहुत नफरत करती हूं। मेरा वश चलेगा तो मैं शराब का नाम-ओ-निशान मिटा दूंगी। चूंकि, मुझे ये मानना पड़ा कि एक नियंत्रित वितरण शराब प्रणाली होना चाहिए, इस पर मैं एग्री हूं। भारत की दो व्यवस्थाएं बहुत खराब हैं। एक शिक्षा की और दूसरी स्वास्थ्य की। सरकार और प्राइवेट व्यवस्था में बहुत बड़ा अंतर है। मैं यह नहीं कहूंगी कि सरकारी जैसी व्यवस्था कर दीजिए, फिर तो देश ही बदहाल हो जाएगा। प्राइवेट जैसी सरकारी व्यवस्था कर देना चाहिए।
उमा भारती कह तो बहुत सही रही हैं, अब ये मानने वाले या मानने वालों पर है कि वे उनकी कितनी बात मानते हैं। फिर भी, कहीं न कहीं, उनके बयान और वक्तव्य चर्चाओं में तो आ ही रहे हैं। कुछ लोग तो ये दावा भी करने लगे हैं कि उनका मन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से खट्टा हो गया है, क्योंकि पार्टी की तरफ से न तो उन्हें कोई विशेष जिम्मेदारी दी जा रही है और न ही उनका पार्टी में पूर्व जैसा सम्मान ही बचा है। सो पार्टी के कुछ नेता उनके बयानों को उनका फ्रस्टेशन भी कहने लगे हैं, लेकिन अगर देखा जाए तो उमा भारती के बयानों में काफी कुछ सच्चाई है और पिछले कुछ समय से देश की बदलती राजनीतिक हवाएं उसे प्रमाणित भी कर रही हैं। किसी के स्वीकार करने या न करने से सच बदल तो नहीं जाता। स्वांत सुखाय के सिद्धांत पर आखिर कब तक चलते रहेंगे? सच को मानना समय की आवश्यकता है और उसके अनुसार हमें स्वयं को और अपनी रणनीतियों को बदल ही लेना चाहिए।
-संजय सक्सेना
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