सेवा करने के लिए डाक्टर बने हैं,....रोगी से बेहतर व्यवहार और रोगमुक्त करना प्राथमिकता: डा. आशीष एवं सांत्वना पांडे (यूके)... तनाव और अवसाद से बढ़ रहे दुनिया में मनोरोगी..

संजय सक्सेना 
हम सेवा करने के लिए चिकित्सक बने हैं, पैसा कमाने के लिए नहीं। हमें ट्रेनिंग के दौरान यही घुट्टी पिलाई जाती है। इसलिए हम रोगी को क्लाइंट नहीं समझते। उससे अच्छे से अच्छा व्यवहार करते हैं। यह कहना है भारत में जन्मे और लंदन में बसे मनोचिकित्सक दम्पत्ति डा. आशीष पांडे, डा. सांत्वना पांडे का। वे पुट्टुपर्ती के भगवान सत्य साईंबाबा के भक्त, उपासक और सेवक हैं तथा उनकी प्रेरणा के चलते हर रविवार को बच्चों के बीच जाकर उन्हें कुछ सिखाते हैं, उनका उत्साहवर्धन करते हैं। भोपाल में तुलसी नगर और फिर शाहपुरा में रहे डा. आशीष पांडे अपने शहर और अपने देश को बहुत पसंद करते हैं। उन्होंने मनोरोग में विशेषज्ञता हासिल की और इसी में विशेषज्ञता प्राप्त करने वाली मुम्बई निवासी डा. सांत्वना से उनकी शादी हुई। वे वर्तमान में लंदन में मनोरोग विशेषज्ञ हैं और जनसेवा ही उनका प्रमुख ध्येय है। पति और पत्नी, दोनों ही सेवाभावी हैं। सत्य साईंबाबा तो उनके रोम-रोम में बसते हैं। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-
-सबसे पहले तो आप ये बताएं कि रोगी और चिकित्सक का रिश्ता क्या होता है?
-जो दो इंसानों के बीच होना चाहिए। हम चिकित्सक मरीज से बेहतर से बेहतर व्यवहार करते हैं। और मनोरोगी से तो और अच्छी तरह बात करते हैं। मनोरोगी  को मैड कहना भी अपराध हो जाता है। हमारा रजिस्ट्रेशन भी कैंसिल हो सकता है। 
-हमारे यहां तो मरीज को क्लाइंट समझा जाता है?
-हम ऐसा नहीं कर सकते। हमें जो प्रशिक्षण दिया जाता है, वहां भी समझाया जाता है। हम व्यवसाय नहीं, सेवा करने के लिए चिकित्सक बने हैं। 
भारत में तो प्राय: डाक्टरों की यह मानसिकता होती जा रही है कि उनकी पढ़ाई में जो खर्च हुआ है, उसे पहले निकालना है, फिर परिवार और बच्चों के लिए कमाई करना है? 
-हम इस पर कुछ नहीं कहते। परंतु हम जहां प्रैक्टिस करते हैं, वहां प्रोफेशन का अर्थ पैसा कमाना नहीं, अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता और बेहतर सेवा देना होता है। 
-दुनिया भर में मनोरोग बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं, आप इसके पीछे क्या कारण मानते हैं? 
-देखिए। कई तरह के कारण होते हैं। एक तो हमारी पारिवारिक समस्याएं, सामाजिक परिस्थितियां और इनके अलावा आर्थिक हालात। सभी हमें प्रभावित करते हैं। फिर, इन कारणों से तनाव और अवसाद बढ़ता है, जो अनेक प्रकार के मनोरोगों को जन्म देता है। 
-दुनिया भर में आत्महत्याएं भी बढ़ रही हैं, क्या उनके पीछे भी यही कारण मानते हैं?
-कभी-कभी तात्कालिक कारण भी बन जाते हैं। लेकिन जहां समस्याएं अधिक हैं, लोग लंबे समय से तनाव में रहते हैं, वहां मनोरोगी हो जाते हैं। मैटिरियलिस्टिक वल्र्ड है, पूरी दुनिया में आत्महत्याओं के अलग-अलग कारण होते हैं, अवसाद और तनाव प्रमुख हैं। 
-बिखरते-टूटते परिवार और सामाजिक तानेबाने में आ रही टूटन को लेकर आप क्या कहेंगे?
-यह समस्या भारत में अधिक है। यूके या अन्य पाश्चात्य देशों में तो पहले से ही बच्चा सोलह साल का हो जाता है, तो वह माता-पिता के साथ प्राय: नहीं रहता। यह इन देशों में अवसाद और तनाव की बड़ी वजह बनता जा रहा है।
-क्या मोबाइल भी इसके लिए बड़ा कारण है?
-बिल्कुल। नए आविष्कार का हम उपयोग करें, तो ठीक। अब मोबाइल पर ही पूरा समय देंगे, तो उसके दुष्परिणाम भी झेलने होंगे। हम भीड़ में भी अकेले हो जाएंगे। और यह कई बीमारियों को भी जन्म देगा। 
-मनोरोगों के उपचार की क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है? 
-सबसे पहले मेडिकेशन, फिर थेरेपी और अंत में सोशल स्टेटस को लेकर बात की जाती है। दवाएं तीस प्रतिशत ही काम करती हैं, थेरेपी भी महत्वपूर्ण साबित होती है। बाकी उपचार समाज में ही होता है। रोगी को ऐसे माहौल में रहने की सलाह दी जाती है, जिससे उसे अकेलापन महसूस न हो। उसे तनाव न हो। अवसाद की स्थिति न बने। 
- मनोचिकित्सक के लिए प्राथमिकता होती है, रोगी से अच्छा व्यवहार। यहां उसे राहत मिलना जरूरी है, फिर ठीक होने की गारंटी हो जाती है। साथ ही उसकी पूरी हिस्ट्री जानना आवश्यक होता है। उपचार उसी के आधार पर होता है।
-इलाज के लिए दवाएं देते समय क्या ध्यान रखा जाता है?
-हम प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं, उसमें फार्मूला प्रमुख होता है। ब्रांड या कंपनी का नाम नहीं बताते। 
-भारत में तो मेडिकल स्टोर तय होते हैं। डाक्टर जो दवा लिखता है, वो हर दुकान पर नहीं मिल सकती। उसका कमीशन भी तय होता है। 
-ब्रिटेन में कटिंग या कमीशन का काम नहीं होता। हमसे मिलने एमआर आते ही नहीं, गिफ्ट तो दूर की बात है। हमारा इससे दूर का नाता नहीं होता। दवा हर जगह मिल जाती है, वही लिखते हैं। मेडिकल स्टोर से कमीशन लिया तो रजिस्टे्रशन निरस्त हो जाता है। 
-मनोरोगों में योग, मेडिटेशन भी लाभदायक होते हैं?
-बिल्कुल। यदि हम योग और मेडिटेशन करते हैं, तो मनोरोग होने की स्थिति ही टल जाती है। इनसे तनाव और अवसाद दूर होते हैं। रोग होने के बाद भी यदि दवाओं के साथ ठीक तरीके से मेडिटेशन किया जाए, तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है। 
-चिकित्सा के अलावा आप किसी अन्य गतिविधि से भी जुड़े हैं?
-हां। हम लोग सत्य साईंबाबा को मानते हैं। लंदन में भी साईंबाबा से जुड़े लोगों ने बच्चों के लिए केंद्र बाल विकास बनाए हुए हैं, जहां मॉरल एवम् स्पिरिचुअल यानि आध्यात्मिक कक्षाएं चलती हैं। हम हर रविवार वहां जाते हैं और बच्चों के बीच बैठते हैं। उन्हें सिखाते हैं। हर तरह से उन केंद्रों की मदद करते हैं। भारत में पुट्टुपर्ती अवश्य जाते हैं और ट्रस्ट से सम्बद्ध अस्पतालों में सेवा भी देते हैं। मानव सेवा सबसे अच्छी सेवा है और इसे हर व्यक्ति को करना चाहिए। 
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