interview. अपनी भजन गायकी से देश विदेश में धाक जमा चुके हैं. भोपाल के अनूप जलोटा सत्य नारायण नायर


सत्यनारायण नायर भोपाल की वो हस्ती हैं, जो भजन गायक के रूप में देश विदेश में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। उनकी गायकी के लाखों प्रशंसक हैं। प्रख्यात गजल गायक अनूप जलोटा के परम शिष्य होने के साथ ही साईबाबा का भक्त होने का उन्हें गर्व है और इसे वो ईश्वर की कृपा मानते हैं। भगवान की यह अनुकंपा उनके पूरे परिवार पर है, तीन बहनें हैं और तीनों बहनें बेहतरीन भजन गायक हैं। सत्यनारायण की आवाज में जादू है, वो भजन गाएं अथवा गजल, उनकी आवाज लोगों के मन में दैवीय कम्पन जागृत कर देती है। जो भी उनके भजन सुनता है, अपने भीतर भगवान के वास की अनुभूति करता है। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-
आपने भजन गाना कब से प्रारंभ किया?
भजन तो बचपन से गाता रहा हूं। मेरी बहनें भी भजन गाती हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से मैं भी गाने लगा। 
आपने गायन का प्रोफेशन कब चुना?
मैं भोपाल में ही जन्मा हूं। अंग्रेजी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मैं एक अंग्रेजी अखबार में काम करने लगा। इसके बाद प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की। टाटा ग्रुप, मिनोल्टा फोटोकापियर आदि कंपनियों में अच्छे ओहदों पर काम किया, परंतु कहीं संतुष्टि नहीं मिली। ऐसा लग रहा था, जैसे जीवन में कुछ कमी है। फिर एक बार अनूप जलोटा जी से मुलाकात हुई, उनकी प्रेरणा से भजन गायन का क्षेत्र पूरी तरह से अपना लिया। 
जलोटा जी ने आपको अपना शिष्य बनाया?
्रबिल्कुल। मैं सौभाग्यशाली हूं कि आदरणीय जलोटा जी ने मुझे मुम्बई बुलाकर बाकायदा शिष्य बनाया और कहा कि वह भजन और गजल दोनों ही गाएं। इसके बाद मैं आगे बढ़ा, तो जनता का प्यार मिलता चला गया।
आप साईं बाबा के भक्त भी हैं?
जी हां। मेरे जीवन में साईंबाबा की असीम कृपा रही है। यह भी कह सकते हैं 
कि उनकी कृपा के कारण ही आज में गायकी के आयाम तय कर रहा हूं। और इसके पीछे भी लंबी कहानी है। मेरे पिता अस्वस्थ थे। लोगों के कहने पर हम पुट्टपूर्ति गए। साईंबाबा का उन्हें जो आशीर्वाद मिला, उनका असाध्य रोग दूर हो गया। उसी दौरान हमें भी उनका साक्षात आशीर्वाद मिला। मेरा मानना है कि मेरी गायकी और मेरी आवाज बाबा की ही देन है। 
आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही है?
मेरे पिता भोपाल में ही रहे हैं। वह प्रदेश के संस्कृति विभाग में संचालक रहे हैं। माता एक महाविद्यालय में प्रोफेसर रही हैं। तीन बहनें हैं, दो शिक्षा के क्षेत्र में हैं। एक शासकीय अस्पताल में चिकित्सक हैं। तीनों बहनें भजन गायिका हैं और बाकायदा कार्यक्रम भी करती हैं। 
आप गजल गायकी के क्षेत्र में आगे कैसे बढ़े?
मैं भोपाल तथा आसपास भजन गाता था। मुझे जबलपुर में आयोजित नर्मदा महोत्सव में गाने का अवसर मिला। असल बात यह है कि मेरी गायकी से प्रभावित होकर ही अनूप जलोटा जी ने उस प्रतिष्ठित आयोजन में गाने का अवसर दिया। तब से मैं पूरे भारत के साथ ही अन्य देशों में भी प्रस्तुतियाँ दे रहा हूं। 
आप कहां-कहां कार्यक्रम दे चुके हैं?
देश के विभिन्न हिस्सों में जैसे-दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, जम्मू, जयपुर और जोधपुर (राजस्थान), पंचकुला (हरियाणा), जलंधर, राजपुरा, होशियारपुर, चंडीगढ़ (पंजाब), लखनऊ, कानपुर, अलीगढ़, (उत्तर प्रदेश) अहमदाबाद, मेहसाणा (गुजरात) शामिल हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, धुले (महाराष्ट्र), कोलकाता, गोवा, केरल, शिमला, गुवाहाटी (असम) और देश के कई और ऐसे शहर और राज्य हैं जहाँ पर भजन और गज़़ल की प्रस्तुतियाँ दे चुका हूं।
देश के बाहर भी आपने प्रस्तुतियां दी हैं?
हां। यह सौभाग्य भी मिला है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रीलंका के कोलंबो में एक भावपूर्ण प्रस्तुति भी दी, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। हाल ही में दुबई, अबू धाबी और शारजाह में भजन और गज़़लों के कार्यक्रम में श्रोताओं का भरपूर आशीर्वाद मिला। पश्चिम अफ्रीका घाना में भी भव्य प्रस्तुति देने का अवसर मिला। 
भजन और गजल गायकी में काफी अंतर है, आप दोनों एक साथ गाते हैं?
जी हां। मूलभूत अंतर होने के बाद भी मुझे भजन और गजल एक साथ गाने का सौभाग्य मुझे मिला है। असल में भजन और गजलों में एक तो लय-ताल और संगीत का फर्क होता है। फिर शब्दों और उच्चारण का भी बहुत अंतर होता है। गजलों में उर्दू के शब्दों का प्रयोग अधिक होता है और उन्हें पेश करने का अंदाज अलग ही होता है। और इसका श्रेय भी हमारे पूज्य गुरूदेव अनूप जलोटा जी को जाता है। एक कार्यक्रम के दौरान जब गजल गाने की फरमाइश हुई तो मैंने वहां मौजूद जलोटा जी से अनुमति चाही, उन्होंने आशीर्वाद के साथ अनुमति दी और जब मैंने गजल पेश की तो पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। यह उनका आशीर्वाद और बाबा की कृपा ही थी।
आप अन्य कलाकारों से अपने आप को कैसे अलग मानते हैं?
जी, मैं मानने वाला कौन होता हूं। मैं तो बस गाता हूं। हां, स्वर व ताल का सही मिश्रण व  गायन का अलग अंदाज उन्हें बाकी कलाकारों से अलग रखता है। और ऐसा आप जैसे सुनने वाले कद्रदानों का कहना है कि हम उनसे कई कदम आगे हैं।
आप भजन गाने के साथ-साथ हारमोनियम भी बजाते हैं?
हां। मैं खुद ही हारमोनियम बजाता हूं। तबले व अन्य साज हमारे साथी बजाते हैं और मेरा यह भी सौभाग्य है कि मुझे साज बजाने वाले साथी भी अद्भुत और बहुत अच्छे मिले हैं। 
क्या आप फिल्मी गाने भी गाते हैं?
हां, कई बार जब श्रोताओं की फरमाइश होती है तो कुछ पुराने या कुछ नए गाने भी गा देता हूं।
आपकी सीडी भी जारी हुई हैं?
हां। कई ऑडियो सीडी बाजार में हैं। रंग दे चुनरिया,  ब्लिस्फुल भजन, साईं तेरी याद महा सुखदायी और बाबा मैं तेरे द्वारे आया एवं साज़, नजऱाना और 
गुलदस्ता  बाजार में रिलीज़ हुई हैं और हमें लोगों की बहुत सराहना मिली है। इनमें भारतीय संगीत के महान दिग्गज, जैसे स्वर्गीय जगजीत सिंह, अनूप जलोटा, पंकज उधास, गुलाम अली और कई कलाकारों की सुंदरता से पिरोयी व प्रख्यात गज़़लें हैं। उनकी इन सीडीज़ में मुझे भारत के कई प्रख्यात संगीतकारों व उस्तादों की प्रशंसा से नवाज़ा है, जिसमें गज़़ल के बादशाह स्वर्गीय श्री जगजीत सिंह जी, पद्मश्री अनुराधा पौडवाल जी, पिनाज़ मसानी जी, स्वर्गीय रविन्द्र जैन जी और कई अन्य महान लोग शामिल हैं, जिन्होंने मेरी आवाज़ की गहराई को पसंद किया और मुझे आशीर्वाद दिया। 
-संजय सक्सेना 

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