मोरबी के जिस पुल पर रविवार को बड़ी दुर्घटना हुई, 134 की अब तक मौत हो चुकी है, वो ऐतिहासिक पुल शहर की नगर पालिका के अधिकार में था। नगर पालिका ने इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी अजंता ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को सौंपी थी। यह इलेक्ट्रॉनिक घडिय़ों, कैलकुलेटर, घरेलू उपकरणों और एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनी है। ओरेवा ने ही देश में सबसे पहले एक साल की वारंटी के साथ एलईडी बल्ब बेचने की शुरुआत की थी। नगर पालिका के सीएमओ संदीप सिंह झाला ने माना कि मरम्मत के दौरान कंपनी के कामकाज की निगरानी के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। यानी पूरी तरह से कंपनी के ऊपर छोड़ दिया गया कि वह पुल को कैसे और किससे बनवाती है और कब चालू करती है?
गुजरात के मोरबी में पैदल यात्रियों के लिए बना सस्पेंशन ब्रिज रविवार रात को टूट गया। मरम्मत के बाद खोले जाने के 5 दिन में ही यह ब्रिज टूट गया। पुल पर मौजूद करीब 400 लोग नदी में जा गिरे। इनमें से 190 की अब तक मौत हो चुकी है। मृतकों में महिलाएं और 30 से ज्यादा बच्चे शामिल हैं। ब्रिज की केबल-जाली थामे रहे 200 लोगों को बचा लिया गया।
मोरबी की पहचान कहा जाने वाला यह ब्रिज 143 साल पुराना था। इसकी चौड़ाई 1.25 मीटर (4.6 फीट) है। यानी करीब इतनी ही कि दो लोग आमने-सामने से गुजर सकें। इसकी लंबाई 233 मीटर (765 फीट) थी। इतनी कि अगर 500 लोग एक साथ पुल पर खड़े हों तो हर कोई लगभग एक दूसरे से टच करता हुआ ही दिखाई देगा। पैदल यात्रियों के लिए बना यह पुल मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को दरबारगढ़ महल से जोड़ता था। हादसे के बाद कई सवाल उठे, जो दिखाते हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी से एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले ली।
क्या जल्दबाजी में चालू किया गया पुल?
मोरबी का केबल सस्पेंशन ब्रिज 20 फरवरी 1879 को शुरू किया गया था। 143 साल पुराना होने से इसकी कई बार मरम्मत हो चुकी है। हाल ही में 2 करोड़ रुपए की लागत से 6 महीने तक ब्रिज का रेनोवेशन हुआ था। गुजराती नववर्ष यानी 26 अक्टूबर को ही यह दोबारा खुला था। गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा एक-दो दिन में ही होने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनावी फायदा लेने के लिए इसे बिना टेस्टिंग अफरातफरी में शुरू कर दिया गया।
मरम्मत के बाद क्या उसकी मजबूती जांची गई?
नया पुल हो या किसी पुल का रिनोवेशन किया गया हो, इसको शुरू करने से पहले जरूरी होता है कि उसकी मजबूती को विशेषज्ञ जांचते हैं। ये परखते हैं कि इस पर कितना भार दिया जा सकता है। मोरबी के नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने कहा कि ओरेवा ने प्रशासन को सूचना दिए बिना ही लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी। कंपनी ने न तो पुल खोलने से पहले नगरपालिका के इंजीनियरों से उनका वेरिफिकेशन कराया और न ही फिटनेस स्पेसिफिकेशन सर्टिफिकेट लिया। अब बड़ा सवाल ये कि 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के रूष्ठ जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी, तब नगर पालिका ने इसे क्यों नहीं रोका?
अचानक इतनी भीड़ कैसे हो गई?
यह ब्रिज पिकनिक स्पॉट के तौर पर मशहूर था। दिवाली बाद के वीकेंड में लोग घूमने निकले हुए थे। ब्रिज 6 महीने बाद खुलने की वजह से भी इसको लेकर लोगों में आकर्षण था। इस वजह से इतने ज्यादा लोग एकसाथ पर घूमने पहुंच गए। लोगों को रोका नहीं गया, तो 14 रुपए का टिकट खरीदकर करीब 400 लोग एकसाथ ब्रिज पर जा पहुंचे।
पिकनिक स्पॉट था, फिर रेस्क्यू और मेडिकल टीम कहां थी?
हादसे के 15 से 20 मिनिट के अंदर ही 108 की एम्बुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। दुर्घटना बड़ी होने की वजह से 108 कमांड सेंटर ने आसपास के सभी जिलों की एंबुलेंस भी बुला ली थीं। करीब आधे घंटे में 300 एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। घायलों को दुर्घटना स्थल से 7 मिनिट की दूरी पर मौजूद जिला अस्पताल ले जाया गया।
मोरबी की पहचान कहा जाने वाला यह ब्रिज 143 साल पुराना था। इसकी चौड़ाई 1.25 मीटर (4.6 फीट) है। यानी करीब इतनी ही कि दो लोग आमने-सामने से गुजर सकें। इसकी लंबाई 233 मीटर (765 फीट) थी। इतनी कि अगर 500 लोग एक साथ पुल पर खड़े हों तो हर कोई लगभग एक दूसरे से टच करता हुआ ही दिखाई देगा। पैदल यात्रियों के लिए बना यह पुल मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को दरबारगढ़ महल से जोड़ता था। हादसे के बाद कई सवाल उठे, जो दिखाते हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी से एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले ली।
क्या जल्दबाजी में चालू किया गया पुल?
मोरबी का केबल सस्पेंशन ब्रिज 20 फरवरी 1879 को शुरू किया गया था। 143 साल पुराना होने से इसकी कई बार मरम्मत हो चुकी है। हाल ही में 2 करोड़ रुपए की लागत से 6 महीने तक ब्रिज का रेनोवेशन हुआ था। गुजराती नववर्ष यानी 26 अक्टूबर को ही यह दोबारा खुला था। गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा एक-दो दिन में ही होने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनावी फायदा लेने के लिए इसे बिना टेस्टिंग अफरातफरी में शुरू कर दिया गया।
मरम्मत के बाद क्या उसकी मजबूती जांची गई?
नया पुल हो या किसी पुल का रिनोवेशन किया गया हो, इसको शुरू करने से पहले जरूरी होता है कि उसकी मजबूती को विशेषज्ञ जांचते हैं। ये परखते हैं कि इस पर कितना भार दिया जा सकता है। मोरबी के नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने कहा कि ओरेवा ने प्रशासन को सूचना दिए बिना ही लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी। कंपनी ने न तो पुल खोलने से पहले नगरपालिका के इंजीनियरों से उनका वेरिफिकेशन कराया और न ही फिटनेस स्पेसिफिकेशन सर्टिफिकेट लिया। अब बड़ा सवाल ये कि 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के रूष्ठ जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी, तब नगर पालिका ने इसे क्यों नहीं रोका?
अचानक इतनी भीड़ कैसे हो गई?
यह ब्रिज पिकनिक स्पॉट के तौर पर मशहूर था। दिवाली बाद के वीकेंड में लोग घूमने निकले हुए थे। ब्रिज 6 महीने बाद खुलने की वजह से भी इसको लेकर लोगों में आकर्षण था। इस वजह से इतने ज्यादा लोग एकसाथ पर घूमने पहुंच गए। लोगों को रोका नहीं गया, तो 14 रुपए का टिकट खरीदकर करीब 400 लोग एकसाथ ब्रिज पर जा पहुंचे।
पिकनिक स्पॉट था, फिर रेस्क्यू और मेडिकल टीम कहां थी?
हादसे के 15 से 20 मिनिट के अंदर ही 108 की एम्बुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। दुर्घटना बड़ी होने की वजह से 108 कमांड सेंटर ने आसपास के सभी जिलों की एंबुलेंस भी बुला ली थीं। करीब आधे घंटे में 300 एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। घायलों को दुर्घटना स्थल से 7 मिनिट की दूरी पर मौजूद जिला अस्पताल ले जाया गया।
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