राजधानी भोपाल के सात नंबर बस स्टॉप पर बने प्रदेश भाजपा कार्यालय को तोडक़र नए दफ्तर का निर्माण कराया जाना है। बीजेपी के ऑफिस से आरटीओ के पुराने दफ्तर में शिफ्टिंग भी शुरू हो गई है। मौजूदा दफ्तर को तोडऩे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा खासे नाराज हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को तीन पेज की लंबी चि_ी लिखकर अपना विरोध दर्ज कराते हुए इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। शर्मा ने अपनी चिट्ठी में बीजेपी के कार्यालय को बनाने में योगदान देने वाले भाजपा और जनसंघ के पुराने कार्यकर्ताओं के परिश्रम का जिक्र करते हुए इस दफ्तर से मिली सफलताओं का भी हवाला दिया है।
उन्होंने लिखा- दूरभाष पर विष्णुदत्त शर्मा ने मुझसे चर्चा कर बताया कि भारतीय जनता पार्टी कार्यालय दीनदयाल परिसर को ध्वंस किया जा रहा है। आपकी बात सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। समाचारपत्र में भी विस्तार से प्रकाशित समाचार देखने को मिले। भारतीय जनता पार्टी कार्यालय को गिराने की सोचना तो ठीक ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। देश में अभी अलगाववादी, आतंकवादी एवं जघन्य अपराध करने वाले अपराधी अथवा अतिक्रमणकारियों के भवनों पर बुलडोजर चल रहा है। इस साहसिक कार्यों की जनता में प्रशंसा हो रही है। किन्तु भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पर बुलडोजर चले तो हृदय कांप जाता है कि हमारा कार्यालय उपरोक्त में से किस श्रेणी में आता है ?
ये फैसला दिल्ली से दौलताबाद राजधानी बनाने जैसा
मुझे यह जानकारी दी है कि प्रदेश के लोग इसका नवीनीकरण या सौंदर्यीकरण चाहते थे, किन्तु राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस कार्यालय को ध्वंस करके नया बनाने का आदेश दिया। मेरा प्रश्न है कि क्या राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस कार्यालय का सर्वांग भ्रमण कर पूरा देखा है? जिसे देखा नहीं उसे मिटाकर नया बनाने का निर्णय, दिल्ली से दौलताबाद राजधानी बनाने जैसा ही उदाहरण है। आप पुन: विचार करें, यह निवेदन है।
कार्यालय को ठाकरे, खंडेलवाल जैसे कार्यकर्ताओं ने बनाया
इस कार्यालय को बनाने में मध्यप्रदेश के छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं का योगदान है। एक-एक कार्यकर्ता ने खुशी-खुशी सहयोग किया है। कई गरीब कार्यकर्ताओं ने अपना पेट काटकर योगदान दिया है। जनसंघ से जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का राजधानी में अपना कोई कार्यालय नहीं था। कुशाभाऊ ठाकरेजी, प्यारेलाल खंडेलवालजी, नारायण प्रसाद गुप्ता, वीरेन्द्र कुमार सकलेचा, सुन्दरलाल पटवा, कैलाश चन्द्र जोशी जैसे अनेक नेताओं एवं सैकड़ों जीवनदानी कार्यकर्ताओं का सपना था कि राजधानी में अपना कार्यालय बने। उसी सपने का मूर्त रूप है दीनदयाल परिसर। यह कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलालजी खंडेलवाल, नारायणप्रसाद गुप्ता जैसे तपस्वियों का स्मारक है। इस स्मारक को अपने जीते जी तोडऩा यह अनेक समर्पित एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं के हृदय पर पत्थर मारने जैसा है। ऐसा कार्य कोई पत्थर जैसे कठोर हृदय का व्यक्ति ही कर सकता है।
इसे पार्टी की सोच बताना गलत
इससे भी विशाल कार्यालय बनाना यह आप लोगों की सोच हो सकती है सुन्दर एवं अच्छी सोच है। बड़ी उज्जवल सोच है किन्तु इस सोच को पार्टी की सोच बताया जा रहा है जो गलत है। मुझे पर्याप्त अन्वेषण करने पर भी पार्टी की सोच के प्रमाण नहीं मिले। पुराने कार्यकर्ता अब हमारे बीच में नहीं है जो थोड़े-बहुत कार्यकर्ता अवकाश काल व्यतीत कर रहे है उनसे मैने चर्चाएं की।
कुछ के विचार सुनने को मिले। किन्तु दीन दयाल परिसर के भवन को तोडऩे की बात सुनकर सब अचंभित थे, सब अनभिज्ञ थे। वरिष्ठ कार्यकर्ता जैसे सुमित्रा महाजन, विक्रम वर्मा, हिम्मत कोठारी, मेघराज जैन, रघुनंदन शर्मा, भवरसिंह शेखावत, माखन सिंह चौहान में से किसी से भी परामर्श नहीं लिया किसी का भी अभिमत प्राप्त नहीं किया। जिस जिले में जाता हूं सब आश्चर्यचकित होकर पूछते हैं। यह किस पार्टी का निर्णय है? समझ से बाहर है। आज यह सब लोग पदाधिकारी नहीं है परन्तु क्या अब इन सबको मिलाकर संगठन नहीं कहलाता। क्या संगठन के बारे में अवधारणा एवं परिभाषाएं बदल गई है? मा. कुशाभाऊ ठाकरेजी के साथ मैंने 25 वर्ष का लंबा कार्यकाल व्यतीत किया है। उनकी शैली देखी है। संगठन के लिए किए जाने वाले प्रत्येक निर्णय पर वे यहां हो न हो सबको बुलाते, विचार-विमर्श करते सबसे परामर्श करते, फिर सर्वसम्मति बनाकर निर्णय लेते।
उन्होंने लिखा- दूरभाष पर विष्णुदत्त शर्मा ने मुझसे चर्चा कर बताया कि भारतीय जनता पार्टी कार्यालय दीनदयाल परिसर को ध्वंस किया जा रहा है। आपकी बात सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। समाचारपत्र में भी विस्तार से प्रकाशित समाचार देखने को मिले। भारतीय जनता पार्टी कार्यालय को गिराने की सोचना तो ठीक ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। देश में अभी अलगाववादी, आतंकवादी एवं जघन्य अपराध करने वाले अपराधी अथवा अतिक्रमणकारियों के भवनों पर बुलडोजर चल रहा है। इस साहसिक कार्यों की जनता में प्रशंसा हो रही है। किन्तु भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पर बुलडोजर चले तो हृदय कांप जाता है कि हमारा कार्यालय उपरोक्त में से किस श्रेणी में आता है ?
ये फैसला दिल्ली से दौलताबाद राजधानी बनाने जैसा
मुझे यह जानकारी दी है कि प्रदेश के लोग इसका नवीनीकरण या सौंदर्यीकरण चाहते थे, किन्तु राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस कार्यालय को ध्वंस करके नया बनाने का आदेश दिया। मेरा प्रश्न है कि क्या राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस कार्यालय का सर्वांग भ्रमण कर पूरा देखा है? जिसे देखा नहीं उसे मिटाकर नया बनाने का निर्णय, दिल्ली से दौलताबाद राजधानी बनाने जैसा ही उदाहरण है। आप पुन: विचार करें, यह निवेदन है।
कार्यालय को ठाकरे, खंडेलवाल जैसे कार्यकर्ताओं ने बनाया
इस कार्यालय को बनाने में मध्यप्रदेश के छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं का योगदान है। एक-एक कार्यकर्ता ने खुशी-खुशी सहयोग किया है। कई गरीब कार्यकर्ताओं ने अपना पेट काटकर योगदान दिया है। जनसंघ से जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का राजधानी में अपना कोई कार्यालय नहीं था। कुशाभाऊ ठाकरेजी, प्यारेलाल खंडेलवालजी, नारायण प्रसाद गुप्ता, वीरेन्द्र कुमार सकलेचा, सुन्दरलाल पटवा, कैलाश चन्द्र जोशी जैसे अनेक नेताओं एवं सैकड़ों जीवनदानी कार्यकर्ताओं का सपना था कि राजधानी में अपना कार्यालय बने। उसी सपने का मूर्त रूप है दीनदयाल परिसर। यह कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलालजी खंडेलवाल, नारायणप्रसाद गुप्ता जैसे तपस्वियों का स्मारक है। इस स्मारक को अपने जीते जी तोडऩा यह अनेक समर्पित एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं के हृदय पर पत्थर मारने जैसा है। ऐसा कार्य कोई पत्थर जैसे कठोर हृदय का व्यक्ति ही कर सकता है।
इसे पार्टी की सोच बताना गलत
इससे भी विशाल कार्यालय बनाना यह आप लोगों की सोच हो सकती है सुन्दर एवं अच्छी सोच है। बड़ी उज्जवल सोच है किन्तु इस सोच को पार्टी की सोच बताया जा रहा है जो गलत है। मुझे पर्याप्त अन्वेषण करने पर भी पार्टी की सोच के प्रमाण नहीं मिले। पुराने कार्यकर्ता अब हमारे बीच में नहीं है जो थोड़े-बहुत कार्यकर्ता अवकाश काल व्यतीत कर रहे है उनसे मैने चर्चाएं की।
कुछ के विचार सुनने को मिले। किन्तु दीन दयाल परिसर के भवन को तोडऩे की बात सुनकर सब अचंभित थे, सब अनभिज्ञ थे। वरिष्ठ कार्यकर्ता जैसे सुमित्रा महाजन, विक्रम वर्मा, हिम्मत कोठारी, मेघराज जैन, रघुनंदन शर्मा, भवरसिंह शेखावत, माखन सिंह चौहान में से किसी से भी परामर्श नहीं लिया किसी का भी अभिमत प्राप्त नहीं किया। जिस जिले में जाता हूं सब आश्चर्यचकित होकर पूछते हैं। यह किस पार्टी का निर्णय है? समझ से बाहर है। आज यह सब लोग पदाधिकारी नहीं है परन्तु क्या अब इन सबको मिलाकर संगठन नहीं कहलाता। क्या संगठन के बारे में अवधारणा एवं परिभाषाएं बदल गई है? मा. कुशाभाऊ ठाकरेजी के साथ मैंने 25 वर्ष का लंबा कार्यकाल व्यतीत किया है। उनकी शैली देखी है। संगठन के लिए किए जाने वाले प्रत्येक निर्णय पर वे यहां हो न हो सबको बुलाते, विचार-विमर्श करते सबसे परामर्श करते, फिर सर्वसम्मति बनाकर निर्णय लेते।
कार्यालय के साथ ही कार्यकर्ता भी तोड़ रहे..?
बीजेपी के कुछ समर्पित नेताओं का कहना है कि वीडी शर्मा हैं से अध्यक्ष बने हैं, पार्टी लगातार नीचे की तरफ जा रही है। हाल ही में एक विधायक में सीएम से ही कह दिया कि यदि संगठन का नेतृत्व नहीं बदला गया तो हम चुनाव किसी हालत में नहीं जीत सकेंगे। चर्चा यही है कि हाई टेक अध्यक्ष जतिबाद को बढ़ावा दे रहे हैं। उन पर खुल कर ब्राह्मण बाद के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। हाल में एक ओबीसी नेता के बयान को ब्राह्मण बनाम ओबीसी बना दिया गया। इससे भी पार्टी को नुक्सान हुआ। ऐसा लग रहा है कि वीडी शर्मा पार्टी कार्यालय पर नहीं पार्टी पर बुलडोजर चला रहे है।
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