स्वार्थवाद की पराकाष्ठा

 
जो व्यक्ति कांग्रेस की कमान संभालने वाला है, यदि वही पार्टी में बगावत फैलाने लगे तो क्या किया जा सकता है? क्या ऐसे व्यक्ति के हाथों में पार्टी सुरक्षित रह सकती है या आगे बढ़ सकती है? क्या ऐसा व्यक्ति पार्टी अध्यक्ष बनने के लायक भी है? कांग्रेस हाईकमान को तत्काल फैसला बदलते हुए किसी और को अध्यक्ष बनाने के लिए आगे बढ़ाना चाहिए। 
नया नाटक राजस्थान में मुख्यमंत्री बनने का है। गहलोत पहले भी अड़ चुके हैं। वह चाहते हैं कि मुख्यमंत्री भी वही रहें और कांग्रेस अध्यक्ष भी बन जाएं। जब राहुल गांधी ने सख्ती दिखाई तो मुख्यमंत्री पद छोडऩे के लिए तैयार तो हो गए, लेकिन राजस्थान में बगावत के बीज भी बो दिए। कांग्रेस में सवा दो साल बाद एक बार फिर बगावत के सुर देखने को मिल रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की संभावनाओं को भांपकर कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करके स्पीकर को इस्तीफे दे दिए।
इस बार सचिन पायलट और उनके समर्थक शांत हैं, लेकिन गहलोत समर्थक विधायक उग्र तेवर दिखा रहे हैं। नए सीएम के चयन के लिए पर्यवेक्षक बनकर आए मल्लिकार्जुन खडग़े और अजय माकन आज भी जयपुर में रहकर विवाद को सुलझाने का प्रयास करेंगे। माकन और खडग़े इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि सीएम के चयन का अधिकार हाईकमान पर छोडऩे का प्रस्ताव पारित हो जाए, लेकिन गहलोत समर्थक विधायक अब 19 अक्टूबर तक किसी बैठक में आने को तैयार नहीं हैं।
गहलोत समर्थक विधायकों ने नया मुख्यमंत्री चुनने के लिए रायशुमारी बैठक का बहिष्कार करके कांग्रेस हाईकमान को खुली चुनौती दे दी है। गहलोत समर्थकों के तेवर अब भी बरकरार हैं। विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करके गहलोत समर्थकों ने हलचल मचा दी। विधायक पदों से स्पीकर को इस्तीफे सौंपकर आगे भी लड़ाई का फ्रंट खोल दिया है। गहलोत खेमा 90 से ज्यादा विधायकों के इस्तीफे देने का दावा कर रहा है। बताया जाता है कि कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट को ष्टरू बनाने का इशारा कर दिया था। गहलोत समर्थकों को दोनों ऑब्जवर्स के आने से पहले ही इसकी भनक लग गई थी, जिसके बाद उन्होंने मोर्चा खोल दिया। और तो और देर रात तक चले सियासी ड्रामे के बाद कई नए समीकरण बन गए। नए सीएम के चयन की रायशुमारी के लिए ष्टरू निवास पर विधायक दल की बैठक को रद्द करना पड़ा। अब विवाद शांत होने के बाद ही विधायक दल की बैठक के आसार हैं।
इसे शायद कांग्रेस का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस पर भरोसा किया जाता है, वही पार्टी को तोडऩे पर आमादा हो जाता है। गहलोत को हाईकमान ने अध्यक्ष के लिए चुना। राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद लेने से इंकार करते हुए साफ कर दिया कि गांधी परिवार का कोई व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बनेगा। फिर गहलोत माने। लेकिन पहले उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोडऩे से इंकार कर दिया। राहुल ने एक व्यक्ति एक पद की बात कही, तो गहलोत को यह भी मानना पड़ा, लेकिन राजस्थान में अपने समर्थक विधायकों को उन्होंने भडक़ा दिया। 
असल में कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में था, लेकिन कांग्रेस के बुजुर्ग शायद युवा पीढ़ी को आगे ही नहीं आने देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि आगे आएं तो उनके परिवार के लोग ही आगे आएं। पद की लिप्सा इस कदर है कि पार्टी को भी आग में झोंकने के लिए तैयार हो जाते हैं। कई दिग्गज तो कांग्रेस का उपयोग कर आज दूसरी पार्टी में चले गए। कई और लोग छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। गहलोत इसी माहौल का फायदा उठाना चाहते हैं। मध्यप्रदेश में भी ऐसा हो चुकी है। अब राजस्थान के लिए कांग्रेस नेतृत्व के पास फिलहाल कोई विकल्प दिख नहीं रहा है। लेकिन एक साल बाद चुनाव है। विशेषज्ञों का कहना है कि गहलोत के नेतृत्व में ही चुनाव होते हैं तो कांग्रेस का फिर से सत्ता में आना मुश्किल ही है। अब गहलोत समर्थक को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो भी सरकार बनने की संभावना नहीं है। लेकिन यहां तो हम नहीं तो कोई नहीं, और खाएंगे नहीं तो फैला देंगे..इस मानसिकता के लोग हैं। नेतृत्व की कमजोरी का फायदा ऐसे ही उठाया जाता है। हमारा तो मानना है कि गहलोत जैसे व्यक्ति को कांग्रेस की कमान कभी नहीं सौंपना चाहिए, वो कांग्रेस के हितैषी नहीं, अपितु घोर स्वार्थी हैं। पहले भी यह साबित हो चुका है। नेतृत्व की मजबूरी यह है कि फिर भरोसा करे भी किस पर..?
-संजय सक्सेना 
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