संजय सक्सेना
इतिहास अपने आप को दोहराता है। कुछ घटनाएं मस्तिष्क में कौंध जाती हैं। दिग्विजय सिंह का दूसरा कार्यकाल अंतिम दौर की ओर जा रहा था। उनका कांग्रेस के अंदर विरोध तेज हो गया था। वैसे भी इस दूसरे कार्यकाल में दिग्गी राजा चैन से नहीं रह पाए, कारण कुछ भी रहा हो। विरोध इतना की कभी भी सीएम बदल सकता है। चुनाव पास आ रहे थे। बीजेपी के संगठन महा सचिव कप्तान सिंह सोलंकी हुआ करते थे। खबरें आ रही थीं, दिग्विजय की सोलंकी से मुलाकात हुई। चर्चा हुई। क्या हुई, पता नहीं। उमा भारती भोपाल में पांव जमा रही थीं। दिग्विजय सिंह ने ऐलान कर दिया, अगर कांग्रेस प्रदेश में नहीं आई तो वे दस साल तक कोई पद नहीं लेंगे। सोलकी से मुलाकातें और ये ऐलान। गुणा भाग लगने लगे। दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटा ढार का तमगा मिला और उमा भारती सीएम बनीं। पॉवर कप्तान साहब के पास रही।एक तरह से सरकार कप्तान साहब ही चला रहे थे।कहा जा रहा था कि कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। कम हो लोग जानते हैं कि सत्ता का हस्तांतरण हुआ। सोलंकी राजपूत समाज की महत्व पूर्ण कड़ी रहे हैं, इसमें राजनाथ सिंह जैसे कुछ नेता भी शामिल रहे हैं। खैर दस साल की घोषणा थी। यहां बीजेपी में उमा, फिर बाबूलाल गौर ये अंततः दिग्विजय सिंह के मित्र सुंदर लाल पटवा के शिष्य शिवराज के पास सत्ता की कमान आ गई। बस यहां थोड़ी समस्या हुई, लेकिन कुछ से बाद वो भी खत्म हो गई। प्रशासन चलाने में मदद होती रहो। आज जो प्रशासन चला रहे हैं वो दिग्विजय के सबसे खास रहे।अंतराल के बजाय वो एपको में बैठ कर दिग्विजय सरकार की फाइलें इप्रया करते थे। आज मा ट्राले से लेकर पूरे प्रदेश में इनका कब्जा है। सरकार यही चला रहे हैं।
पिछले चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी, पंद्रह साल के अंतराल के बाद। सीएम को लेकर जद्दोजहद हुई। जीत कमलनाथ की हुई। दिग्विजय और कमल नाथ सत्ता के केंद्र बिंदु बने। लेकिन मजे की बात ये रहो कि शिवराज तब भी पावर में ही दिखते रहे। अचानक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर दी। सरकार गिर गई। फिर सत्ता की कमान सम्हालने की बात आई। हनी ट्रैप कांड में कमलनाथ ने जिन्हे छोड़ा, वो ही काबिज हो गए। ये सत्ता का हस्तांतरण था। कई नाम आए, लेकिन अंततः उन शिवराज को कमान सौंपी गई, जिन्हे जनता ने नकर दिया था। पर सत्ता त्यागी कमलनाथ व दिग्विजय शायद शिवराज की ही चाहते थे, सो बीजेपी को ना चाहते हुए भी उन्हें कमान सौंपनी पड़ी। राजनीतिक और प्रशासनिक विशेषज्ञ जानते हैं कि यदि शिवराज को विरोध के बावजूद नहीं हटाया जा सका तो उसमे पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की भी भूमिका है। जब भी कोई मुहिम बीजेपी में चलती है, कमलनाथ ही हवा निकाल देते हैं। खुद बीजेपी के अंदर कहानी चर्चा है कि शिव नाथ एक्सप्रेस चल रही है।
अब आने वाले चुनाव की बात करें। मैदानी रिपोर्ट कही है कि बीजेपी की हालात खराब है । प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता ऐतिहासिक हो गई है। जिम्मेदार कौन? सीएम बदलने की बात अब प्रदेश अध्यक्ष बदलने पर चली गई है। वीडी शर्मा बीजेपी के सबसे असफल अध्यक्ष कहे जा रहे हैं। उन पर कई आरोप हैं। इसके लिए भी शिवराज से ही नाम मांगा जा रहा है। केंद्रीय नेतृत्व की अगर कहीं नहीं चल पा रही है तो वो मध्य प्रदेश है। संघ की अंदरूनी रिपोर्ट कहती है कि आज की तारीख में प्रदेश में बीजेपी को सत्तर से ज्यादा सीटें नहीं मिल रहीं है। यानी सत्ता आना मुश्किल है। इधर कमलनाथ ने दिल्ली जाने से मना कर दिया है। वो और उनके करीबी अगले साल सत्ता के सपने देख रहे हैं। वो मान रहें हैं कि बस उनकी मंजिल दूर नहीं। इधर शिवराज करीबी वैसा ही डायलॉग बोल रहे हैं जैसा पूर्व में दिग्विजय बोल रहे थे। यानी हम नहीं रहेंगे तो सरकार भी नहीं रहेगी। और चुनाव हम ही कराएंगे।
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