और कुछ कहने की आवश्यकता है...?
एक खबर की विस्तृत रिपोर्ट का हिस्सा पढक़र एक साथ कई प्रतिक्रियाएं हुईं। आंखें नहीं मानीं, आंसू छलक पड़े। गुस्से का दौर भी आया तो अचानक चिंता की लहर भी दौड़ पड़ी। हम जिस समाज में रह रहे हैं, क्या वो अब समाज कहलाने लायक नहीं बचा? क्या हम जंगलराज की परिभाषा को और क्रूर करने की ओर जा रहे हैं? और भी तमाम सारे सवाल कौंध गए, जवाब शायद नहीं मिल पाएगा, तब तक एक और अंकिता के साथ शायद मिलती-जुलती घटना घट जाएगी!
उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के साथ हुई घटना का ब्यौरा देखते हैं-अंकिता पर बीजेपी नेता पुत्र के जंगल में अवैध बने रिजॉर्ट में सेक्स रैकेट में शामिल होने का दवाब था। वह इनकार करती हैं। वह यही उसकी मौत की वजह बनती है। अंकिता के अपने दोस्त के साथ किए गए आखिरी वॉट्सऐप चैट में यह पूरी कहानी है। अंकिता को पुलिकित आर्य बहकाकर शक्ति नहर के पास ले जाते हैं। वहां उसे धक्का दे दिया जाता है। अंकिता गंगा में कहीं खो जाती है। अंकिता की मौत की खबर से एक सिहरन सी ऋषिकेश से गंगोत्री और माणा तक, जहां से गंगा और यमुना निकलती है, वहां की घाटियों में दौड़ जाती है। बेटियों के शरीर में एक कंपकंपी अवश्य छूटी होगी। देहरादून, ऋषिकेश, हल्द्वानी पहाड़ में बेटियों के सपनों को पंख देने वाले शहर रहे हैं।
दरअसल यह एक बेबसी भी है। राज्य बने दो दशक से ऊपर हो गए हैं, लेकिन पहाड़ पर रोजगार और ढंग की पढ़ाई का कोई सिस्टम बन नहीं पाया। ऐसे में आगे बढऩे-पढऩे की चाह रखने वाली बेटियों के लिए ये शहर सपने जैसे हैं। अंकिता भी एक ऐप पर निकली जॉब के जरिए वनंत्रा रिजॉर्ट तक पहुंची थी। आखिर पुलकित जैसे शोहदे पैदा क्यों होते हैं? दरअसल ये पहाड़ी राज्य के दबंग होते सत्ता के सिस्टम की उपज हैं। पहाड़ी राज्य ही क्या, यहां तो देश के तमाम हिस्सों में ही यह सिस्टम चल रहा है। एक नहीं सैकड़ों पुलकित आर्य पैदा हो चुके हैं और पैदा हो रहे हैं। पुलकित आर्य के बनने की कहानी से आप इसे बेहतर तरीके से समझ जाएंगे। अगर बीजेपी नेता पिता ने सही समय पर बेटे के काम उमेठ दिए होते, या फिर देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी बीजेपी के हाईकमान ने सीएम धामी को कस दिया होता, तो शायद अंकिता बच जाती। थोड़ा पीछे जाते हैं, लॉकडाउन के दौरान पूरा देश घर में बंद था, पुलकित अपने पिता की पशुपालन बोर्ड उपाध्यक्ष की प्लेट वाली गाड़ी के साथ चमोली में अमरमणि त्रिपाठी के साथ सैर-सपाटे पर था। अब अमरमणि त्रिपाठी को तो जान ही गए होंगे। पकड़े जाने पर भी उस पर कोई बड़ा ऐक्शन नहीं होता। पुलकित को पता होता है कि सत्ताधारी पार्टी में पिता और बड़े भाई की पहुंच उसका बाल बांका होने नहीं देगी।
इससे पहले 2016 में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज में मुन्नाभाई कांड खुलता है। प्रवेश फर्जीवाड़े में पुलकित सस्पेंड कर दिया जाता है। उस पर केस दर्ज होते हैं, लेकिन यहां भी दर्जाधारी मंत्री पिता की पहुंच काम आती है। उसे गिरफ्तार नहीं किया जाता। यही नहीं, लाड़ले को कॉलेज में दोबारा दाखिला दिलवाने के लिए पिता ने क्या किया इसका खुलासा बाद में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार रहे मृत्युंजय मिश्रा करते हैं। मिश्रा बताते हैं कि बेटे को दोबारा दाखिला दिलवाने के लिए बीजेपी नेता विनोद आर्य ने दो करोड़ नकद और एक ऑडी कार देने की पेशकश की थी।
अपने नालायक बेटे के लिए एक पिता का मोह और सत्ता का दंभ। फिर अंकिता का चेहरा। फिर चौकी के बाहर बेबस खड़े अंकिता के पिता का चेहरा भी याद कीजिए, जो न जाने कितने दरवाजों पर अपनी बेटी को तलाशने के लिए गिड़गिड़ाया। कल्पना कीजिए अंकिता के पिता जिस थाने में कार्रवाई की गुहार लगाने के लिए खड़े रहे होंगे, तो वहां स्पेशल चाय पी रहे रहे विनोद आर्य क्या कर रहे होंगे। और यह भी कि अब जब उनका लाड़ला अंकिता की हत्या में पुलिस की गिरफ्त में है, तो वह क्या कर रहे होंगे। और आखिर में, अपने ट्विटर हैंडल पर अपने हर काम का प्रचार करने वाले राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जरा ट्विटर हैंडल खोलिए। जिस अंकिता की हत्या पर पूरा पहाड़ हिला हुआ है, उस पर उनका एक अकेला वीडियो देखिए। उसके शरीर की भाषा पढ़िए। शब्दों को तौलिए। राज्य के डीजीपी का फेसबुक पेज भी जरा खंगालिए। इस घटना पर उनके शब्दों और बॉडी लैंग्वेज पर गौर कीजिए। अंकिता क्यों जिंदा नहीं है, आपको समझ आ जाएगा।
एक अंकिता, एक पहाड़ी राज्य की कहानी नहीं। आज पूरा देश हिला हुआ है, ऐसी घटनाओं से। हम ईडी और सीबीआई के सहारे विपक्षियों का सर्वनाश करने पर तुले हुए हैं, तो हमें थोड़ा सा वक्त अपने गिरेबान में भी झांकने का निकालना होगा। उत्तराखंड की पावन धरती को किस तरह से बदनाम और बर्बाद किया जा रहा है, समझ आ जाएगा। पूरे समाज को किस ओर धकेला जा रहा है, यह भी समझ आ रहा है। कुछ कहने की जरूरत नहीं। कहने से होना क्या है? नक्कारखाने में तूती की आवाज। बस मन मसोसकर ईश्वर को याद करो। आंसू बहें तो पी जाओ। अंदर की प्रतिक्रियाओं को वहीं पर दबा दो। यह लिखने का साहस भी मत करो..। शायद..।
-संजय सक्सेना
Post a Comment