मौत के अस्पताल!

अस्पताल लोगों को जिंदगी देते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में सैकड़ों अस्पताल ऐसे भी हैं, जो जिंदगी के बजाय मौत देते हैं। निजी अस्पतालों की हालत ऐसी है कि लोग छोटे मकान में शुरू कर देते हैं तो जबलपुर में तो एक डाक्टर साहब होटल से ही अस्पताल चला रहे थे। मानदंडों का पालन करने की हालत ये है कि अस्पतालों में आग से बचने के उपाय तो मौैजूद रहते ही नहीं हैं, बचकर निकलने का कोई रास्ता भी नहीं छोड़ा जाता। 
जब लगातार घटनाएं होती हैं, तब ही सरकार जागती भी है। लेकिन इस बार कुछ ठीक तरह से जाग गई है, ऐसा लग रहा है। तभी तो मध्यप्रदेश के 92 प्राइवेट अस्पतालों का लाइसेंस कैंसिल कर दिया गया है। जबलपुर के न्यू लाइफ सिटी हॉस्पिटल में हुई आगजनी की घटना में आठ लोग जिंदा जल गए थे, उसके बाद स्वास्थ्य विभाग को लगा कि प्रदेश के अस्पतालों की स्थिति देखी जाए। विभाग ने जांच के लिए कमेटी बनाई थी, जिसने अस्पतालों में अनेक खामियां मिलने पर एक्शन लिया गया है। इसमें सबसे ज्यादा जबलपुर के 33, भोपाल के 21 और ग्वालियर के 19 अस्पताल शामिल हैं।
इस बार की जांच में हर जिले में एक डॉक्टर के साथ नगर निगम के फायर ऑफिसर और इलेक्ट्रिकल सेफ्टी ऑफिसर के साथ जॉइंट टीम बनाकर अस्पतालों व निजी नर्सिंग होम्स का निरीक्षण कराया गया। इस जांच में प्रदेश के 23 जिलों के नर्सिंग होम बिना टेम्परेरी फायर एनओसी के चलते मिले हैं। जांच के दौरान नियमों के मुताबिक अस्पताल संचालित न मिलने पर 92 निजी नर्सिंग होम के पंजीयन निरस्त किए गए हैं। विडम्बना देखो, कई जिले ऐसे भी मिले, जहां एक भी नर्सिंग होम ने टेम्परेरी फायर एनओसी नहीं ली थी। इनमें राजगढ़, विदिशा, झाबुआ, बड़वानी, भिंड, शिवपुरी, मुरैना, बालाघाट, डिंडोरी, मंडला, उज्जैन, नीमच, शाजापुर, रतलाम, मंदसौर, आगर मालवा, पन्ना, दमोह, सतना, सीधी, उमरिया, अशोकनगर, नरसिंहपुर शामिल हैं। 
यह तो हद है। क्या नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों पर भी इस मामले में कार्रवाई की जाएगी? बिल्कुल नहीं, क्योंकि जब जबलपुर के अस्पताल में हुई आगजनी की घटना में आठ लोग जिंदा जल गए, तब अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो यह तो मामूली घटना है। दैनिक सांध्यप्रकाश पिछले एक साल से भी अधिक समय से इस मुद्दे को लगातार उठाता आ रहा है। फायर एनओसी के मामले में केंद्र सरकार तक से चिट्ठियां आती रही हैं, लेकिन मजाल है कि नगरीय निकाय और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कठोरता से नियमों का पालन कराएं। अस्पतालों और नर्सिंग होम्स से उनका महीना बंधा होता है, उन्हें केवल उसकी चिंता रहती है। काई बड़ा मामला हो जाता है, तो बड़ी राशि लेकर रफा-दफा कर देते हैं। फिर भी हालिया कार्रवाई यह बताती है कि प्रदेश में सैकड़ों अस्पताल वाकई मौत के अस्पताल बने हुए हैं। अब यह क्रम लगातार चलाना होगा। और जो नए अस्पताल या नर्सिंग होम खुलें, उनके लिए मानदंडों का पालन करने की सख्ती होना चाहिए। फायर एनओसी के केवल कागज ही हों, उससे भी काम नहीं चलेगा, क्योंकि रिश्वत लेकर एनओसी भी दे दी जाती है। अधिकारी मौका मुआयना करते ही नहीं हैं, जैसे सडक़ों से लेकर डैम तक की एनओसी रिश्वत लेकर दे दी जाती है, वैसे ही अस्पताल चलते रहते हैं। इसलिए सरकार को जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई अवश्य करना चाहिए, नहीं तो लापरवाही और भ्रष्टाचार के अस्पताल लोगों को मौत का उपहार देते रहेंगे और लूटते भी रहेंगे। 
-संजय सक्सेना 

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