मौत भी दो और जुर्माना भी वसूलो!


प्रदेश में अब बगैर हेलमेट दोपहिया वाहन चलाए जाने पर 250 रुपए के बजाए 500 रुपए जुर्माना वसूला जाएगा। केंद्र सरकार ने जुर्माने की यह दर 1000 रुपए निर्धारित कर दी है, इसी के अनुसार मप्र में जुर्माने की दरें बढ़ाई जा रही हैं। प्रदेश में 2015 के पहले बिना हेलमेट के वाहन चलाने पर 100 रुपए और उसके बाद 250 रुपए कर दिए गए थे।
खबर आई है कि मध्यप्रदेश में दोपहिया वाहन बगैर हेलमेट चलाए जाने जुर्माना बढ़ाए जाने के पहले राज्य सरकार ने पड़ोसी राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश के द्वारा मोटर व्हीकल एक्ट में किए गए संशोधन का अध्ययन किया है। इसके बाद सरकार द्वारा गठित मंत्रिमंडल की समिति में लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव, परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया के बीच इस बारे में चर्चा हुई है। हालांकि तीनों मंत्रियों की राय यह है कि आम जनता और किसानों से संबंधित मामलों में जुर्माना कम रखा जाएगा। लेकिन सु्प्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार जुर्माने की दरें बढ़ाई जाना तय है। खासतौर पर बगैर हेलमेट के जुर्माना दोगुना करने पर सहमति है। इस मामले को मंत्रिमंडल की यह समिति सरकार को सौंपेगी, जिसके बाद इसे लागू किए जाने के लिए कैबिनेट की मीटिंग में लाया जाएगा।
केंद्र सरकार ने मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन कर विभिन्न धाराओं में जुर्माने का प्रावधान किया है, इसी के अनुसार राज्य शमन शुल्क की दरों में संशोधन कर रही हैं। इसके लिए राज्य सरकार ने अन्य राज्यों में लागू मोटर व्हीकल एक्ट का अध्ययन किया है। इसमें खास यह है कि अगली साल चुनावी वर्ष होने की वजह से नफा नुकसान भी देखा जा रहा है, क्योंकि जुर्माना बढ़ाने या घटाने पर अंतिम फैसला परिवहन विभाग के संशोधित प्रस्ताव पर कैबिनेट को करना है।
पहली बात तो यह कि हेलमेट दुपहिया वाहन चालकों के लिए जरूरी होना भी चाहिए, लेकिन उससे जरूरी यह है कि जिन सडक़ों के कारण दुर्घटनाएं होती हैं, क्या उन्हें बनाने और न सुधारने वालों पर जुर्माना होना चाहिए। जुर्माना क्या, अधिकारियों को तो बर्खास्त ही कर देना चाहिए। मौत का जिम्मेदार उन अधिकारियों को भी बनाना चाहिए, जिनके कारण सडक़ खराब रही और दुर्घटना हुई। सबसे पहले तो सरकार की जिम्मेदारी है कि सडक़ों का निर्माण अच्छा हो, फिर यदि खराब सडक़ या सडक़ों पर बने गड्ढों के कारण दुर्घटना होती है, तो कोर्ट को सरकार के खिलाफ भी अपराध दर्जन करना चाहिए। आखिर उसकी भी तो जिम्मेदारी है। 
क्या सरकार की जिम्मेदारी केवल जुर्माना लगाकर अपना खजाना भरने की है़? क्या उन ठेकेदारों और रिश्वतखोर- लापरवाह अफसरों को जो करोड़ों का भुगतान होता है, वो जनता को मौत या जिंदगी भर की अपंगता के साथ भी भुगतना उचित है? राजधानी भोपाल की ही बात करें, सडक़ों के खराब होने की जिम्मेदारी अधिकारी लोग बड़ी आसानी से एक दूसरे पर डाल देते हैं। लेकिन यदि कोई दुर्घटना होती है, तो उन्हें आरोपी क्यों नहीं बनाया जाता? यह सवाल तो खड़ा होता ही है। लोकतंत्र में जनता की सुविधाएं सर्वोपरि होना चाहिए, लेकिन यहां तो जनता को कुचला जा रहा है। यहां उस पर टैक्स पर टैक्स थोपे जा रहे हैं। गलती कोई करे, जुर्माना आम आदमी को ही भरना पड़ता है। वाहनों के मामले में तो हद हो गई है। सडक़ के लिए टैक्स वाहन खरीदते समय ही ले लिया जाता है, फिर भी टोल टैक्स वसूला जाता है, जबरन। और इंश्योरेंस के नाम पर भी उसे लूटा ही तो जाता है। सरकार में बैठे लोग भ्रष्टाचार के माध्यम से अपने घर भरते हैं तो वसूली आम आदमी से होती है।
हेलमेट का मामला हो या अन्य वाहन संबंधी नियमों के पालन का, हम सबको उनका पालन करना चाहिए। इसके लिए जुर्माना करने के बजाय और अधिक चेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है। साथ ही पुलिस कर्मियों को जिस तरह से टार्गेट दिया जाता है कि उन्हें इतने चालान करना ही हैं, यह परंपरा भी खत्म हो। चालान के नाम पर केवल दुपहिया वाहन चालकों को लूटने का ही टार्गेट रहता है। न तो पुलिस ट्रैफिक पर ध्यान देती है और न ही सडक़ों पर ध्यान दिया जाता है। जुर्माना वसूलो, लेकिन टै्रफिक भी तो सही करो, इसके लिए केवल कागजों पर काम होता है। बल्कि इसके नाम पर भी करोड़ों रुपए खा लिए जाते हैं। सरकार बताए, किस शहर का टै्रफिक सामान्य श्रेणी में है और चलने लायक है। जनता कुछ बोलती नहीं, तो उस पर जुर्मानों और टैक्स का बुलडोजर चलाते जाओ। कोर्ट को भी इस तरफ ध्यान देना होगा। चालान का एकतरफा निर्णय थोपना ठीक नहीं। 
-संजय सक्सेना

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