आरसीपी सिंह को शिंदे समझने की भूल...

भाजपा के चाणक्य आर सी पी सिंह को एकनाथ शिंदे समझने की भूल कर गए। यह भी ध्यान नहीं रखा कि महाराष्ट्र में साम्प्रदायिक राजनीति प्रभावशाली है लेकिन बिहार में आज भी जातिवाद चरम सत्य है। बिहार का सत्ता परिवर्तन दरअसल मोदी सरकार की महंगाई के संभावित नकारात्मक प्रभाव से बचने के कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए।
नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा के बीच मनमुटाव का महत्वपूर्ण कारण है जाति आधारित जनगणना पर मतभेद। यहां यह तकनीकी पेंच भी समझ लीजिए कि जातीय जनगणना केंद्र सरकार का अधिकार है, जाति आधारित जनगणना राज्य सरकार भी करा सकती है। अब यह समझ लें कि भाजपा इसके क्यों खिलाफ है? ( भाजपा के बिहार अध्यक्ष संजय जायसवाल ने खुलकर विरोध किया है) इसका जवाब यह है कि क्यों जदयू और राजद इसके पक्षधर हैं। इसलिए कि यह दोनों दल यह स्थापित करना चाहते हैं कि दरअसल कौनसी जाति के कितने वोटर हैं और क्या उनको उस अनुपात में आरक्षण मिल रहा है? नहीं मिल रहा तो दिलाने के लिए गोलबंदी। 
नीतीश कुमार का भाजपा से पहला सार्वजनिक टकराव तब देखने को मिला जब विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने मानसून सत्र में सदन में बहस की शुरुआत कर दी तो नीतीश कुमार ने अपने सभी विधायकों, मंत्रियों को बहिष्कार करने के लिए कहा। फिर भी बहस चलती रही तो नीतीश तमतमाते हुए सदन में आये और बोले-" सदन इस तरह नहीं चलेगा। हमें स्वीकार नहीं है। " जवाब में भाजपा के अध्यक्ष ने जवाब दिया कि-" आप बता दीजिये सदन कैसे चलेगा।" नीतीश सदन से चले गए। इसके बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के जाती आधारित जनगणना के विरोध में बयान तेज हो गए।
आर सी पी सिंह, जो एक जमाने में नीतीश की नाक का बाल थे, वह भाजपा से पींगे बढ़ाने लगे। नीतीश ने उनके पर कतर दिए। उनके केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटने के बाद नीतीश ज्यादा प्रतिनिधित्व मांग रहे थे जो कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने साफ मना कर दिया। 
नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार पार्टी में तेजस्वी यादव शामिल हुए। नीतीश कुमार उनको बाहर कार तक छोड़ने आये तो राजनीतिक गलियारों में कानाफुसी शुरू हो गई। जाति आधारित जनगणना की मांग करने दोनों दल साथ गए। नीतीश ने तेजस्वी को प्रेस से बोलने का मौका देकर फिर संकेत दिया।
इस बीच लालू प्रसाद यादव गिर गए और पारस अस्पताल में भर्ती किये गए। नीतीश कुमार उन्हें देखने पहुंचे। दोनों में महत्वपूर्ण गुफ्तगू हुई। योजना पर काम शुरू हो गया। आज परिणति सामने आ गई। 
अब इसका राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा यह विश्लेषण किया जाए तो सबसे अहम बात दो सामने आती है। एक- लंबे समय से राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के एकछत्र रूप से सत्तारोहण और एकाधिकार को बड़ी चुनौती मिली है। उत्तरप्रदेश पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। 
दो- " अब महंगाई और बेरोजगारी को विपक्ष मुद्दा बनाने में पहले के मुकाबले ज्यादा प्रभावी रहेगा। काँग्रेस को भी बल मिलेगा। गठबंधन में है। 
बाकी केंद्र के दोनों महारथी कथानक बदलने में माहिर हो चुके हैं, सो कुछ नए परिदृश्य सामने आएंगे। 
तब तक देखते रहिये 😁 
#राजचक्र

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