सुप्रीम कोर्ट हाल ही में कह चुका है कि कुकुरमुत्तों की तरह पनप रहीं अवैध कॉलोनियां शहरी विकास में बाधक हैं। लेकिन प्रशासन और शासन में बैठे अधिकारियों की कथित मिलीभगत के चलते लगातार शहरों में अवैध कालोनियों के निर्माण का सिलसिला जारी है। इसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि चुनाव पास आते ही सत्ता में बैठी पार्टियां हजारों अवैध कालोनियों को वैध कर देती हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल भी इन शहरों में शुमार है, जहां नदियों और तालाबों तक का सत्यानाश किया जा चुका है और सिलसिला जारी है।
झीलों और शैल शिखरों की नगरी भोपाल कभी अपने बड़े तालाब के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध रही है, लेकिन पिछले एक दशक में यह अवैध कालोनियों का शहर भी बन रहा है। और तो और सत्ताधीशों और प्रशासनिक अफसरों की नाक के नीचे ही यह हो रहा है। इनमें तमाम तो तालाबों और नदियों पर बन गई हैं, जिन्हें वैध मान लिया गया है। कहा जाता है कि इनमें नेताओं और अधिकारियों की भी सक्रिय हिस्सेदारी है। आज ही खबर आई है कि भोपाल के आसपास 20 किमी के दायरे में 70 प्रतिशत खेती की जमीन पर अवैध कॉलोनियां बन गई हैं। यहां न बिजली है, न पानी, क्योंकि ये अवैध हैं और बिना सरकारी अनुमति के बनी हैं। खुद प्रशासन के एक सर्वे में यह बात निकलकर आई है कि खेती की 400 एकड़ से ज्यादा जमीन पर 593 अवैध कॉलोनियां बसी हैं।
इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि सर्वे में अवैध कॉलोनियों की पूरी सूची बनी, इसके बावजूद प्रशासन ने सिर्फ 100 किसानों पर कार्रवाई करके फाइल ठंडे बस्ते में रख दी। कारण खुद ही सोचा जा सकता है। रजिस्ट्रार कार्यालय की जानकारी बताती है कि पांच साल में शहर में 1.40 लाख रजिस्ट्री पुरानी प्रॉपर्टी की हुईं हैं। इसमें खेती की जमीन भी शामिल हैं। नई 25373 और 1.40 लाख पुरानी रजिस्ट्रियों का आंकड़ा मिलकर 165373 पर पहुंचता है। वैध अवैध के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2 लाख 16 हजार 336 प्रॉपर्टी आज भी अवैध कॉलोनियों में हैं। रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानि क्रेडाई भोपाल के मुताबिक नगर निगम सीमा और उसके बाहर हर साल 30 से 40 प्रतिशत खेती की जमीनों पर प्लाटिंग हो रही है। कम कीमत में लोग यहां पर प्लॉट खरीदते हैं।
जिला प्रशासन ने सर्वे कराकर 100 से ज्यादा कॉलोनी संचालकों पर केस किया है। 200 से ज्यादा कॉलोनियां तोडऩे का दावा भी किया जा रहा है, लेकिन इनमें से ज्यादातर के मालिक किसान बताए जा रहे हैं। जबकि उनका आरोप है कि उन्होंने जमीन बिल्डर को बेची थी। प्रशासन की कार्रवाई के एक सप्ताह बाद ही इन जमीनों पर फिर से प्लॉटिंग शुरू हो गई है।
केवल खेती ही नहीं, भोपाल शहर के भीतर ही दो दर्जन से अधिक ऐसी कालोनियां हैं, जिनकी जमीनों का सही रिकार्ड ही नहीं हैं। इन्हें तो प्रशासन और शासन वैध कर चुका है या मान चुका है, जबकि कोई तालाब के डूब क्षेत्र में है। कोई तालाब को भर की बनाई गई है। कोई कालोनी पहाड़ पर ही तान दी गई। फर्जी रकबों के दर्जनों केस आज भी चल रहे हैं। जिनकी प्रशासन या शासन में जुगाड़ हो जाती है, वो मकान या कालोनी तान देता है। जिनकी नहीं हो पाती, वो अदालत में मुकदमा लड़ते रह जाते हैं। चूना भट्टी जैसे इलाके में एक पूर्व स्वर्गीय मंत्री की पत्नी की जमीन ही प्रशासनिक अमले ने गायब कर दी। चूंकि वह भोपाल में नहीं हैं, किसी से फरियाद करने की स्थिति में नहीं हैं, अदालत के भरोसे सालों गुजर गए, हुआ कुछ नहीं। यह तो एक उदाहरण है, भोपाल में ऐसी तमाम अवैध कालोनियां वैध कर दी गई हैं। पिछले तीन दशक से तो सरकारी जमीनें गायब हो रही हैं, उन्हें निजी रकबे में बदलने के बाकायदा गिरोह चल रहे हैं। बावडिय़ा कलां में एक विस्थापित की जमीन पर पहले किसानों ने कब्जा किया, फिर कालोनियां बन गईं। मामला उठा तो दर्जनों अफसर कार्यवाही के दायरे में आ रहे थे, सो फाइल ही गायब कर दी गई। और फिर दावेदार महिला का भी पता नहीं चला।
खैर, आज फिर अवैध कालोनियों का जो मामला उठा है, वही गंभीरता से देख लिया जाए तो शहर का नक्शा बिगडऩे से बच सकता है। वैसे किसानों और बिल्डरों के बीच बाकायदा जंग चल रही है, सब एक-दूसरे को अवैध बता रहे हैं। बिल्डर कितने दूध के धुले हैं, यह भी सब जानते हैं, लेकिन जो किसानों से सस्ती जमीन लेते हैं, वह इन लोगों को पचता नहीं है। प्रशासन को बिना यह देखे, कि अवैध कालोनी कौन विकसित कर रहा है, जमीनों की सही जानकारी सार्वजनिक भी होना चाहिए और अवैध कालोनियों पर न केवल रोक लगाना चाहिए, अपितु सख्त कार्रवाई करना चाहिए। अब चुनाव भी सामने है, अवैध-वैध का खेल चुनाव के पहले ही बड़े पैमाने पर होता है।
-संजय सक्सेना
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