Editorial बचाओ नई पीढ़ी को…

संजय सक्सेना
देश के हृदयस्थल मध्यप्रदेश में ही हृदय यानि दिल सुरक्षित नहीं है। यहां खेलने-कूदने की उम्र के बच्चों और युवाओं की दिल की बीमारियों से मौतों का जो आंकड़ा आ रहा है, वो बहुत ही गंभीर और चिंताजनक है। जून 2025 में जारी भारत के महापंजीयक की एमसीसीडी की रिपोर्ट को देखा जाए तो साफ संकेत मिलते हैं कि कोविड के बाद दिल की बीमारियों का तो आंकड़ा बढ़ा ही है, युवाओं और किशोरों में हार्ट अटैक से मौतों के मामले भी कई गुना बढ़े हैं।
यह सरकारी आंकड़ा कोविड से पहले और कोविड के बाद दिल की खराब होती हालत के साथ ही उसे संभालने का संकेत दे रहा है। मेडिकल सर्टिफाइड मौतों में हृदय रोग से मौतों का अनुपात भले घटा है, लेकिन 1 से 24 साल तक के बच्चे और युवाओं बढ़ोतरी अप्रत्याशित है। मेडिकल सर्टिफाइड का मतलब डाक्टर इन्हें प्रमाणित ही नहीं करते। वे कोई और कारण बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
अब आते हैं आंकड़ों की जुबानी पर। असल में कोविड से पहले वर्ष 2018 में 1 से 4 आयु वर्ग में ऐसी मौतें केवल 0.6 प्रतिशत थीं, जो कोविड के बाद 2022 में 14.1 प्रतिशत हो गईं। इन चार वर्षों में 2250 प्रतिशत की अविश्वसनीय वृद्धि दर्ज हुई। 5 से 14 आयु वर्ग में इन्हीं चार साल में यह आंकड़ा 3.7 से बढक़र 18.6 हो गया, यानी 403 प्रतिशत की वृद्धि। 15 से 24 आयु वर्ग में ऐसी मौतें 39.64′ बढ़ी हैं। प्रदेश में हर तीसरी मेडिकल सर्टिफाइड मौत दिल संबंधी बीमारियों से हो रही है। बाद की तीन वर्षों का आंकड़ा भले ही अभी नहीं आया, लेकिन मौतों की वृद्धि की रफ्तार कम नहीं हुई है।
प्रदेश की राजधानी भोपाल हो या ग्वालियर-इंदौर, या अन्य शहर, कोविड के बाद फेफड़ों और दिल के रोगियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। यह देखने में आ रहा है कि युवा पीढ़ी में हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़े हैं। कोरोना से पहले युवाओं में हार्ट संबंधी परेशानी 35 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में देखने आती है, लेकिन कोरोना के बाद युवा पीढ़ी में इन मामलों भी तेजी से देखी जा रही है। स्थिति यह है कि अब 18 वर्ष के युवा में भी देखने में आ रही है।
चिकित्सा विशेषज्ञों से लेकर सरकारी अमला तक यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि युवाओं और किशोरों में हार्ट अटैक के मामले कोविड के आफ्टर इफेक्ट हैं या वैक्सीन के। कोविड के दूसरे दौर में तो वैक्सीन लगाने के बाद मौतों का आंकड़ा अचानक बढ़ा था, लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञ इसे मानने के लिए तैयार नहीं। अब कोविड के बाद जो आंकड़े अधिकृत तौर पर आ रहे हैं, उन्हें भी झुठलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। शासन-प्रशासन में बैठे लोगों का कहना है कि यदि यह घोषित कर दिया जाए कि कोविड या वैक्सीन के कारण हार्ट अटैक से लेकर अस्थमा और लंग्स से जुड़ी तमाम बीमारियां बढ़ी हैं, तो यह जनहित में नहीं होगा। लेकिन इस पर कहीं किसी तरह का शोध भी नहीं हुआ, कि जिससे हम सही कारण बता सकें और उसका निदान भी उतनी ही तत्परता से कर सकें।
डाक्टर बस यही कहते हैं कि भागदौड़ भरी जिंदगी, खाने का फिक्स टाइम ना होने से लेट ट्वेंटीज और अर्ली थर्टीज (25 से 34) वर्ष के युवाओं में इसका खतरा तेजी से बढ़ा है। साथ में सुस्त जीवनशैली, स्मोकिंग-ड्रिंकिंग और हाई स्ट्रेस से जोखिम ज्यादा हो गया है। यानि इसे आधुनिक बदलती जीवन शैली से जोड़ देते हैं। यह भी एक कारण हो सकता है, लेकिन जीवन शैली बदलने का क्रम तो इक्कीसवीं सदी शुरू होने से पहले ही प्रारंभ हो गया था। और फिर, कोविड के बाद ही कम उम्र में हार्ट अटैक का कारण भी सरकार या चिकित्सा विशेषज्ञ बताएं।
कुल मिलाकर कोविड के बाद हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती जा रही है और दवाओं का असर भी नहीं हो रहा है या कम हो रहा है। अधिक एंटीबायोटिक का चलन भी कम खतरनाक नहीं है। फिर, नई पीढ़ी को कैसे बचाया जाए? यह सवाल तो मौजूं है। और इसके लिए पूरे सिस्टम को प्रयास करने होंगे। ईमानदार प्रयास। जो सिस्टम में हैं, उनके बच्चों पर भी खतरा मंडरा रहा है। बचाओ नई पीढ़ी को।





