संजय सक्सेना
देश के घरेलू आसमान में इंडिगो की विशाल उपस्थिति ने भले ही भारतीय विमानन को गति दी, परंतु वर्तमान व्यवधान ने एक बात तो सिद्ध कर दी है कि अत्यधिक केंद्रीकरण किसी भी उद्योग के लिए कितना जोखिमपूर्ण साबित हो सकता है। और, इससे कई हजार लोग तक प्रभावित हो सकते हैं। यह सिद्धांत हर क्षेत्र में लागू होता है, यदि समझ में आये तो…।
इंडिगो की उड़ानों को लेकर पिछले कुछ दिनों की उथल-पुथल ने सामान्य यात्रियों, निवेशकों, नियामकों और प्रतिस्पर्धी कंपनियों को समान रूप से प्रभावित किया है। यह स्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सिर्फ एक एयरलाइन का परिचालन संकट नहीं अपितु इसने भारतीय विमानन प्रणाली की संरचनात्मक कमजोरियों को भी उजागर किया है।
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन यानि आईएटीए की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय घरेलू उड़ानों में इंडिगो का प्रभुत्व वर्षों से बढ़ता रहा है। और यही ताकत अब बाजार की बड़ी कमजोरी बन गई। जब अमेरिकी या यूरोपीय बाजार में कोई बड़ी एयरलाइन अवरोध का सामना करती है, वहां प्रतिस्पर्धी कंपनियां तुरंत दबाव कम कर पाती हैं। लेकिन भारतीय व्यवस्था में हाल ही में विलय, फ्लीट की कमी और नए विमानों की धीमी आपूर्ति ने संतुलन की क्षमता लगभग समाप्त कर दी है।
विश्लेषक मानते हैं कि भारतीय बाजार में यात्रियों के लिए विकल्प का दायरा अत्यंत सिमट चुका है। इसलिए जैसे ही इंडिगो के नेटवर्क की लय टूटी, पूरे सेक्टर सहित आसमान तक में अफरातफरी मच गई। एयरफेयर अप्रत्याशित रूप से बढ़ गए। कई रूट पर प्रतिस्पर्धी एयरलाइंस ने मौके का फायदा उठाया और 5 से 7 हजार की टिकटें लगभग 8 से 10 गुना बढ़ गईं। यह संकेत है कि भारत में घरेलू विमानन विकेंद्रीकृत प्रतिस्पर्धा के अभाव का सामना कर रहा हैै।
रिपोर्ट के अनुसार संकट के दौरान सबसे अधिक नुकसान यात्रियों को हुआ, और उनका संरक्षण लगभग नगण्य रहा। यही कारण है कि हालिया अव्यवस्था ने तीन बड़े सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या भारत को यूरोपीय देशों की तरह मजबूत पैसेंजर कंपेनसेशन कोड अपनाना चाहिए? दूसरा,क्या एयरलाइंस को फ्लाइट रद्द होने के समय स्पष्ट कारण बताना अनिवार्य होना चाहिए? और क्या यात्रियों को वास्तविक समय में रोस्टरिंग व स्टाफिंग स्थिति की जानकारी देने का कोई पारदर्शी तंत्र बनना चाहिए?
उपभोक्ता समूहों का आरोप है कि कंपनियां रद्दीकरण का बोझ हमेशा यात्रियों पर डालती हैं, जबकि परिचालन जोखिम उनकी अपनी जिम्मेदारी है। आईएटीए की रिपोर्ट कहती है कि स्टाफ संरचना, प्रशिक्षण क्षमता और नियामक संकेत लंबी अवधि की समस्या का शुरुआती संकेत है। गहराई में जाएं तो यह संकट अचानक नहीं आया। यह स्टाफिंग मॉडल से उपजा संकट है। फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स यानी एफआईपी ने आरोप लगाया है कि इंडिगो को नए नियमों की तैयारी के लिए दो साल का समय मिला था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने समय रहते भर्तियां नहीं कीं। उल्टा, भर्ती पर रोक लगा दी।
इंडिगो ने एयरबस ए320 ऑपरेशंस के लिए रात की ड्यूटी के नियमों से 10 फरवरी 2026 तक की छूट मांगी है। एयरलाइन ने तर्क दिया कि यात्रियों की असुविधा को कम करने और सुरक्षा मार्जिन बनाए रखने के लिए यह राहत जरूरी है। इस बीच, डीजीसीए ने विमानन कंपनियों में चालक दल के सदस्यों के लिए साप्ताहिक विश्राम से जुड़े अपने हालिया सख्त निर्देशों को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया है।
इंडिगो के लिए ही नहीं, पूरी विमानन इंडस्ट्री के लिए वर्तमान संकट एक वेक-अप कॉल की तरह है। मतलब, अब जागने का समय है। जिस ‘लीन मॉडल’ ने अब तक एयरलाइन को मुनाफे में रखा था, वही मॉडल अब कड़े सुरक्षा नियमों और स्टाफ की कमी के कारण जवाब दे गया। पूरी व्यवस्था के पटरी पर लौटने में अभी थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन यात्रियों पर सारा ठीकरा फोडऩे की ये प्रथा भी बंद होना चाहिए। इसके लिए उपभोक्ताओं को भी चेतना होगा और सरकार को भी वैकल्पिक व्यवस्थाओं पर गंभीरता से विचार करना होगा।
Editorial… एकाधिकार के चलते पैदा हुआ इंडिगो संकट
