Editorial : नाजुक दौर में भारत-अमेरिका के रिश्ते…

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से ट्रेड डील पर बातचीत करने से इनकार कर दिया है। ट्रम्प ने कहा है कि जब तक टैरिफ विवाद का हल नहीं निकल जाता, बातचीत शुरू नहीं होगी। इससे पहले मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि भारत से ट्रेड डील पर बातचीत के लिए अमेरिकी अधिकारियों का एक दल इसी महीने भारत आने वाला है। ऐसा लग रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में एक बार फिर खटास बढ़ रही है।
यह पहली बार नहीं है, जब ऐसा हुआ है। हमारी आजादी के बाद से ऐसे कई मौके आए हैं, जब अलग-अलग कारणों से भारत-अमेरिका के रिश्ते या तो रुखे रहे हैं, और कुछ मौके तो ऐसे थे, जब दोनों देश दुश्मनी की राह तक पर बढ़ चुके थे।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 7 अगस्त से 25 प्रतिशत आयात शुल्क लागू कर दिया है। इसके अलावा रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर 27 अगस्त से 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने की भी घोषणा की गई है। अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप के इन कदमों ने अमेरिका और भारत के रिश्तों को दो दशकों में सबसे निचले स्तर पर ला दिया है। दूसरी तरफ भारत ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसलों को लेकर सख्त रुख अपनाने के संकेत दे दिए हैं।
अमेरिका और भारत के बीच शुरुआत से ही कुछ चीजें समान रहीं। जैसे उपनिवेशवादी ताकतों से लंबी लड़ाई के बाद आजादी, लोकतंत्र, आदि। हालांकि, इसके बावजूद भारत ने स्वतंत्रता के बाद किसी एक पक्ष की तरफ झुकाव नहीं रखा। ऐसे में जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 1949 में अपने पहले अमेरिका दौरे पर पहुंचे तो उनका स्वागत तो जोरदार तरीके से हुआ, लेकिन दौरा खत्म होते-होते वह समझ गए कि अमेरिका से उनकी करीबी ज्यादा समय तक नहीं चलेगी।

सोवियत संघ से भारत को ज्यादा रिस्पांस मिला, तो भारत और सोवियत के रिश्ते मजबूत हो गये। यह बात अमेरिका को शुरु से  अखरती रही है।
भारतीय सेना की पूर्वी कमान ने तीन दिन पहले ही 1971 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष से ठीक पहले की एक पुरानी खबर को साझा कर अमेरिका की दोहरी नीति की ओर इशारा किया। दरअसल, 5 अगस्त 1971 की इस पुरानी खबर में बताया गया था कि अमेरिका किस तरह 1954 से पाकिस्तान को हथियार दे रहा था, और 1971 को जंग से पहले तक करीब 2 अरब डॉलर के हथियार भेज चुका था। जगजाहिर है कि 1971 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अमेरिका ने खुलेआम पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए भारत को युद्ध से पीछे हटने की धमकी दी थी। जब भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाते हुए बांग्लादेश को आजाद कराने की तैयारी पूरी कर ही थी, तब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इससे नाराजगी जताते हुए यूएसएस एंटरप्राइज ग्रुप को बंगाल की खाड़ी में भेजने का आदेश दे दिया था। अमेरिका का यह जंगी बेड़ा उस दौरान वियतनाम और श्रीलंका में तैनात था।
हालांकि, सोवियत संघ उस दौरान सीधे तौर पर भारत के साथ खड़ा था और उसकी किसी भी माकूल हरकत का जवाब देने के लिए अपनी सबमरीन को तैनात भी कर चुका था। दूसरी तरफ भारत ने भी अमेरिका की चेतावनियों को नजरअंदाज कर पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया और बांग्लादेश की आजादी की राह सुनिश्चित कर दी।
अमेरिका की तरफ से बाद में डिक्लासिफाइड दस्तावेजों में सामने आया कि निक्सन पाकिस्तान की मदद के लिए जॉर्डन के रास्ते पाकिस्तान को मदद भेजते थे, ताकि भारत की नजरों में इसका गलत प्रभाव नहीं दिखे। कुछ टेप्स में यह भी सामने आया था कि निक्सन ने भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए अपमानजनक शब्दों का भी इस्तेमाल किया था। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम ने भारत और सोवियत संघ की दोस्ती को परखा और मजबूत किया।

मई 1998 में जब भारत ने दूसरी बार अमेरिकी निगरानी से बचते हुए परमाणु परीक्षण किया था, तब अमेरिका ने हिंदुस्तान पर जबरदस्त प्रतिबंध लगाने का एलान कर दिया था। यह वह दौर था, जब अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की सरकार थी। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मंजूरी के बाद किए गए इस परमाणु परीक्षण से अमेरिका इस कदर नाराज था कि मानवीय सहायता के अलावा बाकी सभी तरह की मदद को रोक लिया था। इतना ही नहीं अमेरिका ने भारत को हथियार बेचने से भी इनकार कर दिया। भारत और अमेरिका का यह तनाव अगले कुछ वर्षों तक बरकरार रहा।
हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी की ओर से साल 2000 से 2008 तक अमेरिकी राष्ट्रपति रहे जॉर्ज बुश के नेतृत्व में 2008 में भारत और अमेरिका ने सिविल न्यूक्लियर डील पर हस्ताक्षर किए और दोनों देशों के बीच खटास में कमी आ गई। बाद में डेमोक्रेट राष्ट्रपति बराक ओबामा (2008-2016), रिपब्लिकन राष्ट्रपति राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल (2016-2020) और पिछले राष्ट्रपति जो बाइडन (2020-2024) के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंधों में सुधार हुआ। अब भारत और अमेरिका के बीच बड़ा तनाव ट्रंप प्रशासन के एलानों और कुछ फैसलों की वजह से पनपा है। देखना होगा कि आगे क्या होता है?

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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