Editorial
नई पेंशन योजना में कर्मचारियों की अरुचि…!

केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल 2025 से अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानि यूपीएस लागू कर दी है। इसके बावजूद देश के करीब 30 लाख एनपीएस यानि न्यू पेंशन स्कीम वाले कर्मचारियों में से केवल 90 हजार ने ही इसे अपनाया है, जो मात्र लगभग 3 प्रतिशत होते हैं। 97 फीसदी कर्मचारी अब भी तय नहीं कर पाए हैं कि उनके लिए ज्यादा फायदेमंद योजना कौन सी है, एनपीएस या यूपीएस?
केंद्र सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक कर्मचारी यूपीएस चुनें, इसलिए विकल्प चुनने की आखिरी तारीख भी 30 सितंबर तक बढ़ा दी गई है। लेकिन अभी की स्थिति यह है कि लंबी सेवा वाले कर्मचारी एनपीएस में ही भरोसा कर रहे हैं। हालांकि, रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके कर्मचारी यूपीएस का विकल्प ले रहे हैं।
इधर, मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने यूपीएस लागू करने की घोषणा कर दी है। राज्य में इसके नियम बनाने का काम चल रहा है और सितंबर तक इन्हें अंतिम रूप दे दिया जाएगा। प्रदेश में फिलहाल 207 आईएएस अफसरों और करीब 450 आईपीएस व आईएफएस अफसरों को एनपीएस और यूपीएस में से एक विकल्प चुनना है, लेकिन वे भी असमंजस में हैं। 
20 मई को केंद्र सरकार ने यूपीएस कैलकुलेटर लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य था कि कर्मचारी दोनों योजनाओं के लाभ-हानि खुद देखकर फैसला ले सकें। लेकिन नतीजा उल्टा निकला- कैलकुलेशन करने के बाद भी अधिकतर कर्मचारी असमंजस में ही हैं। अभी तक यूपीएस से कर्मचारियों की दूरी के पीछे तीन बड़ी वजह सामने आई हैं। पहला है, एनपीएस में ज्यादा अंशदान, फंड
एनपीएस में कर्मचारी अपनी सैलरी का 10 प्रतिशत अंशदान करते हैं और सरकार 14 प्रतिशत जोड़ती है। यानी हर महीने कुल 24 प्रतिशत राशि फंड में जमा होती है,जबकि यूपीएस में भी कर्मचारी का अंशदान 10 प्रतिशत ही है, पर सरकार यहां सिर्फ 10 प्रतिशत देती है। इस तरह फंड में हर महीने 20 प्रतिशत ही जमा होता है। सरकार का अतिरिक्त 8.5 प्रतिशत हिस्सा सीधे फंड में न जाकर अलग पूल में जाता है, जो रिटायरमेंट पर पेंशन कम होने की स्थिति में इस्तेमाल होता है। दूसरी बात, एनपीएस में रिटर्न औसतन 11.5 प्रतिशत है, जबकि यूपीएस में रिटर्न 9.5 प्रतिशत है। तीसरा बिंदु है निवेश की सीमित आजादी। एनपीएस में कर्मचारी अपने फंड मैनेजर चुन सकते हैं। यूपीएस में जमा राशि का 88 प्रतिशत सरकार तय करती है। सिर्फ 12 प्रतिशत कर्मचारी अपनी पसंद से लगा सकते हैं।
ये तीन प्रमुख कारण हैं, जिनके चलते कर्मचारी नई पेंशन योजना से जुडऩा नहीं चाहते। केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने तो यूपीएस को लेकर नाराज़गी जताई है। महासंघ के महासचिव का कहना है कि यूपीएस कर्मचारियों पर थोप दी गई है। यही कारण है कि अब तक सिर्फ 2-3  प्रतिशत ने ही इसे चुना है। कुल मिलाकर इस योजना को लेकर मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में सरकारी कर्मचारी नई पेंशन योजना से सहमत नहीं हो पा रहे हैं, उलटे कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना यानि ओपीएस की बहाली की मांग कर रहे हैं। इसलिए यह योजना पूरी तरह अनिश्चित है। फिलहाल सरकार ने समय सीमा बढ़ा दी है, देखना होगा कि कर्मचारियों का रुख आगे क्या होता है?

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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