Editorial
भारतीय प्रोफेशनल बनाम अमेरिका..

संजय सक्सेना
अमेरिका ने एच-1 बी और एच-4 वीजा के सभी आवेदकों की जांच सख्त कर दी है। 15 दिसंबर से अब वीजा प्रक्रिया में ऑनलाइन और सोशल मीडिया की जांच भी शामिल कर दी गई है। यह नियम दुनिया भर के सभी देशों के आवेदकों पर लागू होगा। हालांकि भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने कहा कि यह कदम एच-1 बी वीजा के दुरुपयोग और अवैध इमिग्रेशन पर रोक लगाने के लिए उठाया गया है। लेकिन इससे अमेरिका में नौकरी करने के इच्छुक भारतीय युवाओं को और झटका लगने की आशंका है।
खबर यह है कि इस फैसले के बाद भारत में हजारों आवेदकों के तय वीजा इंटरव्यू टाल दिए गए हैं। कई इंटरव्यू अब मार्च से मई तक के लिए रीशेड्यूल किए गए हैं। इससे वे लोग ज्यादा परेशान हैं, जो इंटरव्यू के लिए पहले ही भारत आ चुके हैं और वीजा न होने के कारण अमेरिका वापस नहीं जा पा रहे।
दूतावास के मुताबिक एच-1 बी और एच-4 वीजा के आवेदन लिए जा रहे हैं, लेकिन जांच बढऩे से प्रक्रिया में ज्यादा समय लग सकता है। भारत सरकार ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर अमेरिका से लगातार बातचीत कर रही है, ताकि भारतीय छात्रों और पेशेवरों को परेशानी न हो। माना जा रहा है कि इस फैसले का भारतीयों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, क्योंकि हर साल कुल जारी किए जाने वाले एच-1बी वीजा में से 70 प्रतिशत भारतीय प्रोफेशनल्स को जारी किए जाते हैं।
एच-1 बी वीजा की फीस पहले लगभग 9 हजार डॉलर थी, लेकिन सितंबर 2025 में ट्रम्प ने इसे बढ़ाकर लगभग 90 लाख रुपए कर दिया। भारत हर साल लाखों इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट तैयार करता है, जो अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो, कॉग्निजेंट और एचसीएल जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा अपने कर्मचारियों को एचत्र1बी वीजा स्पॉन्सर करती हैं।
असल बात तो यह है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा लोग यानी इंजीनियर, कोडर और छात्र एक्सपोर्ट करता है। आंकड़े भले ही एकदम दुरुस्त न हों, लेकिन लाखों युवा बेहतर अवसर और बेहतर वेतन के लिए दूसरे देशों का रुख करते हैं। इनमें सबसे ऊपर अमेरिका रहता है, लेकिन टं्रप की नीतियों के बाद इसमें बदलाव होता दिख रहा है। फीस महंगी होने से भारतीय टैलेंट यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मिडिल ईस्ट के देशों की ओर रुख करेगा।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में स्वदेशी निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। विदेशी कंपनियों से उत्पाद मंगाने के बजाय देश में ही निर्माण के लिए इकाइयां लगवाई जा रही हैं। इसके बाद भी युवाओं में विदेश जाने की ललक कम नहीं हो रही है। भोपाल जैसे शहर बहुत सारे हैं, जहां सही मायने में प्रतिभाओं की कीमत नहीं है। टेलेंट की पहचान तो हो सकती है, लेकिन उसके लिए न तो बेहतर वेतन के अवसर हैं और न ही उसकी प्रतिभा के विकास का मौका। यही कारण है कि दूसरे देशों में जाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
यहां, बड़ा सवाल युवा प्रतिभाओं के पलायन का भी है। अमेरिका में मौका नहीं मिलेगा तो अन्य देशों में जाएंगे। बड़ी कंपनियां भी अमेरिका छोड़ कर दूसरे देशों में जा कर इन युवाओं को मौका दे देंगी, लेकिन भारत में ऐसे आकर्षक पैकेज और मौके कब मिलेंगे, ये सवाल तो मौजूं है ही। इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। हम अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने के आदी हो गये हैं, इसएिल हम सच को पचा नहीं पाते और उससे किनारा करने की कोशिश में ही लगे रहते हैं।



