Editorial
हरा भरा भोपाल
और प्रदूषण का भौकाल

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को झीलों और शेल शिखरों की नगरी कहा जाता है। यह शहर अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के कारण पहचाना जाता है। लेकिन अब यहां की हवा भी खराब हो रही है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल यानि पीसीबी के आंकड़ों की बात करें तो पिछले आठ साल में भोपाल का प्रदूषण कई गुना बढ़ गया है। लेकिन इसे कम करने के ठोस उपाय होते कहीं दिख नहीं रहे हैं।
प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार कभी भोपाल की सबसे पाश कालोनी माने जाने वाली अरेरा कॉलोनी पिछले आठ सालों के दौरान तीन गुना प्रदूषण बढ़ गया है।अरेरा कॉलोनी में आने वाले पर्यावरण परिसर का औसत एक्यूआई यानि वायु गुणवत्ता सूचकांक इस अवधि में 46 से बढक़र 122 हो गया। वहीं भोपाल का दिल कहा जाने वाला टीटी नगर भी खासा प्रदूषित हो गया है। यहां का औसत एक्यूआई 78 से बढक़र 118 तक पहुंच गया। यानी यहां प्रदूषण डेढ़ गुना तक बढ़ा है। शहर में ऑनलाइन और ऑफलाइन मिलाकर कुल 8 जगह प्रदूषण की मॉनिटरिंग होती है। एक स्टेशन मोटे तौर पर आसपास के 2 किलोमीटर के दायरे में प्रदूषण की मॉनिटरिंग करता है।
पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं, भोपाल के पास के जंगल अब तक इसे बचाते रहे हैं, लेकिन बढ़ता ट्रैफिक और बेतरतीब विकास संतुलन बिगाड़ सकते हैं।  साथ ही जंगलों का घनत्व भी लगातार कम हो रहा है। दो साल पहले ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्ययन में 67 प्रतिशत प्रदूषण धूल व 12 प्रतिशत गाडिय़ों के धुएं से बताया गया था। इसके बाद प्लान बनाकर 200 करोड़ खर्च हुए, लेकिन वाहनों के धुएं, तंदूर में जलने वाले कोयले से लेकर सडक़ पर उड़ती धूल पर रोक नहीं लग सकी।
भोपाल में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह सडक़ पर उड़ती हुई धूल और वाहनों की बढ़ती संख्या बताई जा रही है। अरेरा कॉलोनी ग्रीन एरिया है, लेकिन यहां कमर्शियल गतिविधियां बढ़ती जा रहीं हैं। पेड़ों को काटकर मकानों का निर्माण क्षेत्र बढ़ा दिया गया है। गाडिय़ां भी निरंतर बढ़ रही हैं। रेस्त्रां और स्ट्रीट फूड की दुकानों पर कोयला और लकड़ी का इस्तेमाल हो रहा है। सडक़ें खराब होने से ट्रैवल टाइम बढ़ रहा है। यानी वाहन अधिक समय सडक़ पर धुआं छोड़ रहे हैं। राजधानी का आकार जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह अकल्पनीय ही माना जाता है। यह शहर काफी फैला हुआ था, जिस कारण यहां का पयावरण बेहतर था। लेकिन धीरे-धीरे इसका नक्शा बदल गया है।
भोपाल के पुराने रहवासी इलाकों को बदला जा रहा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर लाखों पुराने पेड़ों को काट दिया गया है और वहां चौड़ी सडक़ें और बहुमंजिला इमारतें तान दी गई हैं। बड़े पेड़ों को काट कर छोटे झाड़ लगाकर हम यहां के पर्यावरण को संतुलित करने की बात करते हैं। पहाडिय़ों पर भी बड़ी इमारतें तान दी गई हैं और लगातार तानते जा रहे हैं। पहाड़ों पर लगे पेड़ों को भी काटा गया है, भले ही हम उनकी बात न करें, लेकिन इससे हरियाली तो कम हुई ही है। अब और अधिक विस्तार होने जा रहा है।
जितना शहर बढ़ रहा है, उतने ही जंगल कम हो रहे हैं। हरियाली के नाम पर छोटे झाड़ और पेड़ों को गिना जा रहा है। यह पर्यावरण का संतुलन कैसे बनाए रखेगा, समझ नहीं आ रहा है। और लोग, खासकर सरकार में बैठे लोग इसे हरियाली में ही गिनते जा रहे हैं। कागजों पर जंगलों का घनत्व भले ही कम बताया जा रहा है, लेकिन भोपाल शहर और उसके आसपास के जंगलों का घनत्व लगातार कम हुआ है। पर्यावरणविद् भी इस बात से सहमत हैं कि बड़े पेड़ों को काट कर छोटे झाड़ लगाकर पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता। यही कारण है कि बढ़ते वाहनों और बढ़ती जनसंख्या भोपाल को प्रदूषित शहरों की कतार में ऊपर ले जाने में बड़ी भूमिका निभाएगी।
संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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