Editorial
चैंपियंस ऑफ द अर्थ

sanjay saxena
सरकार में बैठकर भी आप ऐसी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं, जिसे पूरी दुनिया में सम्मान मिले। इसके लिए थोड़ा नज़रिया बदलना होगा। ऐसा ही कुछ आईएएस सुप्रिया साहू ने किया और यह साबित कर दिया कि अगर आप चाहें तो बहुत कुछ बदला जा सकता है। उन्होंने पूरे विश्व में अपने और भारत के नाम का परचम फहरा दिया है। वास्तव में भारत के लिए यह बड़े गर्व का पल है जब साहू को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानि यूएन एनवायरमेंट प्रोग्राम के चैंपियंस ऑफ द अर्थ पुरस्कार से सम्मानित किया है। यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा पर्यावरण सम्मान है। यह उनके अनोखे काम, समर्पण और प्रकृति के प्रति लगन को दिखाता है। इस पुरस्कार को पाना न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है बल्कि भारत के लिए भी एक खास पहचान का मौका है।
चैंपियंस ऑफ द अर्थ पुरस्कार अपने 20वें साल में है और दुनिया भर में उन लोगों को सम्मानित करता है जो धरती और मानवता के लिए जरूरी योगदान देते हैं। सुप्रिया साहू अब उन खास पर्यावरण नेताओं की श्रेणी में शामिल हो गई हैं जो दुनिया को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा रहे हैं।
असल में आज जब पूरी दुनिया में तापमान तेजी से बढ़ रहा है और पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, ऐसे समय में सुप्रिया साहू का काम प्रेरणा का स्रोत बनकर उभर रहा है। उनके प्रयासों ने न सिर्फ जंगलों को बचाया बल्कि लोगों के लिए नए ग्रीन जॉब भी बनाए और कई समुदायों को क्लाइमेट चेंज यानि जलवायु परिवर्तन से लडऩे की ताकत दी।
सुप्रिया साहू, 27 जुलाई 1968 को जन्मी, 1991 बैच की आईएएस अधिकारी हैं और वर्तमान में तमिलनाडु सरकार में पर्यावरण, क्लाइमेट चेंज और वन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं। बचपन से प्रकृति के प्रति उनकी रुचि उन्हें इस राह पर लेकर आई। 30 सालों की सेवा में उन्होंने स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसे कई जरूरी जगहों पर नेतृत्व की भूमिका निभाई।
नीलगिरी क्षेत्र में उन्होंने ऑपरेशन ब्लू माउंटेन जैसे बड़े पर्यावरण अभियान चलाए। जिसमें नीलगिरी के पहाड़ों पर सिंगल यूज प्लास्टिक हटाने और पहाड़ी प्रणालियों को सुधारने पर जोर दिया गया। उनके मार्गदर्शन में 42 हजार से अधिक पेड़ लगाए गए, यह गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि उनके काम से लाखों ग्रीन जॉब्स पैदा हुए हैं। राज्य को विज्ञान-आधारित और समुदाय की जरूरतों पर आधारित जलवायु सुरक्षा का एक मॉडल बना दिया है। तमिलनाडु में उन्होंने बड़े स्तर पर पेड़ लगाए, नए रिजर्व फॉरेस्ट बनाए, वेटलैंड्स को दोबारा जिंदा किया और संकटग्रस्त प्रजातियों के कन्जर्वेशन के लिए फंड शुरू किए।
जलवायु परिवर्तन से लडऩे में उनके प्रयासों को खास तारीफें मिली हैं। तमिलनाडु का कूल रूफ प्रोजेक्ट उनके नेतृत्व में शुरू हुआ। जिसमें स्कूलों और आवासों में ऐसी छतें बनाई गईं जो गर्मी को कम करती हैं। इस मॉडल को अब दुनिया में सस्टेनेबल कूलिंग का एक बढिय़ा उदाहरण माना जा रहा है। साथ ही, इस मॉडल को 200 ग्रीन स्कूलों में लागू भी किया जा रहा है। उनका लक्ष्य ईकोसिस्टम को मजबूत बनाना और समुदायों को सुरक्षित रखना है।
सुप्रिया साहू का कहना है कि उन्हें प्रेरणा गांव के लोगों, बच्चों और प्रकृति से मिलती है। उनका कहना है कि बदलाव तभी आएगा जब समुदाय, वैज्ञानिक सोच और प्रकृति सब मिलकर काम करेंगे। वास्तव में यह केवल सरकार का काम नहीं है, हम सब का है। लेकिन यदि सरकार में बैठे लोग पहल करते हैं, तो उसका प्रभाव कुछ और ही पड़ता है। ऐसे कामों को पहचान जल्दी मिलती है और समाज में भी परिवर्तन आ सकता है। सामूहिक चेतना ही हमें जलवायु परिवर्तन से मुकाबला और पर्यावरण संरक्षण की ओर अग्रसर कर सकती है।

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