Editorial: एसआईआर का दूसरा चरण..जरा सम्हल के…!

संजय सक्सेना
चुनाव आयोग ने सोमवार को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण यानि एसआईआर के दूसरे चरण की घोषणा कर दी है। इस चरण के तहत देश के 12 राज्यों में एसआईआर किया जाएगा। हालांकि चुनाव आयोग के एलान के बाद इस पर राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है। कई राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव आयोग की घोषणा पर सवाल खड़े किए और तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके ने तो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठा दिए। 
एसआईआर में इस बार राज्य ज्यादा हैं, तो चुनौती भी उसी हिसाब से ज्यादा बड़ी है। उम्मीद कर सकते हैं कि बिहार में पुनरीक्षण प्रक्रिया में आई दिक्कतें अब आयोग के लिए अनुभव का काम करेंगी और वहां जैसी परेशानी बाकी जगहों पर लोगों को नहीं उठानी पड़ेगी।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का कहना है कि प्रक्रिया यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी योग्य मतदाता छूट न जाए और कोई भी अयोग्य मतदाता लिस्ट में शामिल न हो। जिन राज्यों को दूसरे चरण में चुना गया है, उनमें केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। असम में भी अगले ही साल असेंबली इलेक्शन है, लेकिन उसे दूसरे चरण से बाहर रखा गया।
इस बार आयोग ने एसआईआर के लिए खुद को अधिक समय दिया है। शायद इसलिए क्योंकि बिहार में सबसे बड़ा सवाल जल्दबाजी को लेकर ही उठा था। राज्य में जून के आखिर में वोटर पुनरीक्षण अभियान की घोषणा की गई थी, जबकि पता था कि अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस हड़बड़ी का असर पूरी प्रक्रिया के दौरान दिखा, खासकर डॉक्युमेंट्स को लेकर जनता ही नहीं, चुनाव कर्मियों में भी गफलत की स्थिति रही। सरकारी कार्यालयों में भीड़ उमडऩे से जैसी अफरातफरी देखने को मिली, वैसा नहीं होना चाहिए।
आयोग ने इस बार आधार कार्ड को लेकर रुख पहले ही साफ कर दिया है कि यह जन्म, नागरिकता या निवास प्रमाण पत्र के रूप में मान्य नहीं होगा, लेकिन स्ढ्ढक्र में इसे एक डॉक्युमेंट के रूप में पेश किया जा सकेगा। यह स्पष्टता इसलिए जरूरी थी, क्योंकि बिहार में पहले चरण के दौरान आधार कार्ड का मसला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था। दस्तावेज ऐसे होने चाहिए, जो अधिकतम आबादी की पहुंच में हों और आधार आज पहचान का सबसे सरल जरिया है।
डीएमके के प्रवक्ता सर्वानन अन्नादुरई ने कहा कि असम में एसआईआर क्यों नहीं किया जा रहा है? एसआईआर की प्रक्रिया कब से नागरिकता जांचने की प्रक्रिया बन गई है? बिहार में चुनाव आयोग को कितने फर्जी या अवैध मतदाता मिले? कई ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब चुनाव आयोग को देना है।’ डीएमके प्रवक्ता ने साल 2003 को कटऑफ साल रखने पर सवाल उठाए और पूछा कि 2003 को ही क्यों आधार बनाया गया है। इससे किसे फायदा होगा। इसे लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं। डीएमके ने कहा कि हम देख रहे हैं कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर काम कर रहा है और वोट चोरी में शामिल है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता इस समय सबसे कम है।
पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर की प्रक्रिया होगी। टीएमसी ने इसे लेकर कहा कि ‘हम भी पारदर्शी मतदाता सूची के पक्ष में हैं। पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक तरीके से होगी, लेकिन अगर वैध मतदाता को परेशान किया गया तो हम इसका विरोध करेंगे। राज्य सरकार, राज्य धर्म निभाएगी। हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव आयोग राजनीतिक दबाव में ऐसा कुछ नहीं करेगा कि हमें उसका विरोध करना पड़े।
देखा जाए तो वोटर लिस्ट में समय-समय पर सुधार जरूरी है और इस प्रक्रिया के औचित्य पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन इसे अंजाम देने के तरीके पर जरूर ध्यान देना चाहिए। एसआईआर को 21 साल बाद अंजाम दिया जा रहा है और दावा किया जा रहा है कि इसका मकसद किसी की नागरिकता तय करना या ज्यादा से ज्यादा लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर करना नहीं है।
एसआईआर की प्रक्रिया को इतना सरल होना चाहिए, जिससे लोग वोटर बनने के लिए स्वयं ही प्रेरित हों और उत्साह के साथ इसमें हिस्सा लें। हां, यह भी ध्यान रखना होगा कि राजनीतिक हस्तक्षेप से फर्जी वोट न बनवाए जा सकें। हालांकि ऐसा होना मुश्किल है, लेकिन विरोधी दलों के लोग यदि थोड़ा जागरूक हों और आम नागरिकों को भी जगा दिया जाए, तो इसमें कमी लाई जा सकती है और मतदाताओं को उनका सही अधिकार मिल सकता है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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