Editorial
सरकारी योजनाओं में घोटाला

सरकारी योजनाएं लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए होती हैं, आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए होती हैं, लेकिन लोग इनका भरपूर दुरुपयोग भी करते हैं। हर दूसरी योजना में घोटाला और भ्रष्टाचार अब आम बात हो गई है। हाल में प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज यानि पीएमएफएमई योजना में बड़ा घोटाला उजागर हुआ है।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर, भिंड और मुरैना में खेतों में केवल टीनशेड लगाकर फर्जी यूनिटें बनाई गई हैं। इन फर्जी यूनिटों के नाम पर करोड़ों रुपए के लोन और लाखों की सब्सिडी केवल 3 माह में ही ले ली गई। आज अखबार में आई खबर के अनुसार प्रदेशभर में 7,985 लाभार्थियों को 1.03 लाख करोड़ रु. का कर्ज और इस पर 272 करोड़ की सब्सिडी दी गई, जिनमें से कई यूनिटें कागजों पर ही चल रही हैं। माइक्रो फूड यूनिट के लिए कपड़ा और किराना दुकानों के फर्जी कोटेशन प्रस्तुत किए गए। उद्यानिकी विभाग ने बिना जांच इन्हें मंजूरी दी, जबकि बैंकों ने दलालों के जरिए लोन और सब्सिडी पास कर दी। ग्वालियर में उद्यानिकी के असिस्टेंट डायरेक्टर एमपीएस बुंदेला ने बताया कि आंतरिक जांच करवाई गई है। कुछ गड़बडिय़ां मिली हैं।
इस योजना में कर्ज लेने की प्रक्रिया कुछ इस तरह बताई जा रही है। उद्यानिकी विभाग में पीएमएफएमई के लिए डीआरपी यानि डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स पर्सन बनाए गए हैं, जो हितग्राही से डॉक्यूमेंटेशन कराने के साथ-साथ प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी बनाकर देते हैं। इसके बाद विभाग जांच कर संबंधित फाइल को बैंक में लोन के लिए बढ़ाता है। उद्यानिकी विभाग से प्रकरण मिलने के बाद बैंक की एप्रूवल कमेटी (बैंक का आरएएसी डिपार्टमेंट) लोन पर निर्णय लेती है। लोन मंजूर करने से लेकर राशि जारी करने तक संबंधित बैंक की दूसरी शाखा या बैंक के रीजनल ऑफिस से दल जाकर जांच करता है।
जांच रिपोर्ट शायद अच्छी रकम लेकर बनाई गई। पिछोर में कृषि मंडी के सामने खेत में फर्जी यूनिटें दिखाई गईं। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, तुरारी शाखा, ने अगस्त-सितंबर 2024 के बीच हर यूनिट को करीब 24.30 लाख का लोन व तीन माह में 10-10 लाख की सब्सिडी दी। बैंक की रीजनल मैनेजर इसे आंतरिक मामला बता रही हैं और एलडीएम अमिता शर्मा जांच की बात कह रही हैं। भिंड में जयपाल सिंह को ऑयल मिल के लिए 1.15 करोड़ का लोन और 10 लाख की सब्सिडी मिली। जांच में यूनिट नहीं मिली। मोबाइल नंबर भी गलत था। इसी भूखंड पर कई लोन पास हुए थे।
योजना की स्थिति यह है कि 5 साल में लाभार्थियों की संख्या 62 से बढक़र 3,150 हो गई। इस तेजी से बढ़ती संख्या के साथ फर्जी यूनिटों और सब्सिडी/लोन घोटालों के जोखिम भी बढ़ गए हैं। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लागू यह योजना घोटालेबाजों और रिश्वतखोरों के फायदे का सौदा बनकर रह गई है।
ऐसी योजनाओं में विभागीय अधिकारियों से लेकर बैंकों के अधिकारी तक मिले रहते हैं और सबका कमीशन बंधा रहता है। यही कारण है कि जांच रिपोर्ट फर्जी बनाकर पहले लोन पास किया जाता है, फिर सब्सिडी में से बंदरबांट की जाती है। लगभग हर दूसरी अनुदान योजना का यही हश्र होता है और चूंकि इसमें विभागीय अफसरों की मिलीभगत होती है, इसलिए न तो कोई जांच होती है और न ही कोई कार्रवाई। बस धंधा चलता रहता है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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