Editorial
अब दवाइयों पर टैरिफ…

ट्रंप ने अब दवाइयों पर सौ फीसदी टैरिफ थोप दिया है। इसका अमेरिका पर तो प्रभाव पड़ेगा ही, भारत के पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। खासकर देश के दवा निर्माण उद्योग पर। बीते वित्त वर्ष में भारतीय उद्योगों की तरफ से दुनिया को करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की दवाओं का निर्यात हुआ था। इसमें अमेरिका को ही करीब 77 हजार करोड़ रुपये यानि 8.7 अरब डॉलर की दवाएं निर्यात हुई थीं।
आज खबर आई कि अमेरिका में एक अक्तूबर से दवाइयों से लेकर भारी ट्रकों तक आयातित सामान महंगे हो जाएंगे। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवाइयों, किचन कैबिनेट, बाथरूम वैनिटी, गद्देदार फर्नीचर और भारी ट्रकों पर नए आयात शुल्क यानी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि दवाइयों पर 100 प्रतिशत, किचन कैबिनेट और बाथरूम वैनिटी पर 50 फीसदी, फर्नीचर पर 30 फीसदी और भारी ट्रकों पर 25 प्रतिशत आयात कर लगाया जाएगा।
गुरुवार को उनके सोशल मीडिया पोस्ट से पता चला कि अगस्त में लगाए गए आयात करों और व्यापार समझौतों के बाद भी ट्रंप टैरिफ लगाने के पक्षधर हैं। ट्रंप का मानना है कि इन टैरिफ से सरकार का बजट घाटा कम होगा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी तरफ विशेषज्ञों का कहना है कि इससे महंगाई और ज्यादा बढ़ सकती है और आर्थिक विकास पर भी असर पड़ेगा।
दवाइयों पर टैरिफ का असर भारत के फार्मा उद्योग पर पडऩे की संभावना है। भारत के दवा निर्माताओं के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार रहा है। 2025 के पहले छह महीनों में ही अमेरिका को कुल 32 हजार 505 करोड़ रुपये (3.7 अरब डॉलर) की दवाओं का निर्यात हो चुका है। ऐसे में 100 फीसदी टैरिफ लगने से भारत की सस्ती दवाएं भी अमेरिका में महंगी दरों पर बिकेंगी। जिन कंपनियों पर इस टैरिफ का सबसे ज्यादा असर पडऩे की संभावना है, उनमें डॉ. रेड्डीज, सन फार्मा, लुपिन समेत कई कंपनियां शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि ट्रंप के टैरिफ का सबसे ज्यादा असर ब्रांडेड या पेटेंट कराई हुई दवाओं पर पडऩे की आशंका है, हालांकि जेनेरिक दवाओं को लेकर भी संशय की स्थिति बनी हुई है।
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर कहा कि दवाइयों पर लगने वाले नए आयात कर उन कंपनियों पर लागू नहीं होंगे, जो अमेरिका में विनिर्माण संयंत्र बना रही हैं या निर्माण कार्य शुरू कर चुकी हैं। हालांकि, यह साफ नहीं है कि जिन कंपनियों के पहले से ही अमेरिका में कारखाने हैं, उन पर यह छूट लागू होगी या नहीं। जनगणना ब्यूरो के अनुसार, अमेरिका ने 2024 में करीब 233 अरब डॉलर की दवाइयां और औषधीय उत्पाद आयात किए थे। ऐसे में दवाओं की कीमत दोगुनी होने की आशंका से लोगों के स्वास्थ्य खर्च, मेडिकेयर और मेडिकेड योजनाओं पर भी बोझ बढ़ सकता है।
ट्रम्प प्रशासन का यह भी मानना है कि दवाओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। महामारी के दौरान यह बात साफ हुई थी कि अगर सप्लाई चेन टूटती है तो अमेरिका में दवाओं की भारी कमी हो सकती है। लेकिन अमेरिका में रहने वाले लाखों लोगों को अब महंगी दवाएं खरीदनी पड़ेंगी। भारत की दवाएं वहां सस्ती पड़ रही थीं, इसलिए लोग उन्हें ही खरीद रहे थे। अब भारत की दवा कंपनियों को भी इस टैरिफ का नुकसान झेलना पड़ेगा।
भारत की बात करें तो यहां हाल ही में सरकारी विभाग ने एक पुराने आदेश को लागू करने का फरमान जारी कर दिया है। इससे तमाम फार्मा कंपनियों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। जिस देश को दवाएं निर्यात करनी हैं, उनकी सरकारों से अनुमति का पत्र सहित कई ऐसी औपचारिकताएं करनी होंगी, जिन पर न केवल समय बर्बाद होगा, अपितु पैसे भी खर्च होंगे। कई देशों की सरकारें तो अनुमति पत्र ही नहीं देती हैं, अब वहां फार्मा कंपनी दवा नहीं भेज पाएंगी। इससे छोटी फार्मा कंपनियों को भारी नुकसान होना शुरू हो गया है। कई छोटे देशों ने तो भारत के बजाय बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से दवाएं मंगाना शुरू कर दिया है।
अब ट्रंप टैरिफ और भारत सरकार के आदेश, दोनों मिल कर फार्मा कंपनियों का निर्यात नीचे लाने में सहयोग करेंगे। ऐसे में भारत की तमाम फार्मा कंपनियां तो बंद होने की कगार पर ही पहुंच जाएंगी। इससे देश को मिलने वाले राजस्व की भी भारी हानि होगी, वहीं लाखों लोग जो रोजगार में लगे हैं, उनका रोजगार भी छिन जाएगा।



