Editorial
अब शांति की उम्मीद

बांग्लादेश में हुए जन आंदोलन के बाद जो उम्मीद की जा रही थी, वो पूरी नहीं हुई, लेकिन नेपाल में इसकी आशा की जा सकती है। इसके पीछे वहां की अंतरिम सरकार की कमान सौंपने में बरती गई सावधानी प्रमुख कारण हो सकती है।
असल में, नेपाल में जेन जी ने जिस आंदोलन की शुरुआत की, अब उसे अंजाम तक ले जाने का समय है। हिंसा और अराजकता की स्थिति को जल्द से जल्द खत्म करने की जरूरत है। अंतरिम सरकार संभालने के लिए चर्चा में कई नाम थे, उनमें से सुशीला कार्की को चुना गया, यह अच्छा निर्णय कहा जा रहा है। अच्छी बात यह है कि सडक़ों पर आक्रोश जताने वाली नई पीढ़ी अब संवाद की तरफ बढ़ रही है।
जेन जी ने इतना बड़ा आंदोलन बिना किसी चेहरे के खड़ा किया। यह भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भाई-भतीजावाद और सरकार की नाकामी से उपजा गुस्सा था, जिसके चलते युवा सडक़ों पर उतरते चले गए। उन्होंने केपीएस ओली की सरकार को तो उखाड़ दिया, लेकिन अब देश को नया नेतृत्व चाहिए। युवाओं को मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं और इसलिए वे बाहर से किसी ईमानदार छवि वाले शख्स को चाहते हैं। अब हो सकता है कि उनकी उम्मीद पूरी हो जाए।
अंतरिम सरकार के सामने सबसे पहली चुनौती कानून-व्यवस्था को बहाल करने की होगी। इसके लिए सुशीला कार्की को चुना गया है। नेपाल पहले भी इस तरह का संकट देख चुका है और कोई नहीं चाहता कि वैसी स्थिति दोबारा बने। दूसरी चुनौती होगी जितनी जल्दी हो सके, निष्पक्ष चुनाव कराकर चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपने की। राजनेताओं और मौजूदा राजनीतिक पार्टियों को लेकर जनता में गहरी नाराजगी है, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी को भागीदारी से रोका नहीं जा सकता। देखना होगा कि अंतरिम सरकार कैसे बैलेंस बनाती है।
नेपाल में कुछ अरसे से राजशाही की वापसी की मांग चल रही है। इस आंदोलन के दौरान भी यह चर्चा फिर जोर पकड़ी। हालांकि इसे सकारात्मक माना जाना चाहिए कि राजनेताओं के प्रति अविश्वास के बावजूद नई पीढ़ी का भरोसा संवैधानिक व्यवस्था में बना हुआ है। हालांकि वे 2015 के संविधान में संशोधन की मांग कर रहे हैं।
नेपाल का लोकतंत्र अभी दो दशक पुराना भी नहीं हुआ और दुर्भाग्य से इतने कम समय में ही इस देश ने चुनावी राजनीति की सारी बुराइयां देख लीं। नई पीढ़ी का आक्रोश बरसों से जनता के मन में दबे असंतोष का परिणाम ही तो है। यह वो पॉइंट है, जहां लिया गया हर एक फैसला नेपाल का भविष्य तय करेगा। और किसी भी फैसले में आम लोगों की आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
नई अंतरिम सरकार की प्रधानमंत्री सुशीला कार्की के बारे में एक सकारात्मक बात यह है कि वह न केवल भारत में पढ़ी हैं, अपितु उनका झुकाव भी भारत के प्रति सकारात्मक रह सकता है। साथ ही वह नई पीढ़ी की अपेक्षाओं को समझती हैं। देखना होगा कि अंतरिम सरकार आंदोलनकारियों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है और नेपाल में शांति स्थापित होने में कितना वक्त लगता है?



