Editorial
हिमालय क्षेत्र में तबाही

संजय सक्सेना
इस बार के मानसून में उत्तर भारत, विशेष तौर पर हिमालय अंचल में भयानक तबाही मचाई है। उत्तराखंड से लेकर हिमाचल, जम्मू-कश्मीर तक, और पंजाब-हरियाणा में, नदियां उफान पर हैं, पहाड़ दरक रहे हैं। कई जानें जा रही हैं। और हजारों जिंदगियां दांव पर लगी हैं। ये आपदाएं और जानमाल का नुकसान आगे के लिए और अधिक गंभीर चेतावनी है।
जम्मू-कश्मीर की बात करें तो वैष्णो देवी धाम के पास हुए भूस्खलन में मृतकों की संख्या 32 तक जा पहुंची है। यात्रा रोकनी पड़ी है और फंसे हुए यात्रियों को निकाल कर सुरक्षित घर पहुंचाने की कोशिश जारी है। जम्मू ने केवल 20 घंटों में ही 10 साल की सबसे ज्यादा बारिश देख ली। राज्य के कई हिस्सों में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं कि भारी बारिश से आम जनजीवन प्रभावित हुआ है।
उत्तराखंड और हिमाचल में भी इस बार जितना अधिक भूस्खलन या लैंडस्लाइड हुआ, उतना पहले किसी भी बारिश के मौसम में नहीं हुआ। पंजाब तथा हरियाणा में नदियां उफन रही हैं, भारी बाढ़ हजारों परिवारों को उजाड़ चुकी है, कई लोगों की जान ले चुकी है। पंजाब का नजारा तो ज्यादा भयावह है, मामला हरियाणा में भी गंभीर हो गया है और दिल्ली के आसपास तक बाढ़ का पानी हंगामा मचा रहा है।
शुरुआत में उत्तराखंड के धराली में बादल फटने के बाद आए फ्लैश फ्लड ने पूरे कस्बे को तबाह कर दिया। फिर चमोली के थराली में आफत बरसी। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में एक बार पहले भी, इसी 14 तारीख को बादल फटने से भारी तबाही मची थी। मचैल माता यात्रा के रास्ते पर आई प्राकृतिक आपदा की वजह से जन-धन की हानि हुई थी।
इन घटनाओं पर गौर करें तो आपदाओं में जान गंवाने वालों में बड़ी तादाद पर्यटकों की रही। धराली, उत्तराखंड के चार धाम में से एक, गंगोत्री के रूट पर पड़ता है। इसी तरह वैष्णो देवी के दर्शन के लिए सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। ये हादसे सबक हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में मौजूद भीड़भाड़ वाले पर्यटन और धार्मिक क्षेत्रों में ऐसे इंतजाम करने की जरूरत है, जिससे किसी अनहोनी की सूरत में लोगों को तुरंत निकाला जा सके।
इस मॉनसून सीजन में यह दृश्य बार-बार, लगातार दिख रहा है। प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। इसके लिए पहले से तैयारी करनी होगी। हम सामान्य शहरों में ही देखते हैं, तो वहां बारिश के पहले नाले-नालियों की सफाई के दिखावटी अभियान चलाये जाते हैं। बारिश के शुरुआती दौर में ही उस तैयारी की पोल भी खुल जाती है। ऐसी तैयारी नहीं चाहिए।
कम से कम पहाड़ी क्षेत्रों में तो शासन और प्रशासन को अधिक गंभीर होना पड़ेगा। हर शहर-कस्बे से लेकर गांव स्तर तक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को बेहतर बनाना होगा। बाढ़ और भूस्खलन के खतरे वाले इलाकों में लगातार निगरानी से खतरों की पूर्व सूचना मिल सकती है। मॉनसून के सीजन में पहाड़ों की यात्रा वैसे भी मुश्किल भरी हो जाती है, तो इस मौसम में यात्रियों की संख्या सीमित करने की पहल की जा सकती है। इसके लिए थोड़ी सख्ती बरतनी पड़े, तो वो भी करना होगा। सरकारों को इसके लिए तैयार रहना होगा।
इन क्षेत्रों में पर्यटन अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन है। लेकिन जान-माल की कीमत पर कमाई करना उचित नहीं होगा। और फिर स्थानीय लोगों के साथ ही सरकार का भी तो नुकसान ही होता है। इससे बेहतर होगा कि पर्यटकों की संख्या कम की जाए। मानसून की चेतावनियों को गंभीरता से लेकर उस हिसाब से ही यात्राओं की तैयारी हो। और जो क्षेत्र अधिक संवेदनशील हैं, वहां अधिक खराब मौसम में आवागमन पूरी तरह से बंद कर दिया जाए।
मौसम विभाग ने जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश का अलर्ट दिया है। दूसरे राज्यों के पर्यटक और श्रद्धालु अब भी विभिन्न जगहों पर फंसे हुए हैं। अभी इन सभी की सुरक्षित घर वापसी और राहत-बचाव पर फोकस होना चाहिए। इन इलाकों में ऐसी नीतियों की जरूरत है, जिसमें पहाड़ों की संवेदनशीलता का ख्याल रखा गया हो।





