Editorial
सडक़ हादसों पर चिंता, फिर नई योजना, बस…!

संजय सक्सेना
कल वाहन दुर्घटना में पार्टी से लौट रहे तीन दोस्तों की मौत हो गई। आज भी एक दुर्घटना में तीन मौतों की खबर आई है। आंकड़ों की बात करें तो हर रोज मध्य प्रदेश में सडक़ दुर्घटनाओं में 41 लोगों की मौत हो जाती है। यह देश में चौथा सबसे बड़ा आंकड़ा है, जो उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के बाद आता है।
चिंताजनक बात यह है कि हेलमेट न पहनने या सीटबेल्ट न बांधने के कारण होने वाली मौतों के मामले में मध्य प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है। 2024 में, राज्य में ओवर-स्पीडिंग के कारण होने वाली मौतों में भी यह तीसरे स्थान पर रहा। भिंड जिले में नेशनल हाईवे-719 (ग्वालियर-इटावा रोड) अब तक का सबसे बड़ा मौत का हाईवे साबित हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2025 के 11 महीनों (जनवरी से नवंबर) में यहां 670 सडक़ हादसे हुए, जिनमें 241 लोगों की जान चली गई। भोपाल में 2024 में 235 लोगों की सडक़ हादसों में मौत हुई, जो पिछले 3 साल में सबसे ज्यादा है।
मध्य प्रदेश में 2024 में कुल 14,791 सडक़ हादसे हुए। इनमें से 6,541 लोगों की मौत हेलमेट न पहनने के कारण हुई, जबकि 1,929 लोगों ने सीटबेल्ट न बांधने की वजह से जान गंवाई। पिछले चार सालों में सडक़ हादसों की संख्या में 11,500 की वृद्धि हुई है, जबकि मौतों की संख्या में 3,650 का इजाफा हुआ है। यह सडक़ सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करता है। सडक़ परिवहन मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि साल 2024 में देश में सडक़ हादसों में 1.77 लाख लोगों की मौत हुई। यह औसतन हर दिन 485 मौतें हैं। यह आंकड़ा 2023 की तुलना में 2.3 प्रतिशत ज्यादा है, जब 1.73 लाख लोगों की जान गई थी। वर्ष 2023 में देश में सडक़ दुर्घटनाओं में हुई कुल मौतों में से करीब 20.4 प्रतिशत यानी 35,221 मौतें पैदल यात्रियों की थीं।
शहरों में सडक़ दुर्घटनाओं में पैदल यात्रियों की मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और व्यावसायिक राजधानी इंदौर में इसकी संख्या अधिक है, और बढ़ती ही जा रही है। भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर जैसे बड़े शहरों में पैदल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार बड़ा कदम उठाने जा रही है। सडक़ हादसों में लगातार बढ़ती पैदल यात्रियों की मौतों को देखते हुए नए डिजाइन के फुटपाथ और सुरक्षित रोड क्रॉसिंग विकसित करने की योजना बनाई जा रही है। बैठक में तय किया गया कि फुटपाथ और रोड क्रॉसिंग के डिजाइन इंडियन रोड कांग्रेस (आईआरसी) के मापदंडों के अनुरूप तैयार किए जाएंगे। योजना को अंतिम रूप देने के बाद केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भेजा जाएगा, ताकि आवश्यक स्वीकृति प्राप्त की जा सके।
चिंता और दुर्घटनाएं रोकने के लिए बैठक का आयोजन तो ठीक है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या फुटपाथ का उपयोग पैदल चलने के लिए सही तरह  से हो पाएगा? राजधानी भोपाल हो या इंदौर, आधे से अधिक शहर में तो फुटपाथ दिखाई ही नहीं देते। और तो और सडक़ें भी आधी वाहन चलने के लिए उपलब्ध नहीं रहतीं। भोपाल के कोलार रोड पर सिक्स लेन बनाने में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन क्या वहां वाहन ठीक तरह से चल पा रहे हैं? सडक़ पर दोनों तरफ वाहनों की पार्किंग बन गई है। कई जगह तो दो-दो चार पहिया वाहन सडक़ों पर ही खड़े रहते हैं।
शहरों के फुटपाथ अतिक्रमण के शिकार हैं और यह सबसे बड़ी प्रशासनिक कमजोरी और राजनीतिक हस्तक्षेप का प्रमाण है। जब नेता खुद फुटपाथ पर बाजार बनवाएंगे, दुकानें रखकर चौथ वसूली करेंगे, तो उन्हें कौन हटाएगा? और नगरीय निकाय भी दुकानों लगवाकर बाकायदा वसूली करते रहते हैं। ऐसे में ऐसी बैठकों कोई औचित्य समझ नहीं आता।
हां, जैसे भोपाल-इंदौर में पहले बीआरटीएस बनवाया गया, फिर तुड़वा दिया गया। ऐसे ही तमाम फुटपाथ बनवाते जाओ, करोड़ों खर्च करो, उसमें अपना हिस्सा वसूली और फिर उन पर अतिक्रमण करवाते जाओ, यही सिलसिला तो चलना है। भोपाल की बात करें तो यहां कितने बायपास बने, फिर उनकी शक्ल बदसूरत हो गई। बायपास भी शहर के अंदर हो गए, पार्किंग बन गए। अब दूसरे बायपास और रिंग रोड बनाने के लिए करोड़ों की जुगाड़ की जा रही है।
यही हाल रहता है। शासन और प्रशासन में कोई भी बैठा हो, बस सुधार के नाम पर नए निर्माण की बात ज्यादा करता है। हर काम में पैसा खर्च होता है, उसमें कथित तौर लोगों की जेबें भी भर जाती हैं और फिर वही ढाक के तीन पात। न तो राजनीतिक इच्छा शक्ति देखने को मिलती है और न ही प्रशासनिक। बस, खर्च करो, कमाओ और फिर मरने दो लोगों को। और, देश या प्रदेश में हाइवे या अन्य मार्गों पर हो रही दुर्घटनाओं की बात करें, तो बस आंकड़े देकर चिंता जताने से ज्यादा कुछ नहीं होता। कोई ठोस उपाय नहीं किया जाता। बढ़ते आंकड़ों से ज्यादा इसका प्रमाण क्या होगा?

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