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विदेश नीति में बदलाव की जरूरत है?

अमेरिकी सरकार द्वारा एच1बी वीजा शुल्क में एक लाख डॉलर प्रति वर्ष का इजाफा करने के फैसले से भारत की आईटी कंपनियों के साथ ही अमेरिकी कंपनियों में भी हडक़ंप मच गया है। इसकी मार सबसे ज्यादा भारतीयों पर ही पडऩे वाली है। लेकिन यह अपने आप में ऐसी कोई इकलौती घटना नहीं है। पिछले कुछ दिनों में ऐसी कई घटनाएं हुई जो भारतीय विदेश नीति के लिए चुनौती की तरह आई हैं।
भारतीय टेक कंपनियों के शीर्ष संगठन नैसकॉम ने वीजा शुल्क में की गई बढ़ोतरी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि निश्चित रूप से भारत की आईटी कंपनियां इससे प्रभावित होंगी। ऑनशोर परियोजनाओं के लिए व्यावसायिक निरंतरता बाधित होगी और अतिरिक्त लागत में समायोजन की आवश्यकता होगी। फिर भी भारतीय टेक कंपनियां वर्तमान के बदलावों के अनुरुप खुद को प्रबंधित करने के लिए ग्राहकों के साथ मिलकर काम करेंगी।
अमेरिका में बैंक, बीमा कंपनियां, एयरलाइंस, औद्योगिक प्रतिष्ठान, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, निर्माता, होटल उद्योग और टेक कंपनियों में प्रवासी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए एच1बी वीजा का प्रावधान है। इसका सबसे ज्यादा लाभ टेक कपंनियां ही उठाती हैं। लिहाजा बढ़े हुए वीजा शुल्क का असर भी इनपर ही सबसे ज्यादा आने वाला है।
भारत से भेजे जाने वाले सामानों पर पचास प्रतिशत टैरिफ लगाने के जो भी तर्क दिए गए हों, सचाई यही है कि यह फैसला ट्रेड रिलेशन के ग्रामर में फिट नहीं बैठता। यह बात भी सही है कि न तो भारत रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदने वाला देश है और न ही उसके साथ व्यापार करने वाला इकलौता देश। बहरहाल, टैरिफ का मसला सुलझाने के लिए प्रयास भी दोनों तरफ से जारी हैं। लेकिन, जब इन प्रयासों के मद्देनजर ट्रेड डील पर कोई नतीजा निकलने की उम्मीद बढ़ रही थी, तब अचानक वीजा- फीस बढ़ाने का यह फैसला आ गया जिससे आम लोगों के स्तर पर द्विपक्षीय रिश्तों का व्याकरण गड़बड़ाता दिखने लगा।
रूस पर दबाव बढ़ाने के बहाने भारत पर टैरिफ लादने का मामला अभी सुलझा भी नहीं कि ईरान पर दबाव बढ़ाने की जरूरत बताते हुए चाबहार पोर्ट तक हमारी पहुंच रोकने की कोशिश की गई। इस पोर्ट के इस्तेमाल को लेकर जो छूट हमें दी गई थी, उसे ट्रंप प्रशासन ने समाप्त कर दिया। इस पोर्ट को विकसित करने में भारत अपना काफी संसाधन लगा चुका है।
पिछले दिनों सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ सामरिक समझौता भी कम गंभीर मसला नहीं है। इस समझौते के मुताबिक सऊदी अरब और पाकिस्तान तय किया है कि किसी भी एक देश पर हुए हमले को दोनों देश अपने ऊपर हमला मानेंगे। हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में देखें तो भारत इस क्षेत्र में बन रहे इन नए समीकरणों की किसी भी रूप में अनदेखी नहीं कर सकता।
इन घटनाओं को समग्रता में देखते हुए इस बात की आवश्यकता महसूस हो रही है कि भारत को अपनी विदेश नीति की बारीकियों पर दोबारा गौर करना होगा।  विदेश नीति में लचीलापन जितना आवश्यक है, उतना ही महत्व निरंतरता का भी है। बदलते अंतररराष्ट्रीय समीकरणों को देखते यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विदेश नीति के बुनियादी मानकों पर फोकस बना रहे और हर कभी भारत के हितों पर कोई भी देश आसानी से चोट न पहुंचा सके। हम आंखें मूंद कर किसी पर भरोसा नहीं कर सकते और न ही किसी एक के भरोसे अपनी विदेश नीति चला सकते हैं।
sanjay saxena 

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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