Dr. Wakankar : डॉ वीएस वाकणकर एक अनूठे अनुसंधानकर्ता

प्रख्यात पुरातत्व विद और चित्रकार पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर जी का जन्म 3 मई 1919 को हुआ था।
डॉ वाकणकर वो शख्स हैं जिन्होंने शैल चित्रकला को एक विधा के रूप में स्थापित किया। सिर्फ भीमबेटका की खोज तक उनका जुनून सीमित ना था।
मध्य प्रदेश और देश के ऐसे सभी स्थानों पर उन्होंने यात्रा की जहां शैल चित्र भले बहुतायत में ना हों, इक्का-दुक्का चट्टान पर ही अंकित हों। उसकी शोध विवेचना करते ही थे।इसके लिए उनका बड़ा योगदान है जो कि इतिहास में भी दर्ज है। सागर विश्वविद्यालय में प्रो श्याम कुमार पांडे ने भी शैल चित्रकला के अध्ययन और अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ वाकणकर ने डॉ प्रदीप शुक्ला जैसे अध्येयताओं के प्रोत्साहन के प्रयास किए। सागर विश्वविद्यालय प्राचीन शैल चित्रकला के अध्ययन का महत्वपूर्ण केंद्र बना। निश्चित थी वाकणकर जी का मार्गदर्शन प्राप्त कर हजारों विद्यार्थियों ने शैल चित्र कला से संबंधित अनुसंधान किए हैं।
यह परमात्मा का आशीर्वाद ही है कि पिता प्रोफेसर एस एन मनवानी प्राचीन भारतीय इतिहास ,संस्कृति और पुरातत्व के शिक्षण, प्रशिक्षण से आजीवन जुड़े रहे जिसके कारण मेरी रुचि इन विषयों में परिष्कृत होती गई। वाकणकर जी पिता के मित्र कह लें या गुरु कहें, लेकिन परिवार के सदस्य की तरह थे। वे सागर में किसी के घर जाएं ना जाएं हमारे घर पधारते थे। मैंने उनके साथ सागर के नजदीक दो तीन ऐसे शैल चित्र कला स्थलों का भ्रमण भी किया जो अल्पज्ञात रहे हैं।
मुझे स्मरण है सागर में पिता से मिलने के लिए अक्सर वाकणकर जी जब घर आ जाते थे तो उनकी व्यंग्य विनोद की शैली से परिवार के सभी सदस्य प्रभावित होते। वे किसी भी अकादमिक कार्य से विश्वविद्यालय पधारते तो घर में उनका स्वागत करने का दायित्व मेरा ही होता था। एक बार तो उन्होंने अपनी तूलिका से एक व्हाइट पेपर पर मेरी किशोर अवस्था का चित्र बनाया था जो मैंने सहेज रखा था और अभी कागजों में कहीं दब गया है। आखरी बार उनसे वर्ष 1985 में भेंट हुई। मैं पत्रकारिता की डिग्री कर रहा था और तब एक पत्रिका में उनके कार्यों पर लेख भी लिखा था। उन्होंने जल्दी ही फिर सागर आने का वायदा किया था । लेकिन वाकणकर जी ने यह वादा नहीं निभाया। एक दो साल बाद उनके अवसान का समाचार मिला था। मैंने उज्जैन जाकर ताई से उस समय और बाद में जब भी उज्जैन गया हमेशा भेंट की ।
राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक वाकणकर जी के स्नेह और आशीर्वाद से इस तरह मैं लाभान्वित हुआ। कुछ बरस पहले उनकी जन्मशती के अवसर पर कार्यक्रम में आदरांजलि देने का अवसर भी मुझे मिला है। उनका अवसान
3 अप्रैल 1988 को हुआ था। उनकी सेवाओं को मध्य प्रदेश के पुरातत्व प्रेमी, जनप्रतिनिधि और नागरिक ही नहीं शैल चित्र कला जगत से जुड़े विश्व के सभी लोग सदैव याद करते हैं।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने मध्य प्रदेश के आठवें टाइगर रिजर्व रातापानी अभ्यारण्य का नाम डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर जी के नाम पर घोषित कर उन्हें यथोचित सम्मान दिया है।
अशोक मनवानी,भोपाल
(लेखक मासिक पत्रिका मध्य प्रदेश संदेश के संपादक हैं)