Editorial
आखिर सिस्टम देर से क्यों जागता है? फिर मौतों पर घड़ियाली आँसू…

संजय सक्सेना
मध्य प्रदेश में बच्चों की खांसी की दवा पीने से पहली मौत की खबर 3 सितंबर को मिली, लेकिन प्रशासन ने 16 सितंबर को स्थिति की गंभीरता को समझा और छिंदवाड़ा जिले के परसिया ब्लॉक में बच्चों के स्वास्थ्य की जांच शुरू की। नागपुर के अस्पतालों ने जब कई बच्चों की किडनी फेल होने से मौत की सूचना दी, तब जाकर यह जांच तेज हुई। 26 सितंबर को एक मृत बच्चे की बायोप्सी रिपोर्ट में एक्यूट ट्यूबलर इंजरी यानि गुर्दे की गंभीर क्षति का पता चलने के बाद ही दवा के सैंपल लिए गए।
शासन को शुरुआती सुनवाई में कई बच्चों में किडनी फेल होने के ऐसे ही मामले मिले। 18 सितंबर को एक स्वास्थ्य निगरानी इकाई से मिली चेतावनी ने भी इस शक को पुख्ता किया। अधिकारियों का कहना था कि उस समय मौत का सही कारण पता नहीं था, लेकिन यह बीमारी किसी ज़हरीले पदार्थ के कारण हो सकती थी। राज्य मुख्यालय से एक टीम परसिया भेजी गई और सैंपल पुणे भेजे गए, जहां वायरल संक्रमण की आशंका को खारिज कर दिया गया।
24 सितंबर की नागपुर की बायोप्सी रिपोर्ट ने किडनी फेल होने से मौत की पुष्टि की, लेकिन क्षति का कारण अनिश्चित था। लक्षणों का तेजी से बिगडऩा रासायनिक ज़हर की ओर इशारा कर रहा था, लेकिन हमारा सिस्टम बड़े आराम से काम कर रहा था। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन और एमपी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन की टीमों ने 26 से 29 सितंबर के बीच दवा के सैंपल लिए। 19 दवाओं की जांच की गई। 1 और 3 अक्टूबर की शुरुआती रिपोर्टों में सभी सैंपल मानक गुणवत्ता के पाए गए। लेकिन बाद के टेस्ट में कोल्ड्रिफ कफ सिरप को घटिया पाया गया। तमिलनाडु से पुष्टि होने के बाद कि कोल्ड्रिफ में 48 प्रतिशत डायथिलीन ग्लाइकॉल था, जो एक बहुत ही जहरीला रसायन है और किडनी फेल कर देता है, 4 अक्टूबर को पूरे राज्य में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यानि अगर तमिलनाडु की रिपोर्ट नहीं आती तो हम जानलेवा सिरप बच्चों को पिलाते रहते और उनकी जानें जाती रहतीं।
फार्मास्युटिकल मार्केट एनालिसिस कंपनी ‘एक्युएंट’ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फार्मास्युटिकल मार्केट का वार्षिक कारोबार 2,30,867 करोड़ रुपए का है, जो हर साल 7.4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। एमपी-सीजी में यह आंकड़ा 10,767 करोड़ रुपए है।
लगातार बढ़ते इस व्यापार में नई कंपनियां तेजी से एंट्री ले रही हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ऐसे में कम लागत और सस्ती दवाएं बनाने की होड़ में छोटी कंपनियां क्वालिटी से समझौता कर रही हैं, जिसका ताजा उदाहरण छिंदवाड़ा में कफ सिरप पीने से हुई मासूम बच्चों की मौत है। मध्यप्रदेश में करीब 10 हजार करोड़ का दवा व्यापार है। यह हर साल 5.7 प्रतिशत यानी लगभग 600 करोड़ की दर से बढ़ रहा है। इतने बड़े मार्केट की मॉनिटरिंग के लिए राज्य में सिर्फ 79 ड्रग इंस्पेक्टर हैं। जबकि दवाओं के सैंपल की जांच के लिए केवल 3 सक्रिय लैब हैं। इनमें भी सिर्फ भोपाल की लैब पूरी तरह फंक्शनल है।
इसी कमजोर व्यवस्था के कारण ही कोल्ड्रिफ, री लाइफ और रेस्पिफ्रेस टीआर जैसे जहरीले सिरप बाजार में बिना रोक-टोक के बेचे जाते रहे। यह स्थिति इतनी गंभीर है कि मध्यप्रदेश में कफ सिरप से छिंदवाड़ा, बैतूल, नागपुर और पांढुर्णा में अब तक 23 बच्चों की मौत हो चुकी है। और हम अब छाती पीट कर रोने का राजनीतिक ढोंग कर रहे हैं।
केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष के अनुसार, भोपाल में साढ़े तीन हजार से अधिक मेडिकल स्टोर सक्रिय हैं। वहीं, प्रदेश में इनकी संख्या 60 हजार से अधिक है। जहां तक जांच व्यवस्था की बात है, तो छोटी फार्मास्युटिकल कंपनियों में यह बेहद कमजोर है। राज्य में 96 ड्रग इंस्पेक्टर के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से सिर्फ 79 पर ही अधिकारी तैनात हैं। प्रत्येक ड्रग इंस्पेक्टर को प्रति माह कम से कम 5 सैंपल जांच के लिए भेजना अनिवार्य है। इन सैंपलों की जांच के लिए प्रदेश में भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में चार लैब हैं, लेकिन ग्वालियर की लैब फंक्शनल नहीं है।
बाकी तीन लैब की संयुक्त क्षमता हर साल लगभग 7 से 8 हजार टेस्टिंग की है।
इनमें भी सिर्फ भोपाल की लैब जहरीले सिरप की पूरी जांच करने में सक्षम है।
हर जिले से मेडिकल स्टोरों से रैंडम रूप से दवाओं के सैंपल कलेक्ट कर ड्रग इंस्पेक्टर स्पीड पोस्ट से भोपाल या अन्य लैब में भेजते हैं। सैंपल प्रदेश के अन्य जिलों से भोपाल पहुंचने में एक से तीन दिन लगते हैं और जांच में दो से तीन दिन और। इस तरह रिपोर्ट आने में औसतन एक सप्ताह का समय लगता है। यह देरी गंभीर स्थिति का कारण बनती है। अब लैब को निर्देश दिया गया है कि वह 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट तैयार करे।
स्पष्ट है कि इस कमजोर व्यवस्था ने ही मासूम बच्चों की जान ली है। ये तो लगातार घटनाएं हुई हैं, इसलिए व्यवस्था जागती दिख रही है, नहीं तो पता नहीं कितनी प्रतिबंधित और खतरनाक दवाएं बाजार में आज भी बिक रही हैं और हमारे शरीरों को बर्बाद कर रही हैं। जिम्मेदार घड़ियाली आंसुओं से अपनी गलतियां, अपने अपराध को धोने का प्रयास कर रहे हैं।





